नई दिल्ली,  प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही उच्च शिक्षण संस्थानों को रैगिंग मुक्त रखने की तैयारी भी शुरू हो गई है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ( यूजीसी ) ने इस दिशा में कई अहम कदम उठाए है। इसमें रैगिंग के रोकथाम से जुड़े पहले से प्रचलित नियमों को और सख्ती से साथ जहां सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को अमल में लाने के लिए कहा गया है।

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बदलाव को लेकर एक अहम पहल

साथ ही रैगिंग के बदलते स्वरूप और उससे जुड़ी नई-नई चुनौतियों को देखते इनमें बदलाव को लेकर भी एक अहम पहल की है। जिसमें रैगिंग के दायरे को पूर्व की तुलना में और विस्तार दिया जा सकता है। साथ ही रैगिंग मामले में छात्र और माता- पिता के साथ संस्थानों में शीर्ष पदों पर बैठे लोगों की भी जवाबदेह बनाने की तैयारी है।

संस्थानों को भी जवाबदेह बनाने का दिया निर्देश

यूजीसी ने यह पहल ऐसे समय की है, जब रैगिंग को लेकर कलकत्ता और उत्तराखंड हाईकोर्ट हाल ही में काफी सख्त टिप्पणी कर चुका है। साथ ही ऐसे मामलों में संस्थानों को भी जवाबदेह बनाने के निर्देश दिया है। वैसे भी जो देखने को मिलता है, उनमें उच्च शिक्षण संस्थान अक्सर रैगिंग की घटनाओं को बदनामी के डर से छुपाते रहते है।

आइआइटी खड़गपुर रैगिंग मामला

साथ ही शिकायतों की जांच में वह इस बात को सिद्ध करने की कोशिश में रहते है कि शिकायत झूठी है। हाल ही में आइआइटी खड़गपुर के रैगिंग से जुड़े एक मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट ने संस्थान के निदेशक की ओर से पेश की गई रिपोर्ट को भ्रामक बताते हुए जमकर फटकार भी लगाई थी।

यूजीसी ने किया रैगिंग के नियमों में जरूरी बदलाव

इसी तरह उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी रैगिंग से जुड़े एक मामले की सुनवाई में संस्थान के प्रमुखों की जवाबदेही तय करने को कहा था। सूत्रों के मुताबिक यूजीसी ने रैगिंग के नियमों में जरूरी बदलाव की यह तैयारी तब शुरु की है, जब शिकायतों का स्वरूप भी तेजी से बदल रहा है। साथ ही संस्थानों का रुख इसे सख्ती से रोकने की जगह सिर्फ खानापूर्ति तक ही सिमटकर रह गया है।

किसकी जवाबदेही होगी तय?

विश्वविद्यालयों और शीर्ष उच्च शिक्षण संस्थानों को छोड़ दे तो बड़ी संख्या में कालेजों में इसे लेकर कोई तंत्र ही विकसित नहीं किया गया है। फिलहाल नई प्रस्तावित व्यवस्था के तहत रैगिंग के मामले में छात्र और उसके माता-पिता के साथ ही संस्थान के शीर्ष पदों पर बैठे व्यक्ति की भी जवाबदेही तय होगी। जिसमें इनके खिलाफ जुर्माना और सजा जैसी सिफारिश भी की जा सकती है।

रैगिंग के मौजूदा नियम वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद बने थे। वर्ष 2016 में इनमें कुछ बदलाव भी किए गए थे। मौजूदा नियमों के तहत किसी भी छात्र को रंग, प्रजाति, धर्म, जाति, लिंग आदि आधार पर शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना को रैगिंग माना जाता है।