बाड़मेर जिले के चौहटन में कुदरत का हार्वेस्टिंग सिस्टम न केवल चौहटन के लिए वरदान होने के साथ-साथ पानी की आपूर्ति करता है, बल्कि आसपास के गांवो के लिए भी पानी की जीवन रेखा बना हुआ है। चौहटन के पहाड़ धार्मिक स्थलों की वजह से देशभर में पहचाना जाता है। पहाड़ों के पीछे की तरफ वैर माता का मंदिर है। इसके सामने ऊंचा धोरा भी है। बरसात के दौरान पहाड़ से आने वाला पानी इकट्‌ठा होकर पहाड़ और धोरे के बीच में नदी के रूप में चलता है, इस कारण इसका नाम रेल नदी पड़ा है। पानी 10 किलोमीटर तक चलकर चीपल नाडी में पहुंचता है।

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वैर का थान से पानी बहाव के साथ रेल नदी का रूप धारण करते हुए चीपल नाडी पानी इकट्‌ठा होता है।

दरअसल, बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 65-70 किलोमीटर दूर चौहटन वीरात्रा मंदिर है। मंदिर दर्शन करने के लिए देशभर से लोग यहां पहुंचते है। मंदिर पहाड़ो से गिरा हुआ है। वहीं पहाड़ी पर वांकल मंदिर दर्शन करने के लिए लोग आते है। बारिश में पहाड़ो से निकलने वाला पानी इकट्‌ठा होकर पहाड़ व धोरे के बीच में नदी का रूप ले लेता है। इसके कारण लोग रेल नदी के नाम से पहचानते है। यह पानी 10 किलोमीटर चलकर चीपल नाडी में पहुंचता है। इसके किनारे करीब 15 ट्यूबवैल खुदे है। इनसे चौहटन की आबादी सहित आसपास के गांवो की करीब 35 हजार की आबादी पानी उपलनब्ध होता है।

पहाड़ों ओर धोरे के बीच चलती है रेल नदी। पहाड़ों से गिरता पानी झरने का रूप ले लेता है।

वैर का थान से चीपल नाडी 10 किलोमीटर का सफर

रेल नदी का नाम स्थानीय भाषा में पानी का रेला से पड़ा है। नदी की शुरूआत वैर का थान मंदिर के आसपास से होता है। तेज बारिश के दौरान करीब एक किलोमीटर की परिधि में फैले पहाड़ से पानी तलहटी तक आता है और फिर रेल नदी के रूप में बहाव शुरू होता है। धोरे और पहाड़ के बीच शुरूआत में यह करीब 100 मीटर चौड़ाई में बहती है, कस्बे के पास पहुंचते ही बीस से पच्चीस मीटर तक रहती है। इसके बाद चीपल नाडी के पास पहुंचने पर इसका 100 मीटर दुबारा फैल जाती है और आगोर से होकर चीपल में पानी प्रवेश कर जाता है। पहाड़ों की चारों दिशाओं में धार्मिक स्थल होने के कारण इससे बहने वाली पानी को पवित्र माना जाता है और पंचकोसी यात्रा के दौरान ग्रामीण चीपल में स्नान करते है। चीपल नाडी के एक साल तक बरसाती पानी उपलब्ध रहता है।

कुदरत का हार्वेस्टिंग सिस्टम, इससे ट्यूबवैल रिचार्ज होने के साथ, आसपास के 35 हजार आबादी की प्यास बुझाता है।

रेल नदी नाम से पहचान

चौहटन कस्बे के सबसे पुराने पहाड़ी का पानी रेहले के रूप में बहने के कारण इसे बड़े नाले का नाम रेल नदी पड़ गया। पहाड़ों के बीच में चलने वाली पानी बारिश में सुंदरता बयां करता है। वहीं पहाड़ों से गिरने वाला पानी झरनें के रूप में बहता है जिस देखने के लिए लोगों को हुजूम उमड़ जाता है।

अतिवृष्टि से परेशानी

बारिश के समय पहाड़ो से गिरने वाला पानी झरने का रूप ले लेता है। ज्यादा बारिश होने की वजह से कई बार लोगों को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। आसपास के लोगों के घर पानी से भर जाते है। वहीं मंदिर के आसपास खड़े वाहन भी पानी में बह जाते है।