नई दिल्ली,  सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा बच्चों के हितों की दुहाई देते हुए समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता का विरोध किये जाने पर कहा कि भारतीय कानून किसी एक व्यक्ति को वैवाहिक स्थिति के बावजूद बच्चे को गोद लेने की इजाजत देते हैं। कोर्ट ने कहा कि कानून मानता है कि अपना बच्चा रखने के आदर्श परिवार के अलावा भी स्थिति हो सकती है।

बच्चा गोद लेने की संस्था कारा के नियम कानूनों का दिया हवाला

लिंग की अवधारणा अस्थिर हो सकती है लेकिन मां और मातृत्व नहीं। भाटी ने अपनी दलीलों के समर्थन में मां और बच्चों को संरक्षण देने वाले विभिन्न कानूनों और बच्चा गोद लेने की संस्था कारा के नियम कानूनों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि सारे कानून विपरीत लिंगीय शादी की अवधारणा पर आधारित हैं। बच्चा गोद लेने के नियमों में भी दो वर्ष की स्थाई शादी की रिलेशनशिप होने की शर्त है।

भाटी ने कहा कि बच्चा गोद देने के नियम कानून काफी समग्र हैं। उन्होंने बच्चा गोद देने की मौजूदा स्थिति बताते हुए कहा कि करीब 30 हजार परिवार पंजीकृत हैं जो बच्चा गोद लेने की पात्रता रखते हैं जबकि गोद देने के लिए लीगली फ्री बच्चों की संख्या करीब 1500 है। ऐसा इसलिए है कि गोद दिए जाने वाला बच्चा कानूनी तौर पर पूरी तरह गोद देने के लिए फ्री होना चाहिए।