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 ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक संक्रामक बीमारी है, जो टीबी बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होता है। यह आमतौर पर फेफड़ों में होता है, जिसे Pulmonary TB कहते हैं, लेकिन यह किडनी, स्पाइन, ब्रेन या शरीर के किसी अन्य भाग को भी प्रभावित कर सकता है, जिसे Extrapulmonary TB कहते हैं।

कुछ मामलों में टीबी बैक्टीरिया रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स को भी प्रभावित कर सकता है, जिसे Genital Tuberculosis कहा जाता है, लेकिन क्या जेनिटल टीबी की वजह से महिलाओं में फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं? इस बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हमने कुछ एक्सपर्ट्स से बात की। आइए जानते हैं, इस बारे में उनका क्या कहना है।

क्या है जेनिटल ट्यूबरक्लोसिस?

जेनिटल टीबी ऐसा टीबी होता है, जिसमें टीबी का बैक्टीरिया मायकोबैक्टीरिम ट्यूबरक्लोसिस, रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स को प्रभावित करता है। इस बैक्टीरिया की वजह से ही फेफड़ों का टीबी भी होता है। महिलाओं में इस टीबी की वजह से वल्वा, वजाइना, सर्विक्स, फैलोपियन ट्यूब या ओवरीज प्रभावित हो सकते हैं।

किन व्यक्तियों को ज्यादा खतरा होता है?

जेनिटल टीबी आमतौर पर, उन लोगों को होता है, जो पहले से टीबी से पीड़ित होते हैं। फेफड़ों से यह इन्फेक्शन ब्लड में फैल सकता है, जहां से यह रिप्रोडक्टिव ऑर्गन्स तक पहुंच सकता है।

क्यों बढ़ता है इनफर्टिलिटी का खतरा? 

जेनिटल ट्यूबरक्लोसिस के बारे में बात करते हुए सी.के. बिरला अस्पताल, दिल्ली, के पल्मोनोलॉजिस्ट, डॉ. विकास मित्तल ने बताया कि जेनिटल ट्यूबरक्लोसिस पल्मनरी टीबी की तुलना में काफी दुर्लभ होता है, लेकिन इसकी वजह से महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या काफी हद तक बढ़ सकती है। वे महिलाएं, जो पहले से टीबी से संक्रमित रही हों, उनमें इसका जोखिम अधिक रहता है।

इस बारे में फॉर्टिस अस्पताल, शालीमार बाग, के पल्मोनोलॉजी विभाग के निदेषक और एचओडी, डॉ. विकास मौर्या ने भी बताया कि जेनिटल टीबी की वजह से इनफर्टिलिटी का जोखिम कई गुना बढ़ जाता है। जेनिटल टीबी यूटेरस, फैलोपियन ट्यूब्स और ओवरीज को सबसे अधिक प्रभावित करता है। टीबी के इन्फेक्शन की वजह से इन अंगों में स्कारिंग और ऑर्गन डैमेज हो सकता है, जिस कारण ये सामान्य तरीके से काम नहीं कर पाते और इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है।

फैलोपियन ट्यूब होता है सबसे ज्यादा प्रभावित

जेनिटल टीबी का सबसे अधिक प्रभाव फैलोपियन ट्यूब पर पड़ता है। डॉ. मित्तल ने इस बारे में बताया कि इस मामले में 90 से 100 प्रतिशत खतरा फैलोपियन ट्यूब से जुड़ी समस्याओं का ही होता है। इसके अलावा, इनफर्टिलिटी का खतरा 40-76%, पेल्विक पेन 50% और अनीयमित पीरियड्स का जोखिम 25 प्रतिशत तक होता है।

जेनिटल टीबी की वजह से, फैलोपियन ट्यूब में काफी नुकसान हो सकता है। आमतौर पर, टीबी के इन्फेक्शन की वजह से इनमें सूजन और ब्लॉकेज हो सकती है, जिस वजह से ओवरीज से अंडे यूटेरस तक नहीं पहुंच पाते हैं। इस कारण इनफर्टिलीटी या एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का जोखिम काफी बढ़ जाता है। टीबी की वजह से यूटेरस की लाइनिंग भी प्रभावित होती है, जिस कारण इनफर्टिलिटी की समस्या हो सकती है।

 

कैसे कर सकते हैं जोखिम कम?

डॉ. मौर्या ने बताया कि जेनिटल टीबी का जल्द से जल्द पता लगाकर, इनफर्टिलिटी के जोखिम को कम किया जा सकता है। हालांकि, कई बार इसका पता लगाना काफी चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि जेनिटल टीबी के कोई खास लक्षण नहीं होते हैं। इस कारण कई मामलों में इसका पता काफी देर से लग पाता है और इसका इलाज जल्दी शुरू नहीं हो पाता है।

डॉ. मित्तल ने बताया कि जेनिटल टीबी का पता लगाने के लिए कॉन्ट्रास्ट एक्स-रे काफी मददगार साबित हो सकता है। इसकी मदद से यूटेराइन कैविटी में कोई विकृति है या नहीं, इसका पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा, हिस्टोपैथोलॉजी और यूटेराइन लाइनिंग या फैलोपियन ट्यूब के acid-fast bacilli staining की सहायता से भी जेनिटल टीबी का पता लगाया जाता है। इसमें मेंसुरल फ्लूएड कल्चर को अवॉइड किया जाता है।

इसके इलाज के लिए पल्मनरी टीबी थेरेपी के समान ही उपचार किया जाता है, जिसमें जल्दी पता लगाने और हस्तक्षेप पर जोर दिया जाता है। इस स्थिति से जुड़े बांझपन के जोखिम को कम करने के लिए शीघ्र निदान और सही इलाज जरूरी है। जेनेटिक टीबी की रोक-थाम के लिए लोगों को जागरूक बनाने और इसका जल्द से जल्द पता लगाकर इलाज करने के लिए नई रणनीतियों को बनाने की जरूरत है।