नई दिल्ली। सहकारिता क्षेत्र में व्यापक बदलाव की तैयारी है। केंद्र सरकार का जोर सहकारी संस्थाओं को जमीनी स्तर पर सशक्त बनाने और आम लोगों की भागीदारी बढ़ाने पर है। इसके लिए नई सहकारी नीति बनाई जा रही है, जिसमें सहकारी संस्थाओं की आय में सभी सदस्यों की बराबर की हिस्सेदारी होगी।

नवंबर के पहले तक तैयार कर लिया जाएगा मसौदा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर राष्ट्रीय स्तर की समिति नई नीति के मसौदे पर काम कर रही है। नवंबर के पहले तक तैयार कर लिया जाएगा। इसके लिए राज्यों, प्रमुख सहकारी संस्थाओं के साथ आम लोगों से भी सुझाव मांगे गए थे। अब उनका विश्लेषण किया जा रहा है। देश की सहकारिता नीति लगभग दो दशक से अधिक पुरानी है, जो बदलते आर्थिक आवश्यकता के पैमाने के अनुकूल नहीं है।

राष्ट्रीय समिति का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु कर रहे हैं

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह का मानना है कि देश को पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहकारी संस्थाओं की प्रमुख भूमिका होगी। इसलिए नई नीति को 'सहकार से समृद्धि' के दृष्टिकोण से तैयार किया जा रहा है।

मसौदा तैयार करने वाली राष्ट्रीय समिति का नेतृत्व पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु कर रहे हैं, जिसमें देश भर के विभिन्न क्षेत्रों से 49 विशेषज्ञों एवं हितधारकों को शामिल किया गया है। राज्यों के सहकारिता विभागों, केंद्रीय मंत्रालयों के संबंधित विभागों, आरबीआई, इफ्को जैसे राष्ट्रीय संस्थान एवं विभिन्न क्षेत्रों में सहकारी समितियों के प्रतिनिधिओं एवं शिक्षाविदों से भी सुझाव आमंत्रित किए गए थे। लगभग एक हजार से अधिक सुझाव प्राप्त हुए।

नीतिगत सुझावों का किया जा रहा विश्लेषण

समिति की अबतक आठ से अधिक बैठकें हो चुकी हैं। दो महीने पहले समिति ने केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के सामने प्रस्तुति भी दी थी। अंतिम रूप देने के लिए एकत्रित फीडबैक, नीतिगत सुझावों एवं सिफारिशों का विश्लेषण किया जा रहा है। लगभग 95 प्रतिशत कार्य पूरा भी हो गया है।

अभी सहकारी संस्थाओं में जन सामान्य की भागीदारी बहुत कम: सरकार

सहकारिता मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक नई नीति में सहकारी संस्थाओं के अर्थतंत्र में सुधार एवं उनकी संरचनात्मक व्यवस्था को पारदर्शी बनाने का प्रयास पर विशेष फोकस किया जा रहा है। सरकार का मानना है कि अभी सहकारी संस्थाओं में जन सामान्य की भागीदारी बहुत कम है। इसलिए बोर्ड की शासन प्रणाली को इस तरह व्यवस्थित किया जा रहा कि संस्था में सबके लिए समान अवसर उपलब्ध हो सके।

नई तकनीकी एवं पूंजी के विभिन्न स्त्रोतों की तलाश को भी प्रोत्साहित किया जाएगा। जन सामान्य की भागीदारी बढ़ेगी तो उनके प्रशिक्षण की भी जरूरत होगी। इसकी भी व्यवस्था की जा रही है। साथ ही नए प्रोफेशनल तैयार करने के लिए सहकारिता विश्वविद्यालय की स्थापना की जाएगी, जिसमें सहकारिता क्षेत्र के नए कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था भी उपलब्ध होगी। केंद्र सरकार सहकारी क्षेत्र को मजबूत करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करेगी।