राजस्थान के बाड़मेर जिले में जन्मीं रूमा देवी के सर से बचपन में ही मां का साया खो गया, फिर पिता ने दूसरी शादी कर ली। रूमा देवी अपनी दादी के साथ रहीं और उनसे सिलाई-कढ़ाई सीखीं। आर्थिक परेशानियों की वजह से आठवीं कक्षा तक ही पढ़ाई हो पाई लेकिन रूमा देवी ने अपने हुनर के दम पर आज हावर्ड यूनिवर्सिटी तक का सफ़र तय कर लिया है। रूमा देवी ने कम उम्र में ही घर का सारा काम सीख लिया और हुनर व कड़ी मेहनत के दम उन्होंने एक बड़ा मुकाम हासिल किया। आज वे हजारों महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही हैं। महज 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई लेकिन ससुराल में भी आर्थिक परेशानियां कम न थीं। इस दौरान उनका बच्चा बीमार पड़ गया और पैसों की तंगी की वजह से उसका इलाज न हो सका और उसकी मौत हो गई। तब रूमा देवी ने ठान लिया कि अब वो अपने पैरों पर खड़ी होंगी। रूमा देवी इन चुनौतियों के सामने झुकने वाली कहां थीं। उस वक्त अपनी दादी से सीखा पारंपरिक कढ़ाई और सिलाई का हुनर बहुत काम आया। फिर उन्होंने गांव की 10 महिलाओं को साथ मिलाकर स्वयं सहायता समूह बनाया। हर महिला से 100 रुपये के योगदान से उन्होंने कुशन और बैग बनाने का काम शुरू किया। उनकी सफलता की धमक ग्रामीण विकास संस्थान तक पहुंची। फिर क्या था वो ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान नाम के एनजीओ से जुड़ गईं और बहुत ही जल्द कढ़ाई में उस्ताद रूमा देवी सभी की चहेती बनीं। 2010 में रूमा देवी को उस एनजीओ का अध्यक्ष बना दिया गया। साल 2015 में राजस्थान हेरिटेज वीक में उनका पहला फैशन शो हुआ। जहां उनके डिज़ाइन किए हुए कपड़े पहनकर इंटरनेशनल फ़ैशन डिज़ाइनर अब्राहम एंड ठाकुर और भारत के फ़ेमस डिज़ाइनर हेमंत त्रिवेदी के मॉडल्स ने रैम्प वॉक किया। साल 2018 में रूमा देवी को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों नारी शक्ति अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। वहीं, रूमा देवी केबीसी में भी आ चुकीं हैं। आज रूमा देवी ग्रामीण विकास चेतना संस्थानकी अध्यक्ष रहते हुए 35,000 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार और प्रशिक्षण देती हैं। उन्होंने पारंपरिक कढ़ाई और कपड़ों को एक नया रूप दिया है। उनकी बनाई डिजाइन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। आज रूमा देवी आज एक सफल फ़ैशन डिज़ाइनर हैं, जिनकी डिज़ाइन किए कपड़े न सिर्फ़ देश बल्कि विदेश तक जाते हैं। रूमा देवी के डिज़ाइन किए कपड़ों को लंदन, सिंगापुर, कोलंबो व जर्मनी में भी दिखाया जा चुका है।