नई दिल्ली। रूस-यू्क्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से दुनिया के बदलते राजनीतिक और आर्थिक समीकरण से भारत के लिए कई तरह के अवसर निकल रहे हैं। रूस से सस्ते दाम पर कच्चा तेल तो भारत खरीद ही रहा है, लेकिन अब यूक्रेन के इन्फ्रास्ट्रक्चर पुनर्निमाण प्रोजेक्ट को पूरा करने में भारतीय कंपनियां भी बिडिंग में भाग ले रही हैं। इतना ही नहीं रक्षा क्षेत्र में यूक्रेन से आयात होने वाले सामान को अब भारत में ही बनाने की तैयारी चल रही है, जिससे भविष्य में इनका आयात नहीं करना पड़ेगा।
बिजली सेक्टर को 6.5 अरब डालर का नुकसान
भारी उद्योग मंत्रालय के अधीन काम करने वाली भारत हैवी इलेक्टि्रकल्स लिमिटेड (भेल) ने तो इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर और बिजली संयंत्र से जुड़े काम को पूरा करने के लिए यूक्रेन की तरफ से निकाले गए टेंडर में हिस्सा लिया है। संयुक्त राष्ट्र व विश्व बैंक के हाल के मूल्यांकन के मुताबिक यूक्रेन में बिजली, गैस व हिटिंग से जुड़े 10 अरब डालर मूल्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर का नुकसान हुआ है। सबसे अधिक नुकसान बिजली सेक्टर में 6.5 अरब डालर का हुआ है।
मरीन गैस टरबाइन के आयात की जरूरत नहीं होगी
सूत्रों के मुताबिक रूस-यूक्रेन युद्ध का एक बड़ा लाभ यह होने जा रहा है कि भविष्य में भारतीय नौसेना के लिए मरीन गैस टरबाइन के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी। नौसेना के जहाज को चलाने में मरीन गैस टरबाइन की जरूरत होती है। भारत यूक्रेन से मरीन गैस टरबाइन का आयात करता था। युद्ध के बाद इस दिशा में आत्मनिर्भर बनने की जरूरत महसूस की गई। भेल पावर प्लांट के लिए छोटे स्तर पर पहले से गैस टरबाइन बनाता था और अपने उस अनुभव का फायदा उठाते हुए भेल मरीन गैस टरबाइन के पुर्जों का तेजी से स्वदेशीकरण कर रही है और जल्द ही नौसेना को गैस टरबाइन की आपूर्ति करने लगेगी।
स्टील कंपनियां भी कर रही तैयारी
सूत्रों के मुताबिक इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की मरम्मत के साथ भारतीय कंपनियां स्टील जैसी कई औद्योगिक वस्तुओं की सप्लाई की भी तैयारी कर रही है, क्योंकि यूक्रेन को फिर से पुराने आकार में लाने के लिए बड़ी मात्रा में औद्योगिक वस्तुओं की जरूरत पड़ने वाली है। स्टील कंपनियां यूक्रेन की जरूरत को देखते हुए अपनी तैयारी भी कर रही है। यूक्रेन को यूरोपीय यूनियन से लेकर अमेरिका तक का समर्थन प्राप्त है, इसलिए यूक्रेन को पैसे की किल्लत भी नहीं होगी। गत अप्रैल माह में यूक्रेन के उप विदेश मंत्री ने भी भारत यात्रा के दौरान कहा था कि यूक्रेन में इन्फ्रास्ट्रक्चर के पुनर्निर्माण का काम भारतीय कंपनियों के लिए अवसर होगा।
रूस की रकम रुपये के रूप में भारत में हो रही जमा
सूत्रों के मुताबिक रक्षा सेक्टर में रूस अब भारतीय कंपनियों के साथ टेक्नोलाजी साझा करने की दिशा में भी अपना रूझान दिखा रही है। रूस फिलहाल दुनिया के अधिकतर देशों से अलग-थलग पड़ गया है। सूत्रों के मुताबिक रूस भारतीय कंपनियों के साथ साझा रूप से मैन्यूफैक्चरिंग के लिए निवेश भी कर सकती है। इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि रूस के साथ रुपये व रूबल में व्यापार होने के नाते रूस के हिस्से की बड़ी रकम रुपये के रूप में भारत में जमा हो रही है।