पूर्वोत्तर राज्य असम में युनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (अल्फा-स्वाधीन) ने शनिवार को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी स्वतंत्रता दिवस के मौके पर असम में बंद का आह्वान किया है। संगठन ने असम में स्वतंत्रता दिवस के जश्न पर आपत्ति जताते हुए कहा कि ये राज्य कभी औपनिवेशिक भारत का हिस्सा नहीं था। हालांकि, जरूरीकालीन सेवाओं, संवाद माध्यम, धार्मिक संस्थानों को बंद से छूट दी गई है।
ओम धगाल - पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा युवा मोर्चा
ओम धगाल की और से हिंडोली विधानसभा क्षेत्र एवं बूंदी जिले वासियों को रौशनी के त्यौहार दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
ज्ञात हो कि कोरोना महामारी के चलते अल्फा-स्वाधीन ने विगत वर्ष के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कोई बंद का आह्वान नहीं किया था।अल्फा-स्वाधीन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यंदाबू की संधि के दूसरे लेख का हवाला दिया, जिस पर 24 फरवरी, 1826 को ईस्ट इंडिया कंपनी और बर्मा के बीच हस्ताक्षर किए गए थे। संगठन ने एक बयान में कहा है, संधि के दूसरे आर्टिकल के अनुसार बर्मा और ईस्ट इंडिया कंपनी ने असम की संप्रभुता को स्वीकार कर लिया था और राज्य को ब्रिटिश भारत में स्थानांतरित नहीं किया गया था।
अल्फा-स्वाधीन ने कहा कि वह ऐतिहासिक तथ्यों को सामने रखकर और संगठन के उद्देश्य के अनुरूप असम की संप्रभुता पर चर्चा के लिए तैयार हैं।आपको बता दें कि यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असोम (उल्फा) असम का एक उग्रवादी संगठन है। इस संगठन की स्थापना 1979 में हुई थी। ये संगठन सरकार से अपने स्वदेशी लोगों के लिए एक स्वतंत्र और अलग राज्य की मांग करता है। इसके लिए ये संगठन अधिकतर सशस्त्र संघर्ष का सहारा लेता है। परेश बरुवा इस संगठन के संस्थापक रहे हैं। ये संगठन ट्रेनिंग और हथियार खरीदने के लिए म्यांमार काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी और नेशनलिस्ट सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड से जुड़ा, जिसके बाद अल्फा का खूनी खेल शुरू हो गया। 1990 में भारत सरकार ने इस संगठन को बैन कर दिया था।