निकहत जरीन के लिए एक मुक्केबाज के रूप में करियर बनाना आसान नहीं था। हैदराबाद के एक मुस्लिम परिवार में जन्मीं निखत ने रुढ़िवादी विचारों के खिलाफ जाकर बॉक्सर बनने का फैसला किया और अब देश का नाम रोशन कर रही हैं। 

Sponsored

चाणक्य एकेडमी बूंदी (राजस्थान )

बूंदी के सभी विधार्थियो के लिए खुशखबरी...अब 1 जुलाई से चाणक्य एकेडमी फिर से सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के नए बैच प्रारंभ करने जा रही है। जिसमे आप CET/पटवार/LDC शिक्षक भर्ती REET सभी भर्तियों के लिए आवेदन कर सकते हैं। अभी प्रवेश पर आपको 30% की छूट दी जाएगी। चाणक्य की अनुभवी फैकल्टी द्वारा आपको अध्ययन कराया जाएगा।

महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों ने शानदार खेल दिखाया है। मौजूदा समय में देश की सबसे बेहतरीन और लोकप्रिय मुक्केबाज निकहत जरीन ने भी देश के लिए स्वर्ण पदक जीता है। निकहत जरीन ने 48-50 किग्रा भारवर्ग में देश के लिए पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया है। उन्होंने लगातार दूसरी बार यह प्रतियोगिता अपने नाम की है। 

निकहत जरीन ने महिला विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में भारत को तीसरा स्वर्ण पदक दिलाया है। उन्होंने वियतनाम की न्यूगेन थी ताम को फाइनल में मात दी। निकहत से पहले ही स्वर्ण पदक की उम्मीद की जा रही थी और उन्होंने आशा अनुसार प्रदर्शन कर देश को पदक दिलाया है। फाइनल मैच में निकहत ने शुरुआत से ही शानदार प्रदर्शन किया। पहले राउंड में उन्होंने 5-0 की बढ़त बना ली थी। इसके बाद दूसरे राउंड में भी उन्होंने अपनी बढ़त जारी रखी। तीसरे राउंड में उन्होंने वियतनाम की मुक्केबाज को शानदार पंच जड़ा। इसके बाद रेफरी ने मैच रोककर वियतनाम की मुक्केबाज का हाल-चाल जाना। यहीं से निकहत की जीत तय हो गई थी। अंत में उन्होंने यह मुकाबला 5-0 के अंतर से अपने नाम किया और लगातार दूसरी बार बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीत ली।

इस चैंपियनशिप के दौरान निकहत की मां भी मैच देखने पहुंची थीं। इसके साथ ही निकहत के लिए यह चैंपियनशिप खास बन गई। उन्होंने बताया कि उनकी मां पहली बार किसी चैंपियनशिप में उन्हें पहली आंखों के सामने खेलने देखने आईं। निकहत कहती हैं कि पहले तो मां रिंग में उतरने की बात पर ही परेशान हो जाती थीं, लेकिन पिछली विश्व चैंपियनशिप के स्वर्ण के बाद वह थोड़ा मजबूत हुई हैं। यही कारण है कि वह इस चैंपियनशिप में उन्हें खुद खेलते देखने आई हैं। मार पड़ती है तो मां थोड़ा परेशान होती हैं, लेकिन अब वह समझ गई हैं। निकहत चाहती थीं कि यहां स्वर्ण जीतकर एक बार फिर इसे अपनी मां के गले में डालें और उनका यह सपना पूरा हो गया है। 

कैसा रहा निकहत का सफर
निकहत के लिए बॉक्सिंग में करियर बनाना आसान नहीं था। उनका जन्म तेलंगाना के निजामाबाद में 14 जून 1996 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद जमील अहमद और मां का नाम परवीन सुल्ताना है। निकहत के परिवार में उनसे बड़ी दो बहनें और एक छोटी बहन है। चार बेटियों के पिता जमील अहमद सेल्समैन का काम करते हैं और मां गृहणी हैं। 


निकहत ने महज 13 साल की उम्र में बॉक्सिंग शुरू कर दी थी, लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं था। समाज की तरफ से उन पर हिजाब पहनने का दबा डाला गया। उनके शॉर्ट्स पहनने पर भी आपत्ति जताई गई। हालांकि, निकहत के पास उनके परिवार का समर्थन था और वह इन सब चीजों से लड़ते हुए कड़ी प्रैक्टिस पर लगी रहीं। निकहत के पिता जमील अहमद खुद पूर्व फुटबॉलर और क्रिकेटर रह चुके हैं। ऐसे में उन्होंने बेटी को खेल में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया। निकहत लड़कों के साथ प्रैक्टिस करती थीं और इस पर कई तरह की बातें की जाती थीं, लेकिन वह सब कुछ अनसुना करते हुए लगी रहीं। 

निकहत ने अपनी शुरुआती शिक्षा निजामाबाद के निर्मला हृदय गर्ल्स हाई स्कूल से ही पूरी की। बाद में हैदराबाद के एवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की। इस बीच निकहत बॉक्सिंग भी सीखती रहीं। निकहत के चाचा शमशामुद्दीन एक बॉक्सिंग कोच हैं और उनका बेटा भी मुक्केबाज है। ऐसे में निकहत ने उनसे बॉक्सिंग सीखना शुरू किया। 

कॉलेज में ही शुरू हुआ बॉक्सिंग करियर
ग्रेजुएशन के दौरान एवी कॉलेज से ही निकहत ने बॉक्सिंग करियर की शुरुआत की। उन्हें पहली सफलता साल 2010 में मिली। 15 साल की निकहत ने नेशनल सब जूनियर मीट में शानदार प्रदर्शन किया।  उसके बाद साल 2011 में तुर्की में हुए महिला जूनियर यूथ वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में फ्लाई वेट में गोल्ड जीता। उस साल निकहत ने अंतर्राष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ महिला युवा और जूनियर विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड जीत कर बॉक्सिंग में अपनी स्थिति को मजबूत कर लिया। निकहत ने बैंकॉक में हुए ओपन इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में रजत पदक हासिल किया। साल 2014 में नेशनल कप इंटरनेशनल बॉक्सिंग टूर्नामेंट में स्वर्ण जीता।