पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा और बहुत कम दोनों ही तरह की ब्लीडिंग सेहत संबंधी कुछ समस्याओं की ओर इशारा करती है। किसी भी केस में इसे हल्के में लेने की गलती न करें। पीरियड्स के दौरान कम ब्लीडिंग की प्रॉब्लम को हाइपोमेनोरिया कहते हैं तो किन वजहों से होती है यह समस्या और कैसे लक्षण देखने को मिलते है इसमें जान लें यहां।

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ओम धगाल - पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा युवा मोर्चा

ओम धगाल की और से हिंडोली विधानसभा क्षेत्र एवं बूंदी जिले वासियों को रौशनी के त्यौहार दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

जहां कुछ महिलाओं को पीरियड्स के दौरान दर्द, मूड स्विंग्स या हैवी ब्लीडिंग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, वहीं कुछ महिलाओं को ये सारी दिक्कतें नहीं होती हैं, लेकिन इसे लेकर बहुत ज्यादा खुश या निश्चिंत होने की जरूरत नहीं, क्योंकि ये भी एक तरह की प्रॉब्लम ही है। पीरियड्स के दौरान कम ब्लीडिंग एक चिंता का विषय है, जिसे हाइपोमेनोरिया कहते हैं। जानते हैं किन वजहों से होती है यह समस्या, इसके लक्षण और उपचार से कुछ जुड़ी जरूरी बातें।

हाइपोमेनोरिया के कारण

हाइपोमेनोरिया होने के पीछे कई कारण हो सकते है। जिनमें..

1- हार्मोनल असंतुलन: एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के लेवल में उतार-चढ़ाव से एंडोमेट्रियल लाइनिंग का सही तरीक से डेवलपमेंट नहीं हो पाता, जिसकी वजह से पीरियड्स हल्के होते हैं।

2- थायराइड डिसऑर्डर: थायराइड डिस्फंक्शन, जैसे हाइपोथायरायडिज्म या हाइपरथायरायडिज्म के चलते भी मेंस्ट्रुअल साइकल में प्रॉब्लम्स देखने को मिलती है, जिससे हाइपोमेनोरिया की समस्या हो सकती है।

3- पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम: PCOS एक हार्मोनल डिसऑर्डर है जिसकी वजह से अनियमित पीरियड्स, ओवेरियन अल्सर और हार्मोनल असंतुलन की समस्या होती है और इन सबके होने पर अक्सर हाइपोमेनोरिया होता है।

4- बहुत ज्यादा एक्सरसाइज़ करना: बहुत ज्यादा फिजिकल एक्टिविटी खासतौर से एथलीट्स या रिगोरस ट्रेनिंग करने वाली महिलाओं में हार्मोन प्रोडक्शन और मेंस्ट्रुअल रेगुलेरिटी (पीरियड्स की नियमितता) बाधित हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप हल्के पीरियड्स आ सकते हैं।

5- स्ट्रेस: क्रोनिक स्ट्रेस हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-एड्रेनल (HPA) फंक्शन में दिक्कतें पैदा कर सकता है, जिससे हार्मोन का लेवल और मेंस्ट्रुअल साइकल डिस्टर्ब हो सकता है।

हाइपोमेनोरिया की रोकथाम

लाइफस्टाइल और आदतों में कुछ जरूरी बदलावों से इससे काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है।

1. बैलेंस डाइट लें

विटामिन, मिनरल्स से भरपूर डाइट हार्मोनल संतुलन और प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने के लिए जरूरी होता है। फल, सब्जियां, साबुत अनाज, लीन प्रोटीन और हेल्दी फैट वाली डाइट लेने से हाइपोमेनोरिया की प्रॉब्लम तो दूर होती ही है, साथ ही हेल्थ भी अच्छी रहती है। 

2. नियमित एक्सरसाइज करें

रोजाना थोड़ी देर की फिजिकल एक्टिविटी से शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन सही तरह से होता है। इससे तनाव कम होता है और हार्मोनल एक्टिविटीज को रेगूलेट करने में भी मदद मिलती है। मीडियम एक्सरसाइज, जैसे तेज़ चलना, स्वीमिंग या योग आदि करने से पीरियड्स से जुड़ी दिक्कतें दूर हो सकती हैं।

3. स्ट्रेस से दूर रहें

क्रोनिक स्ट्रेस हार्मोन संतुलन और पीरियड साइकल को बाधित कर सकता है। मेडिटेशन, ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ और माइंडफुलनेस जैसी स्ट्रेस मैनेजमेंट तकनीकों को अपनाकर तनाव को आसानी से कम किया जा सकता है।

4. वजन कंट्रोल रखें

वजन में बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव हार्मोन के स्तर और पीरियड्स की नियमितता पर ख़राब प्रभाव डाल सकता है। सही डाइट और नियमित एक्सरसाइज़ के जरिए वजन को कंट्रोल में रखा जा सकता है और सेहतमंद रहा जा सकता है।

हाइपोमेनोरिया प्रजनन स्वास्थ्य और समग्र कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। इसलिए इसकी समय रहते पहचान कर इलाज जरूरी है।