ICRIER ने एक पेपर पेश किया है जो भारत के उपग्रह संचार क्षेत्र में स्पेक्ट्रम असाइनमेंट के लिए एक करिकुलम तैयार करेगा। बता दें कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है। ब्रॉडबैंड एक्सेस और बेहतर सैटेलाइट टीवी सेवाओं के डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों को पाने के लिए सैटेलाइट संचार जरूरी है। हम आपको बता रहे हैं कि यह सुविधा कैसे काम करेगी।

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) ने ब्रॉडबैंड इंडिया फोरम (BIF) द्वारा समर्थित एक वर्किंग पेपर लॉन्च किया है। इस अध्ययन का उद्देश्य भारत के उपग्रह संचार क्षेत्र में स्पेक्ट्रम असाइनमेंट के लिए एक करिकुलम तैयार करना है।

ICRIER और प्रोफेसर रेखा जैन द्वारा लिखित पेपर, नीलामी के माध्यम से सैटेलाइट स्पेक्ट्रम असाइनमेंट के निहितार्थ की जांच करता है और जरुरी स्पेक्ट्रम मैनेजमेंट और नियामक उद्देश्यों को पाने में नीलामी की विफलता को रेखांकित करता है।

लेखकों ने इस बात पर जोर दिया है कि सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक साझा संसाधन है और नीलामी के माध्यम से असाइनमेंट के मौजूदा अनुभव और व्यावहारिक मॉडल बहुत कम हैं। इसके बजाय, लेखक अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप, साझा आधार पर अंतरिक्ष-आधारित संचार स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक असाइनमेंट की वकालत करते हैं।

सैटेलाइट कम्युनिकेशन का महत्व

व्यापक ब्रॉडबैंड एक्सेस और बेहतर सैटेलाइट टीवी सेवाओं के डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों को पाने के लिए सैटेलाइट संचार जरूरी है।

मोबाइल और प्रसारण लोकल सेवाओं को नियंत्रित करने वाले विशेष एलोकेशन ढांचे के विपरीत, सैटेलाइट स्पेक्ट्रम एक विशिष्ट रूप से तैयार स्पेक्ट्रम असाइनमेंट रणनीति की मांग करता है, जो साझा होने पर इसकी उपयोगिता को अधिकतम करता है।

अध्ययन द्वारा दिए गए सुझाव

पेपर सुझाव देता है कि नीलामी के माध्यम से विशेष असाइनमेंट जब अंतरिक्ष-आधारित संचार पर लागू होते हैं, तो स्पेक्ट्रम मैनेजमेंट उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पाने में कमी आती है।

यह इन पारंपरिक तरीकों से हटने की वकालत करता है और आईटीयू रेडियो विनियमों के ढांचे के भीतर स्पेक्ट्रम साझा करने के लिए प्राथमिकता और समन्वय तंत्र को अपनाने का सुझाव देता है।

यह न केवल विनियामक निश्चितता देगा, बल्कि सार्वभौमिक कवरेज पाने, उपग्रह क्षेत्र के विकास को सुविधाजनक बनाने, भारतीय दूरसंचार कंपनियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने और एक मजबूत लोकतंत्र के लिए जूरुरी कंटेंट विविधता और बहुलता को संरक्षित और बढ़ाने में भी सहायक होगा।सैटेलाइट स्पेक्ट्रम असाइनमेंट: मुख्य बिन्दु

नीतिगत उद्देश्यों से संबंधित उपग्रह स्पेक्ट्रम के असाइनमेंट के मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत कुछ प्रमुख मानदंडों( क्राइटेरिया) में शामिल हैं-

सेवा प्रदाताओं द्वारा प्रभावी उपयोग: नीलामी के माध्यम से विशेष असाइनमेंट से स्पेक्ट्रम खंडित हो जाएगा, हर सेवा प्रदाता को संपूर्ण उपलब्ध बैंडविड्थ का एक हिस्सा सौंपा जाएगा, जिसके चलते डेटा दरें कम होंगी और अकुशल उपयोग होगा।

प्रतिस्पर्धा को सुगम बनाना: नीलामी के माध्यम से सीमित खिलाड़ियों को अनुमति देना कुछ प्रोवाइडर्स तक एक्सेस को सीमित करता है, कृत्रिम कमी पैदा करता है और छोटे खिलाड़ियों के प्रवेश में बाधाएं पैदा करता है।

निष्पक्ष और पारदर्शी असाइनमेंट प्रक्रिया: जब तक असाइनमेंट पूर्व घोषित तंत्र के माध्यम से खुले तौर पर किए जाते हैं, तब तक एक पारदर्शी और निष्पक्ष तंत्र लागू किया जा सकता है।

स्पेक्ट्रम का अधिकतम उत्पादक उपयोग: विखंडन स्पेक्ट्रम प्रबंधन दक्षता को नुकसान पहुंचाता है, जिससे कम उपयोग वाले हिस्से रह जाते हैं, जो DoT/TRAI के कुशल सार्वजनिक संसाधन प्रबंधन के लक्ष्य के विपरीत है।

सैटेलाइट क्षेत्र को आगे बढ़ने में मदद करना: सैटेलाइट सेवाएं विभिन्न आर्थिक गतिविधियों के लिए उपयोगी हैं। असंगत स्पेक्ट्रम असाइनमेंट तंत्र वैश्विक उपग्रह प्रदाताओं को भारतीय बाजारों में प्रवेश करने से रोकेगा। कंपनियां विनियामक निश्चितता चाहती हैं, जो विशेष असाइनमेंट और नीलामी तंत्र देने की संभावना नहीं है।

भारतीय दूरसंचार कंपनियों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनने में सक्षम बनाना: नई स्पेसकॉम नीति, डिजिटल इंडिया और एनडीसीपी 2018 एक जीवंत, प्रतिस्पर्धी दूरसंचार क्षेत्र और एक बढ़ते उपग्रह खंड की उम्मीद करते हैं। हालांकि, अंतरिक्ष-आधारित संचार के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी से भारत में नवोदित सैटेलाइट क्षेत्र में गिरावट देखने की संभावना है क्योंकि नीति और नियामक ढांचे में देरी और निजी क्षेत्र की खराब भागीदारी देखी जाएगी।