*गुनौर विधानसभा का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य*

पन्ना/गुनौर-गुनौर विधानसभा 2008 में अस्तित्व में आई इसके पूर्व इसे अमानगंज विधानसभा के नाम से जाना जाता था।अमानगंज विधानसभा का गठन 1971 में हुआ और इस विधानसभा को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया 1972 में अमानगंज विधानसभा का पहला आम चुनाव हुए इस विधानसभा से पहले विधायक तातूलाल अहिरवार (कांग्रेस )बने,फिर क्रमशः 1977 में जगसुरिया(जनता पार्टी),1980 में सुंदरलाल(कांग्रेस),1985 में काशी प्रसाद बागरी(भाजपा),1990 में गनेशी लाल वर्मा भाजपा (भाजपा के प्रत्यासी राजेश वर्मा के पिता),1993 में फुंदर चौधरी(कांग्रेस),1998 में गोरेलाल (भाजपा),2003 में काशी प्रसाद बागरी (भाजपा),2008 के आम चुनाव में इस विधानसभा का नाम गुनौर विधानसभा हो गया और 2008 में इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व का दायित्व राजेश वर्मा (भाजपा)ने सम्हाला,2013 में महेंद्र बागरी (भाजपा)विधायक बने,2018 में शिवदयाल बागरी (कांग्रेस)ने प्रतिनिधित्व किया।

*कौन बनेगा विधायक?कयासों का दौर जारी*

*गुनौर विधानसभा के प्रत्याशियों ने ठोंकी ताल*

*भितरघाती भी हुए सक्रिय*

*भाजपा प्रत्यासी डॉ राजेश वर्मा का पूर्व से चल रहा प्रचार प्रसार*

गुनौर विधानसभा से भाजपा ने पूर्व विधायक राजेश वर्मा को टिकिट अपना प्रत्यासी पहले ही घोषित कर दिया था,टिकिट घोषित होने से पहले भी राजेश वर्मा भाजपा के जिला महामंत्री बतौर पार्टी में लगातार सक्रिय रहे तथा क्षेत्र में सतत संपर्क बनाए रहे,राजेश वर्मा की टिकिट फाइनल होने के बाद उनका लगातार क्षेत्र भृमण और जनसंपर्क जारी है।जब तक अन्य दलों की टिकिट घोषित हुई तब तक राजेश वर्मा ने पूरे विधानसभा क्षेत्र में जनसम्पर्क स्थापित कर लिया,राजेश वर्मा की टिकिट घोषित होने के बाद छुटपुट विरोध भी देखने को मिला लेकिन उस विरोध का क्षेत्र में कोई असर देखने को नही मिला,जनचर्चा है कि अनुभवी होने उर पहले टिकिट फाइनल होने और क्षेत्र में लगातार सक्रियता बनाये रखने का फायदा पूर्व विधायक राजेश वर्मा को जरूर मिलेगा।

*कांग्रेस ने जीवनलाल सिद्धार्थ पर खेला दाव*

गुनौर विधानसभा क्षेत्र से जीवनलाल सिद्धार्थ को टिकिट देकर सबको चौंका दिया,जीवनलाल सिद्धार्थ 2 बार बहुजन समाज पार्टी के सिंबल से जोर आजमाइश कर चुके है लेकिन जब सफलता नही मिली तो उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया,जीवनलाल सिद्धार्थ वर्तमान विधायक शिवदयाल बागरी को पछाड़कर टिकिट हासिल करने में तो कामयाब हो गए लेकिन अब गुनौर क्षेत्र की जनता की उम्मीदों पर वह कितने खरे उतरते है यह तो आगामी समय ही तय करेगा,सन 1993 में फुंदर चौधरी कांग्रेस से जीते थे तब से लगातार भाजपा के विधायक ही इस विधानसभा ने दिए 2018 में यानी 4 पंचवर्षी बाद कांग्रेस पुनः वापसी कर पाई थी अब आगे देखना दिलचस्प होगा कि गुनौर की जनता किसके सर पर ताज रखती है।

*बसपा जीती तो कभी नही लेकिन जनाधार की अहमियत तो है*

म प्र में प्रमुख 2 ही दल है भाजपा और कांग्रेस बसपा का जनाधार बढ़ने की बजाय दिनोदिन गिरता जा रहा है लेकिन तीसरा प्रमुख दल बसपा ही है जोकि भाजपा कांग्रेस के बाद अच्छा वोट पाता है,गुनौर विधानसभा में एकाध बार तो बसपा दूषरे नम्बर तक पहुंच गई है लेकिन जीत हासिल नही कर पाई,बसपा ने भी अपना प्रत्यासी घोषित कर चुनावी समर में आमद दर्ज करा ली है।

यदि गुनौर विधानसभा का आंकलन किया जाए तो यहाँ की जनता भाजपा को ही ज्यादा अहमियत देती आई है,2018 के चुनाव में भी भाजपा मामूली अंतर से ही इस सीट से हारी थी।

किस पार्टी से कौन बागी होता है और कौन भितरघात करता यह तो भविष्य तय करेगा।

बागियों और भितरघातियों द्वारा किस पार्टी का कितना नुकसान किया जाएगा यह तो अभी कोई नही जानता लेकिन चुनाव परिणामो को प्रभावित करने में निर्दलीय प्रत्यासियो ,अन्य दल के प्रत्यासियो ,बागियों,भितरघातियों के रोल को नजरअंदाज नही किया जा सकता।