Shingles Vaccine: शिंगल्‍स (Shingles) स्किन से जुड़ी एक बीमारी है, जिसका अटैक कमजोर इम्यून सिस्टम वालों पर ज्यादा होता है। 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के साथ डायबिटीज, दिल और किडनी की बीमारी जैसी समस्याओं से पीड़ित लोगों में शिंगल्स की बीमारी पनपने का खतरा ज्यादा रहता है, क्योंकि ऐसे लोगों की इम्युनिटी इन बीमारियों की वजह से कमजोर होने लगती है।हाल ही में ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithkline) फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने भारत में शिंगरिक्स (जोस्टर वैक्सीन रीकॉम्बिनेंट, एडजुवेंटेड) टीका लॉन्च करने की घोषणा की है। यह 50 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों को शिंगल्स (हर्पेस जोस्टर) की बीमारी और पोस्ट-हर्पेटिक न्यूरल्जिया से बचाने में सहायक है।

शिंगरिक्स दुनिया की पहली नॉन-लाइव, रीकॉम्बिनेंट सबयूनिट वैक्सीन है, जो इंजेक्शन से माध्यम से दो डोज के रूप में मांसपेशियों में लगाई जाती है। शिंगल्स की समस्या शरीर में वेरिसेला जोस्टर वायरस (वीजेडवी) के दोबारा एक्टिव होने से पैदा होती है। यह वही वायरस है जो शरीर में चिकनपॉक्स यानी चेचक का कारण बनता है।

किस वजह से होता है शिंगल्स की समस्या?

शिंगल्स उस वायरस की वजह से फैलता है जिसकी वजह से चिकनपॉक्‍स होता है। चिकनपॉक्‍स होने के बाद वायरस वेरिसेला ज़ोस्टर (Varicella Zoster) शरीर के स्नायुओं (Nerves) में लंबे समय तक निष्क्रिय (Dormant) पड़ा रहता है। यह दो से पांच दशकों तक या और भी लंबे समय तक इसी अवस्था में शरीर में पड़ा रह सकता है। जब भी शरीर की इम्‍युनिटी कमज़ोर होती है तो ये वायरस फिर से एक्टिव हो जाता है और शिंगल्‍स का कारण बनता है। इस कंडीशन की वजह से शरीर में चकत्ते (Rash) हो जाते हैं और या तेज चुभन के साथ दर्द महसूस होता है। वैसे शिंगल्स की समस्या कई बार तनाव, चोट, कुछ दवाओं के रिएक्शन या और दूसरे कारणों से भी हो सकती है। 

किन्हें होता है शिंगल्स का ज्यादा खतरा?

जैसे-जैसे इंसान की औसत उम्र बढ़ रही है, 'इम्युनोसेनेसेंस (immunosenescence)' का खतरा भी आम होता जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि इंसान की उम्र बढ़ने पर इम्युनिटी घटती है और यह प्रक्रिया 50 वर्ष की आयु के आसपास शुरू होती है। अब औसत उम्र बढ़ रही है और लोग 50 साल से ज्यादा जी रहे हैं। इस वजह से लोगों की इम्युनिटी कम होने लगती है और और उन्हें शिंगल्स होने का जोखिम अधिक होता है।

कोविड-19 महामारी के बाद शिंगल्स के मामलों में तेजी देखी गई है जो कि कोविड-19 द्वारा मरीजों की इम्युनिटी पर असर डालने की वजह से हो सकता है। इसके अलावा, डायबिटीज, एचआईवी, कैंसर और किडनी या लिवर ट्रांसप्लांट करवा चुके मरीजों में भी कमजोर इम्युनिटी के कारण शिंगल्स का खतरा रहता है। कुछ मरीज़ ‘इम्‍युनोमॉड्यूलेटर्स (immunomodulators)’ पर होते हैं और इस वजह से उनकी इम्‍युनिटी कम हो जाती है और ऐसे में वे भी शिंगल्स की चपेट में आ सकते हैं। इम्‍युनोमॉड्यूलेटर्स का प्रयोग आर्थराइटिस, लुपस और कुछ चर्म रोगों में होता है।

शिंगल्स की वजह से होने वाले अन्य खतरे

शिंगल्स की वजह से होने वाली सबसे सामान्य किस्म की जटिलता पोस्ट-हर्पेटिक न्यूराल्जिया (Post-herpetic neuralgia) है। इसमें उन स्‍थानों के स्‍नायुओं में दर्द (नर्व पेन) होता है जहां रैश होते हैं और यह दर्द रैश हटने के कई महीनों या सालों बाद भी बना रह सकता है। इसका दर्द कई बार क्रोनिक कैंसर पेन से भी अधिक होता है। मरीज़ों को इस दर्द से छुटकारा पाने के लिए कई किस्‍म की दवाइयां लेनी होती है और उन्हें इसके लिए अच्छा खासा खर्च करना पड़ता है। इसके बावजूद उन्‍हें पूरा आराम नहीं मिलता। इसके अलावा, शिंगल्‍स के कारण रैश में सेकंडरी बैक्‍टीरियल इंफेक्‍शन हो जाता है। साथ ही मरीज निमोनिया, नेत्रहीनता, श्रवण शक्ति का जाना और मस्तिष्क संबंधी कई स्समयाओं का शिकार हो जाते हैं।

छूने से नहींं फैलता शिंगल्‍स

शिंगल्स के शिकार मरीज़ों के सीधे संपर्क में आने वाले व्यक्ति को इसके होने का खतरा नहीं होता है। लेकिन अगर उन्हें पहले कभी चिकनपॉक्‍स नहीं हुआ है तो चिकनपॉक्स होने का खतरा बना रहता है।