जब भी हम किसी चीज के बारे में अपने फोन या लैपटॉप में सर्च करते हैं तो सबसे पहला नाम गूगल का आता है। इसके अलावा गूगल अन्य सुविधाएं भी देता है, लेकिन हम खासकर इसका उपयोग करते हैं, सरल भाषा में कहें तो सर्च इंजन के तौर पर आपको iGoogle का वर्चस्व देखने को मिलता है। लेकिन क्या गूगल ने इस एकाधिकार को बनाए रखने के लिए अरबों रुपये खर्च किए है?

ऐसा ही कुछ अमेरिकी सरकार का कहना है, जिसने Google पर आरोप लगाया है कि उसने इंटरनेट सर्च इंजन के रुप में अपना वर्चस्व बनाए रखने ने लिए कंपनियों के साथ डील की है, जिसके लिए गूगल ने अरबों रुपये खर्चे है। बता दें कि इन कंपनियों की लिस्ट में एपल को भी शामिल किया गया है। आइये इसके बारे में जानते हैं।

गूगल पर लगा आरोप

  • जैसे कि हम बता चुके हैं कि यूएस गवर्नमेंट ने गूगल पर आरोप लगाया है कि सर्च इंजन के तौर पर अपनी मोनोपोली बनाए रखने के लिए कंपनियों के साथ सौदा किया है। सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस ने इस आरोप के लिए टेक जाइट पर एंट्री ट्रस्ट केस किया था।
  • ट्रायल के दौरान ये बात सामने आई कि एक डिफॉल्ट सर्च इंजन बनने के लिए कंपनी ने ये कदम उठाया है। ताकि सभी डिवाइस में कुछ भी सर्च करने के बाद पहला नाम गूगल का आए।
    • यह ट्रायल लगभग एक हफ्ते चला, जिसमें एपल की मुख्य भूमिका रही , क्योंकि एपल के एग्जिक्यूटिव को इस ट्रायल में गवाह के तौर पर बुलाया गया था। साथ ही ये केस केवल एपल और गूगल के बीच हुए समझौते पर ही आधारित था।
    • इसके बाद कोर्ट ने अपने फैसले में बताया कि गूगल इस बात को लेकर चिंता में था कि एपल के सर्च इंजन के लोकप्रियता के कारण इसके रेवैन्यू पर असर हो सकता है। जिसके चलते टेक जाइंट ने डील की ताकि वह हर डिवाइस में डिफॉल्ट सर्च इंजन बना रहे।

    Apple और Google की डील

    • रिपोर्ट में मिली जानकारी से पता चला है कि गूगल 2014 में ही इस बात को लेकर चिंता में आ गया था। इसके चलते गूगल ने Apple के साथ 20 अरब डॉलर की डील की।
    • इस डील के तहत एपल के सभी डिवाइस में चाहे वह आईफोन हो या आईपैड सबमें Google डिफॉल्ट सर्च इजन के तौर पर काम करेगा।
    • 2014 में एपल के रैवेन्यू में भारी उछाल आया था, इसका कारण यह था कि एपल का सर्च इंजन सफारी अपने यूजर्स को डायरेक्टली वेबसाइट का सजेशन देता था, जिससे गूगल प्रभावित हुआ था।
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