खरमास खत्म होते ही राजस्थान कांग्रेस में खटपट तेज हो गई है. यात्रा पर निकले सचिन पायलट की तुलना सीएम अशोक गहलोत ने इशारों में कोरोना वायरस से की है. अशोक गहलोत ने एक मीटिंग में कहा कि मेरे पार्टी में भी 2020 के बाद एक कोरोना सक्रिय हो गया. इधर, पायलट ने एक रैली में कहा कि 32 सलाखों के पीछे एक बिना हड्डी वाला जीभ होता है. इसे सोच समझ कर चलाना चाहिए. 

पायलट भी गहलोत सरकार पर हमलावर हैं और रैली में तल्ख बयानों से नाकामियों पर निशाना साध रहे हैं. चुनावी साल में पायलट और गहलोत के बीच शुरू जुबानी जंग ने हाईकमान की टेंशन फिर से बढ़ा दी है. राहुल की भारत जोड़ो यात्रा तक कांग्रेस आलाकमान ने राज्य में सीजफायर का फॉर्मूला लागू किया था. 

29 महीने का तकरार अब चरम पर

सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जुलाई 2020 में राजनीतिक तकरार शुरू हुआ. उस वक्त करीब 20 विधायकों को लेकर पायलट मानेसर पहुंच गए. कांग्रेस हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद पायलट मान गए और सुलह-समझौते की बात शुरू हुई. 

कांग्रेस ने तत्कालीन समझौते के तहत सचिन पायलट खेमे के 5 विधायकों को मंत्री बनवाया. साथ ही पायलट गुट के नेताओं को संगठन में भी जगह दी गई, लेकिन दोनों के बीच तकरार जारी रहा. इसके पीछे की बड़ी वजह आनुपातिक हिस्सेदारी और सीएम की कुर्सी है.

सीएम कुर्सी पर पायलट का दावा

चुनावी साल में सचिन पायलट सीएम कुर्सी पर दावा ठोक रहे हैं. पायलट गुट का कहना है कि रिवाज पॉलिटिक्स की वजह से राजस्थान में हरेक 5 साल में सरकार बदल जाती है. सीएम रहते हुए गहलोत खुद 2 बार चुनाव हार चुके हैं.

ऐसे में अगर चुनाव जीतना है, तो मुख्यमंत्री बदला जाए. सचिन पायलट को हाईकमान से इसका आश्वासन भी मिला था, लेकिन सितंबर 2022 के घटनाक्रम के बाद स्थिति बदल चुकी है.