8 वैज्ञानिक संस्थानों की यह रिपोर्ट सैकड़ों वैज्ञानिकों ने कई महीनों की मेहनत के बाद करीब 718 पन्नों में तैयार की है। वहीं, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष अतुल सती ने कहा है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में आखिरकार सरकार ने इतना समय क्यों लगाया।
जोशीमठ में भूधंसाव पर वैज्ञानिकों की रिपोर्ट आ गई है और उसे सार्वजनिक भी कर दिया गया है। नैनीताल हाईकोर्ट की सख्ती के बाद आखिरकार सरकार को जोशीमठ भूधंसाव पर वैज्ञानिक संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना पड़ा। 8 वैज्ञानिक संस्थानों की यह रिपोर्ट सैकड़ों वैज्ञानिकों ने कई महीनों की मेहनत के बाद करीब 718 पन्नों में तैयार की है।
एजेंसियों ने एनटीपीसी को अपनी रिपोर्ट में दी क्लीन चिट
बता दें कि जोशीमठ भू-धंसाव के लिए एनटीपीसी की परियोजना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था। तमाम एजेसियों की जांच के बाद जीएसआई और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी ने एनटीपीसी को अपनी रिपोर्ट में क्लीन चिट दी है। इसका मतलब जोशीमठ में भू-धंसाव के पीछे एनटीपीसी की परियोजना वजह नहीं है। जांच एजेंसियों ने जोशीमठ में हो रहे भू-धंसाव और दरारों के पीछे का कारण भी अपनी रिपोर्ट में बताया है।
ये है भू-धंसाव की वजह
718 पन्नों की रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है, जिसके कारण वहां भू-धंसाव हो रहा है। जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। इसी मोरेन के ऊपर जोशीमठ बसा है।
वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में इस बात का प्रमुखता से जिक्र किया गया है कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है। यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं। इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण है। रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी मिट्टी में आंतरिक क्षरण के कारण संपूर्ण संरचना में अस्थिरता आ जाती है। इसके बाद पुन: समायोजन होता है, जिसके परिणामस्वरूप बोल्डर धंस रहे हैं। आपदा सचिव रंजित सिन्हा ने कहा कि जोशीमठ से संबंधित रिपोर्ट को यूएसडीएमए की वेबसाइट पर अपलोड कर सार्वजनिक कर दिया गया है। आगे जोशीमठ के पुनर्निर्माण का काम शुरू किया जाएगा।
जोशीमठ के लिए 1800 करोड़ रुपये की स्वीकृति
फिलहाल केंद्र सरकार ने पीडीएनए की रिपोर्ट पर चर्चा के बाद करीब 1800 करोड़ रुपये की सैद्धांतिक स्वीकृति दी है इसमें से 1464 करोड़ रुपये केंद्र सरकार और 336 करोड़ रुपये राज्य सरकार वहन करेगी। फिलहाल जोशीमठ में होने वाले कामों की डीपीआर बनाने का काम किया जा रहा है। केंद्र से पैसा जारी होते ही जमीन पर काम शुरू किया जाएगा।
उधर, जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के अध्यक्ष अतुल सती ने कहा है कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने में आखिरकार सरकार ने इतना समय क्यों लगाया। वहीं उन्होंने कहा है कि जीएसआई ने एनटीपीसी की परियोजना पर 2005 में प्रश्न चिन्ह खड़े किए थे, जबकि 2010 में एक आर्टिकल भी छपा था जिसमें जीएसआई की रिपोर्ट को कोड किया गया था। वहीं उन्होंने कहा कि जब परियोजना के पानी से सैंपल नहीं मिला, जबकि पानी 15 दिन में ही बंद हो गया था, पर पानी आया कहां से इस कारण का भी रिपोर्ट में कोई खुलासा नहीं किया गया है। वहीं उन्होंने यह भी कहा है कि जब किसी भी निर्माण कार्य को न करने के लिए रिपोर्ट में कहा गया है ऐसे में एनटीपीसी के कार्यों पर भी अंकुश लगना चाहिए।