गुजरात चुनाव में पाटीदार (Patidar) समेत अनुसूचित जाति और अनुसूचित (SC/ST) जनजाति मतदाताओं के वर्चस्व वाली सीटें किसी भी पार्टी की प्रचंड जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. भूमि धारक और कृषि जाति पाटीदार गुजरात (Gujarat) की समग्र आबादी में 12 फीसदी हैं. यही नहीं, पाटीदार राज्य की राजनीति में भी महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) का पाटीदार वोटबैंक थोड़ा सा दरका था. पाटीदार मतदाताओं के वर्चस्व वाली 40 विधानसभा सीटों में बीजेपी को 24 पर जीत मिली थी. कांग्रेस (Congress) भी 15 सीटों पर जीत का परचम फहरा बीजेपी को पहली बार दहाई के अंकों तक समेटने में सफल रही थी. पाटीदार की तर्ज पर गुजरात में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति बाहुल्य वाली 50 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन चुनावों में किसी पार्टी की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है. हालांकि अगर पिछले दो चुनावों के नतीजों को देखें तो कोई भी एक पार्टी मतदाताओं के इस तबके पर वर्चस्व का दावा नहीं कर सकती है. इस बार के विधानसभा चुनाव (Gujarat Elections 2022) में बीजेपी इन दो समुदायों के मतदाताओं पर नजरें गड़ाए है.
पाटीदार प्रभुत्व वाली विधानसभा सीटें
2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 28 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि कांग्रेस के हाथ महज 9 सीटें ही आई थीं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पाटीदार प्रभुत्व वाली 40 में से 24 सीटों से संतोष करना पड़ा. पिछली बार कांग्रेस ने सौराष्ट्र में परचम फहराया, तो बीजेपी का अहमदाबाद और गांधीनगर की शहरी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में कई बातें गईं. अन्य पिछड़ी जातियों का दर्जा और आरक्षण का लाभ लेने के लिए पाटीदार आंदोलन चरम पर था. हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पाटीदार आंदोलन ने समुदाय के मतदाताओं को बीजेपी से विमुख कर दिया. यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि कांग्रेस को हार्दिक पटेल के समर्थन ने उसके प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद की.