मोटापा एक गंभीर समस्या है जो दिल की बीमारियां और डायबिटीज के साथ-साथ महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। मोटापे की वजह से शरीर में कई बदलाव होते हैं जिनकी वजह से कंसीव करने और प्रेग्नेंसी के दौरान काफी समस्याएं हो सकती हैं। मोटापे की वजह से महिलाओं में रिप्रोडक्शन से जुड़ी क्या समस्याएं हो सकती हैं जानने के लिए हमने कुछ एक्सपर्ट से बात की।

 हाल ही में मोटापे को लेकर कुछ परेशान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं। भारत में बढ़ते मोटापे के मामले बहुत बड़ी चिंता का विषय है। द लांसेट द्वारा साझा किए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में लगभग 4.4 करोड़ महिलाएं मोटापे से जूझ रही हैं। मोटापे के मामले में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक है। महिलाओं में मोटापा कई गंभीर समस्याओं की वजह बन जाता है, जिसमें रिप्रोडक्शन से जुड़ी जटिलताएं भी शामिल हैं।

मोटापे की वजह से हार्ट डिजीज और डायबिटीज जैसी बीमारियां होती हैं, इस बारे में हम जानते हैं, लेकिन इसका मेटाबॉलिक डिजीज का महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस बारे में जानने के लिए हमने कुछ एक्सपर्ट्स से बात की। आइए जानते हैं, इस बारे में उनका क्या कहना है।

क्या है मोटापा?

मोटापा एक मेटाबॉलिक डिजीज है, जिसमें बॉडी का फैट लेवल बढ़ने लगता है। शरीर में फैट होना बेहद आम बात है और यह जरूरी भी है, लेकिन इसकी मात्रा ज्यादा होने की वजह से सेहत से जुड़ी कई समस्याएं हो सकती हैं। जरूरत से ज्यादा फैट बढ़ने की वजह से, बॉडी के फंक्शन में बदलाव आने लगते हैं। इस कारण से कई खतरनाक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, जिनमें हार्ट डिजीज, स्ट्रोक, कैंसर और डायबिटीज जैसी जानलेवा बीमारियां भी शामिल हैं।

कैसे करें मोटापे का पता?

आमतौर पर, यह तय करने के लिए कि कोई व्यक्ति मोटापे की श्रेणी में आता है या नहीं, बीएमआई (BMI) इंडेक्स का इस्तेमाल किया जाता है। बीएमआई 18-25 के बीच नॉर्मल माना जाता है, 18 से कम अंडर वेट, 25 से ज्यादा ओवर वेट और 30 से ज्यादा बीएमआई को मोटापा माना जाता है।

मोटापे और महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ के बारे में बताते हुए मैक्स अस्पताल, वैशाली के बैरियाट्रिक और रोबोटिक सर्जरी के निदेशक और प्रमुख, डॉ. विवेक बिंदल ने बताया कि ओबेसिटी का महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। मोटापे की वजह से महिलाओं में फर्टिलिटी और प्रेग्नेंसी के दौरान भी कई समस्याएं हो सकती हैं।

हार्मोनल समस्याएं हो सकती हैं

इस बारे में सी.के. बिरला अस्पताल, गुरुग्राम के मेडिकल ऑन्कोलॉजी में कंसल्टेंट, डॉ. पूजा बब्बर ने बताया कि मोटापे की वजह से महिलाओं में हार्मोनल इंबैलेंस हो सकता है, जिस कारण से फर्टिलिटी की समस्याएं हो सकती हैं। हार्मोन में बदलाव की वजह से अनियमित माहवारी, पीसीओज (PCOS), ओवेरी डिस्फंक्शन, जैसी परेशानियां हो सकती हैं, जिस कारण से कंसीव करने में दिक्कत हो सकती है और कई बार इनफर्टिलिटी भी हो सकती है।

पीसीओज की समस्या उन महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है, जो मोटापे का शिकार होती हैं। पीसीओज की वजह से भी अनियमित पीरियड्स, हार्मोनल इंबैलेस, ओवेरियन सिस्ट की समस्याएं भी हो सकती हैं। पीसीओज की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्या और गंभीर हो जाती है। हार्मोनल इंबैलेंस की वजह से न केवल रिप्रोडक्शन से जुड़ी समस्याएं बल्कि थायरॉइड और डायबिटीज जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं।

प्रेग्नेंसी से जुड़ी परेशानियां

मोटापे की वजह से महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान भी काफी खतरनाक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। डॉ.बब्बर ने बताया कि मोटापे की वजह से प्रेग्नेंसी के दौरान काफी कॉम्प्लीकेशन्स आ सकते हैं, जिनमें प्रीटर्म बर्थ यानी समय से पहले डिलीवरी होना और सिजेरियन डिलीवरी शामिल हैं। इनकी वजह से मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

डॉ. बिंदल ने मोटापे से जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करते हुए बताया कि मोटापे की वजह से जेस्टेशनल डायबिटीज (प्रेग्नेंसी के दौरान डायबिटीज) और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इन कंडिशन्स की वजह से गर्भपात, शिशु में जन्मजात बीमारियां, प्रीटर्म बर्थ जैसी बीमारियां हो सकती हैं। इतना ही नहीं इन वजहों से सी-सेक्शन के मामले ओबीस महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलते हैं।

जेस्टेशनल डायबिटीज और हाइपरटेंशन का खतरा

जेस्टेशनल डायबिटीज और हाइपरटेंशन मां और बच्चे दोनों के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। जेस्टेशनल डायबिटीज का प्रभाव मां की सेहत पर तो पड़ता ही है, लेकिन यह बच्चे के लिए भी काफी घातक साबित हो सकता है। इसकी वजह से बच्चे में कंजेनिटल हार्ट डिजीज यानी बच्चे में जन्मजात दिल की बीमारियों का खतरा काफी अधिक रहता है।

हाइपरटेंशन की वजह से मां में दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। हाइपरटेंशन की वजह से स्ट्रोक का खतरा भी रहता है, जो जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसके अलावा, हाइपरटेंशन के कारण प्री एक्लेमप्सिया का जोखिम भी बढ़ जाता है, जो बच्चे और मां दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

प्री एक्लेमप्सिया ऐसी कंडीशन होती है, जिसमें ब्लड वेसल्स के साथ परेशानी की वजह से प्लासेंटा ठीक से विकसित नहीं हो पाता है। इसका एक प्रमुख कारण हाइपरटेंशन है। इसका प्रभाव दिल, लिवर और किडनी पर भी पड़ता है। साथ ही, यह भविष्य में होने वाली प्रेग्नेंसी में भी परेशानियां खड़ी कर सकता है।

ART ट्रीटमेंट हो सकते हैं बेअसर

प्रेग्नेंसी से जुड़ी समस्याओं के बारे में बताते हुए डॉ. बब्बर ने बताया कि मोटापे की वजह से कई महिलाओं में असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) ट्रीटमेंट, जैसे- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) के सफल होने की संभावना काफी कम होता है। इतना ही नहीं, रिप्रोडक्टिव हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के अलावा, गायनेकोलॉजिकल कैंसर, जैसे- ब्रेस्ट कैंसर, ओवेरियन कैंसर और एंडोमेट्रियल कैंसर का जोखिम काफी अधिक बढ़ जाता है।

इन तात्कालिक चिंताओं के अलावा, डॉ. बिंदल ने बताया कि मोटापे की वजह से आने वाली पीढ़ियों में भी कई समस्याएं हो सकती हैं। ओबेसिटी से जूझ रही महिलाओं के बच्चों में भी मोटापे का खतरा काफी अधिक रहता है। ऐसा जेनेटिक मॉडिफिकेशन की वजह से होता है। मोटापे की वजह से कई बार जेनेटिक बदलाव होते हैं, जो माता-पिता से बच्चों में जा सकते हैं। इस वजह से इंटर जनरेशनल डायबिटीज हो सकता है।

लाइफस्टाइल में सुधार करें

इसलिए रिप्रोडक्टिव हेल्थ को बेहतर रखने के लिए और प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे दोनों की अचछी सेहत के लिए जरूरी है कि मोटापे जैसी गंभीर समस्या से बचाव किया जाए या इसे दूर करने के लिए सावधानियां बरती जाएं। मोटापे की सबसे बड़ी वजह है लाइफस्टाइल से जुड़ी छोटी-छोटी गलतियां। इसलिए लाइफस्टाइल में सुधार करके, न्यूट्रिशन काउंसलिंग और टार्गेटेड स्ट्रेटेजी की मदद से मोटापे से बचाव किया जा सकता है।

वजन कम करने से हार्मोनल बैलेंस पर काफी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जिससे मेंसुरल साइकिल नियमित रहता है और ओव्युलेशन बेहतर होता है। इन वजहों से कंसीव करने में होने वाली परेशानियों को दूर किया जा सकता है।

हेल्दी वजन मेंटेन करने के लिए संतुलित आहार और एक्सरसाइज मददगार हो सकते हैं। इनकी वजह से कंसेप्शन की संभावना बढ़ती है और प्रेग्नेंसी के दौरान किसी भी प्रकार की जटिलताओं से बचने में मदद मिल सकती है। इसलिए वजन कम करने से महिलाओं की रिप्रोडक्टिव हेल्थ में काफी सुधार हो सकते हैं।