बेंगलुरु। कर्नाटक में कांग्रेस के चुनाव प्रबंधन की रणनीति कामयाबी की किस दहलीज तक पहुंच पाई यह तो 13 मई के नतीजों से साफ होगा, मगर इसमें संदेह नहीं कि जब प्रचार अभियान सोमवार को समाप्त हो रहा है तो उम्मीदवारों के चयन से लेकर सियासी रणनीति के हिसाब से ऐसा विरले ही देखा गया है कि पार्टी का चुनावी अभियान अपने ट्रैक से नहीं उतरा है।

पार्टी की चुनावी रणनीति-प्रबंधन के मुख्य सूत्रधार प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला की चौबीसों घंटे निगरानी में पार्टी के इस नए चुनावी माडल में स्थानीय नेताओं और स्थानीय मुद्दों को शुरू से आखिर तक सर्वोपरि रखा गया है। बजरंग बली और जहरीले सांप जैसे कुछ एक झटकों से उबरने में दिखाई गई तत्परता और आक्रामकता के बीच कांग्रेस चुनाव को स्थानीय मुद्दों और स्थानीय चेहरों के ईद-गिर्द रखने की अपनी रणनीति में सफल दिख रही है।

कर्नाटक में चुनावी सफलता मिली तो कांग्रेस के लिए यह माडल आने वाले दूसरे राज्यों के विधानसभा चुनाव में प्रभावशाली चुनाव प्रबंधन माडल साबित हो सकता है, क्योंकि लंबे अर्से से इसकी कमजोरी ही पार्टी के पराजयों का बड़ा कारण रही है। उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर में चुनावी प्रबंधन की कमजोरी दूर करने के लिए पार्टी में अलग तंत्र बनाने की घोषणा पर अभी अमल होना बाकी है और ऐसे में कर्नाटक में रणदीप सुरजेवाला की चुनावी रणनीति का प्रबंधन पार्टी के लिए उदाहरण बन सकता है।

कर्नाटक में चुनावी प्रबंधन में स्पष्ट है कि स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेताओं को आगे रखने की रणनीति ज्यादा प्रभावी है और कांग्रेस को दिल्ली नियंत्रित-संचालित रणनीति का मोह छोड़ने पर गौर करने की जरूरत है। कर्नाटक के इस प्रयोग का नतीजा है कि चुनाव प्रचार के दौरान शीर्षस्थ नेताओं मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी सरीखे नेताओं के साथ सूबे और जिले के नेता ही ईद-गिर्द दिखाई दे रहे हैं।

राष्ट्रीय नेताओं और प्रवक्ताओं को कर्नाटक के मुद्दों की लक्ष्मण रेखा नहीं लांघने के स्पष्ट निर्देश थे और इस पर अमल किस कदर हुआ यह इसका एक उदाहरण है कि राहुल गांधी ने अदाणी, चीन ही नहीं संसद में बोलने से रोकने के लिए लोकसभा सदस्यता खत्म किए जाने के अपने प्रमुख मुद्दों को चुनाव में उठाने से परहेज किया।

बेंगलुरु स्थित चुनावी वार रूम के सुबह साढ़े सात बजे से लेकर देर रात दो-ढाई बजे तक संचालन समीक्षा के साथ प्रचार दौरों की व्यस्तताओं के बीच सुरजेवाला लगातार चुनावी अभियान की मानीटरिंग कर रहे थे। इसमें संदेह नहीं कि नतीजे तो जनता तय करेगी, मगर कांग्रेस की चुनावी बढ़त की हवा बनाने में तो कम से कम यह माडल पहली नजर में प्रभावी दिखा है।