महिलाओं में 10-12 साल की उम्र में पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। इसमें यूटेरस की एंडोमेट्रियम लाइनिंग टूटती है और उसकी जगह नई लाइन बनती है। इस कारण इस दौरान ब्लीडिंग होती है। ब्लीडिंग के दौरान कई बार खून के थक्के भी देखने को मिलते हैं जो चिंता की वजह बन सकते हैं। आइए एक्सपर्ट्स से जानते हैं कि क्या होते हैं मेंसुरल क्लॉट और ये क्यों बनते हैं।
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मेंसुरल क्लॉट के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हमने सी.के. बिरला अस्पताल, गुरुग्राम के स्त्री रोग एंव प्रसुति विभाग की प्रमुख कंसलटेंट डॉ. आस्था दयाल, डॉ. रविंदर कौर खुराना, स्त्री रोग एंव प्रसुति विभाग की वरिष्ठ कंसलटेंट और मारेंगो एशिया अस्पताल, गुरुग्राम की स्त्री रोग एंव प्रसुति विभाग की निदेषक, डॉ. पल्लवी वासल से बात की।
क्या होते हैं मेंसुरल क्लॉट?
डॉ. दयाल ने मेंसुरल क्लॉट के बारे में बताया कि पीरियड्स के दौरान महिलाओ को ब्लीडिंग होती है, जिसमें यूटेरस की लाइन यानी एंडोमेट्रियम टिश्यू भी मिक्स होते हैं। ये टिश्यू ब्लड और प्रोटीन के साथ मिलकर एक जेल जैसी कंसिसटेंसी बनाते हैं, जिसे मेंसुरल क्लॉट कहा जाता है। सामान्य तौर पर एक महिला को पीरियड्स के दौरान 80 मि.ली. ब्लड लॉस होता है और सामान्य ब्लीडिंग में क्लॉट्स भी नहीं बनते हैं।
इस बारे में आगे डॉ. खुराना बताती हैं कि हर महिला में 10-12 साल की उम्र में पीरियड्स शुरू हो जाते हैं। कई बार ज्यादा ब्लीडिंग की वजह से मेंसुरल क्लॉट्स बनने लगते हैं। आमतौर पर ब्लड जेली या तरल रूप में होता है, लेकिन जब यह सामान्य से अधिक मात्रा में होने लगता है, तब यह एंडोमेट्रियम टिश्यू के साथ मिलकर क्लॉट्स बन जाते हैं। डॉ. वासल ने बताया कि पीरियड्स के दौरान एक से.मी. से कम खून के थक्के आना सामान्य बात है।
कब बनता है चिंता का कारण?
मेंसुरल क्लॉट अक्सर हैवी ब्लीडिंग की वजह से बनते हैं, इसलिए अगर सामान्य से ज्यादा ब्लीडिंग होती है, तो यह चिंता का कारण बन सकता है। डॉ. वासल ने बताया कि पीरियड्स के दौरान खून के थक्के आने के साथ-साथ हैवी ब्लीडिंग, तेज मेंसुरल क्रैंप और क्लॉट्स का साइज बढ़ने लगे, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। यह किसी गंभीर समस्या की ओर इशारा हो सकता है।
क्या कारण हो सकते हैं?
डॉ. दयाल ने बताया कि मेंसुरल क्लॉट कई कारणों से हो सकते हैं। इनमें पीसीओएस, हार्मोनल असंतुलन, फाइब्रोइड्स, ओवेरियन सिस्ट, एडिनोमायोसिस, एंडोमेट्रियोसिस या डिसफंक्शनल यूटेरिन ब्लीडिंग आदि शामिल हैं। इसके अलावा, थाइरॉइड, प्रोलैक्टिन में गड़बड़ी, विटामिन-बी 12 की कमी, हीमोग्लोबिन की कमी हो सकती है।
इसलिए अगर पहले ब्लीडिंग के दौरान क्लॉट्स नहीं आते थे और अब आने शुरू हो गए हैं, तो अपने डॉक्टर से मिलकर कुछ जरूरी टेस्ट करवाने जरूरी होते हैं। आपके डॉक्टर कुछ अल्ट्रा साउंड और हार्मोनल टेस्ट की मदद से इसके कारण का पता लगा सकते हैं।
डॉ. खुराना बताती हैं कि आमतौर पर क्लॉट नहीं बनते हैं, लेकिन किन्हीं कारणों से बनने लगते हैं, जिसमें हीमोग्लोबिन की कमी या विटामिन-बी12 की कमी शामिल है, तो इस कारण थकान और स्लीप साइकिल में गड़बड़ी जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं।
कई बार किसी महिला का वजन ज्यादा बढ़ जाता है या एक्सरसाइज ज्यादा मात्रा में करती हैं, तो इस कारण भी हैवी ब्लीडिंग हो सकती है। साथ ही, कुछ मामलों में यूटेरस में मौजूद एंडोमेट्रियोसिस बढ़ने लगता है, फाइब्रोइड्स रसोली, यूटेरस की मसल बढ़ने ( एडिनोमायोसिस) जैसे अन्य कारण भी मेंसुरल क्लॉट के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
एडिनोमायोसिस में यूटेरस मसल बढ़ने के साथ-साथ पीरियड्स के दौरान काफी दर्द भी होता है। यह काफी चिंता का विषय हो सकता है। हालांकि, नॉर्मल ब्लीडिंग में क्लॉटिंग की समस्या नहीं होती है।
कैसे हो सकता है इलाज?
डॉ. खुराना कहती हैं कि मेंसुरल क्लॉटिंग जैसी समस्या को हार्मोन्स की मदद से ठीक किया जा सकता है। हालांकि, अगर यह परेशानी 45 से 55 साल की उम्र में होती है, तो कैंसर का अंदेशा भी हो सकता है। इसलिए डॉक्टर इसमें कैंसर का पता लगाने के लिए भी टेस्ट कर सकते हैं। इसके बाद ही आगे का इलाज शुरू किया जाता है क्योंकि इस उम्र में बिना जांच के हार्मोन्स नहीं दिए जाते हैं।