नई दिल्ली। प्राइमरी (कक्षा एक से पांच तक) शिक्षक पद पर भर्ती के लिए बीएड डिग्री धारकों को अयोग्य मानने के फैसले में संशोधन की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करेगा। कोर्ट के समक्ष विचार का मुख्य मुद्दा यह है कि पिछले वर्ष 11 अगस्त को दिया गया फैसला पूर्व प्रभाव से लागू माना जाएगा या बाद से।मध्य प्रदेश सरकार और अन्य कई पक्षकारों ने अर्जी दाखिल कर यह भी मुद्दा उठाया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीएड डिग्री धारक प्राइमरी शिक्षकों का क्या होगा। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद देश भर में बीएड डिग्री धारक प्राइमरी शिक्षकों की नौकरी पर संकट आ गया है और उनकी नौकरी जाने की नौबत है।

बुधवार को कोर्ट ने मामले की सुनवाई सोमवार तक टालते हुए केंद्र सरकार से कहा कि वह सभी राज्यों के प्राथमिक शिक्षकों के कुल खाली पदों और ब्रिज कोर्स के आंकड़े कोर्ट में पेश करेगी। इस बीच उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षामित्र एसोसिएशन भी अर्जी दाखिल कर शिक्षामित्रों को भी नियमित किये जाने की मांग की है।

सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2023 को देवेश शर्मा मामले में दिये फैसले में कहा था कि प्राथमिक शिक्षक पद पर भर्ती के लिए बीएड डिग्री धारक योग्य नहीं हैं। कोर्ट ने माना था कि बीटीसी और डीएलईडी ही इसके योग्य हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी व्यवस्था देने वाले राजस्थान हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था और हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाएं खारिज कर दीं थीं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का देशव्यापी असर हुआ है और बीएड डिग्री धारक प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी पर संकट आ गया है।

मध्य प्रदेश सरकार ने और बहुत से प्रभावित लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर सुप्रीम कोर्ट से आदेश में संशोधन करने और स्पष्टीकरण करने की गुहार लगाई है। बुधवार को न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और सुधांशु धूलिया की पीठ ने सुनवाई की।कोर्ट को बताया गया कि यहां मुख्य मुद्दा यह है कि सुप्रीम कोर्ट का 11 अगस्त 2023 का फैसला पूर्व प्रभाव से लागू माना जाएगा या बाद से। तभी डिप्लोमा इन इलेमेन्ट्री एजूकेशन (डीएलईडी) धारकों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आ चुका है अब कोर्ट को इस तरह की अर्जियों पर सुनवाई करने की जरूरत ही नहीं है। क्योंकि यह तो एक तरह से आदेश का रिव्यू मांगा जा रहा है।