बच्चों की लाइफस्टाइल में अब काफी बदलाव आ चुका है। उनका ज्यादातर समय घर में कंप्यूटर के सामने बीतता है जिससे उनकी सेहत पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हाल ही में सामने आई एक स्टडी में भी बच्चों की सेडेंटरी लाइफस्टाइल और जानलेवा बीमारी के खतरे के बारे में खुलासा हुआ है। आइए जानते हैं क्या कहती है यह स्टडी।

Sponsored

महावीर कुल्फी सेन्टर - बूंदी

महावीर कुल्फी सेन्टर की और से बूंदी वासियों को दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

आजकल बच्चों का ज्यादातर समय टीवी, लैपटॉप या स्मार्ट फोन में देखते हुए ही बीतता है। तकनीक के विकास से अनगिनत फायदे तो मिलें है, लेकिन उसके कुछ नुकसान भी झेलने पड़ रहे हैं, जिनमें बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी बिल्कुल खत्म (Sedentary Lifestyle) हो जाना भी शामिल है।

अब दुनियाभर की जानकारी और मनोरंजन के साधन उनके हाथ में मौजूद छोटे से गैजेट में उपलब्ध है। इसलिए वे ज्यादा कोई शारीरिक मेहनत नहीं करते हैं। फिजिकल एक्टिविटी की कमी की वजह से बच्चों की सेहत को काफी नुकसान पहुंच सकता है। उनके शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावट के साथ-साथ गंभीर बीमारियों का खतरा भी काफी बढ़ जाता है।

हाल ही में आई एक स्टडी भी इस बात को सच साबित कर रही है। इस स्टडी के मुताबिक, बचपन में गतिहीन लाइफस्टाइल (Sedentary Lifestyle) फॉलो करने वाले बच्चों में प्रीमेच्योर वैस्कुलर डैमेज (Premature Vascular Damage) का खतरा काफी बढ़ जाता है। दरअसल, फिजिकली एक्टिव न होने की वजह से आर्टीज स्टिफ (Atrial Stiffness) होने लगती हैं, जिसकी वजह से दिल की बीमारियों (Heart Disease) का जोखिम काफी अधिक रहता है।

इस स्टडी के लिए 1339 बच्चों को शामिल किया गया था, जिनका 11 से 24 साल की उम्र तक फॉलो अप किया गया। एक मशीन की मदद से उनकी आर्टरीज की स्टिफनेस को मापा गया और साथ ही ब्लड सैमप्लस की मदद से उनका ग्लूकोज, इंसुलिन, फैट, कोलेस्ट्रोल आदि का भी पता लगाया गया। इस स्टडी में बच्चों के परिवार के सदस्यों में दिल की बीमारियों के मामलों का भी विश्लेषण किया गया।

सेडेंटरी लाइफस्टाइल की वजह से दिल की बीमारियों का ही नहीं बल्कि, मोटापा, डायबिटीज, मेटाबॉलिक सिंड्रोम, ब्लड प्रेशर की समस्या, जैसी कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। इसलिए बच्चों को शारीरिक तौर पर एक्टिव रखना बेहद जरूरी है। इस स्टडी के मुताबिक, हर रोज कम से कम तीन घंटे, लाइट फिजिकल एक्टिविटी की मदद से बच्चों में प्रीमेच्योर वैस्कुलर डैमेज के खतरे को कम किया जा सकता है।

इसलिए बच्चों को घर के हल्के-फुल्के कामों में शामिल करके, कुछ समय बाहर खेलने के लिए भेजकर, हल्की एक्सरसाइज, अगर आपके पास पेट है, तो उसके साथ वॉक करने या खेलने जाने से भी उनकी फिजिकल एक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा।