नई दिल्ली। पिछले लोकसभा चुनाव में चिर प्रतिद्वंद्वी बसपा से गठबंधन कर लड़ी सपा को भाजपा के सामने फिर करारी हार मिली तो अखिलेश यादव ने खुद कहा था कि अब भविष्य में वह किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले उन्होंने छोटे दलों के सहारे जातीय गोलबंदी के प्रयास किए तो काफी हद तक सफलता मिली भी.
Lok Sabha Election 2024: मुश्किल में अखिलेश का 'पीडीए' दांव, 'सोशल इंजीनियरिंग' की राह पर मायावती
बसपा के संभावित उम्मीदवारों में दिख रहे हैं सामाजिक संतुलन के प्रयास।
बिखर गया 2022 में सपा के साथ जुड़ा पिछड़ों का सियासी कुनबा
कांग्रेस के भी हाथ खाली- बसपा की हर वर्ग पर नजर
संभावित उम्मीदवारों में दिख रहे हैं सामाजिक संतुलन के प्रयास
जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। पिछले लोकसभा चुनाव में चिर प्रतिद्वंद्वी बसपा से गठबंधन कर लड़ी सपा को भाजपा के सामने फिर करारी हार मिली तो अखिलेश यादव ने खुद कहा था कि अब भविष्य में वह किसी बड़े दल के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में उतरने से पहले उन्होंने छोटे दलों के सहारे जातीय गोलबंदी के प्रयास किए तो काफी हद तक सफलता मिली भी।
सपा का आंकड़ा 2017 के मुकाबले 47 से बढ़कर 111 पर पहुंच गया। इससे उत्साहित होकर अखिलेश ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) का नारा तो बुलंद किया, लेकिन चुनाव आते-आते पिछड़ों को सपा से जोड़ने वाला सियासी कुनबा बिखर गया।
बसपा प्रमुख 'सोशल इंजीनियरिंग' की राह पर
वहीं, बसपा प्रमुख मायावती किस तरह से एक बार फिर 'सोशल इंजीनियरिंग' की राह पर चल पड़ी हैं, यह अब तक तय हुए संभावित उम्मीदवारों से संकेत मिलता है। लोकसभा चुनाव में इस बार 80 संसदीय सीटों वाले उत्तर प्रदेश में भाजपा से मुकाबला करने के लिए शुरुआत में विपक्षी गठबंधन आईएनडीआईए जो आकार ले रहा था, उसमें समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साथ राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (कमेरावादी) के अलावा पिछड़ा वर्ग के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेता भी थे।