यज्ञ चिकित्सा का दूसरा नाम 'यज्ञोपैथी' है। यह चिकित्सा की विशुद्ध वैज्ञानिक पद्धति है, जो सफल सिद्ध हुई है। भिन्न-भिन्न रोगों के लिए विशेष प्रकार की हवन सामग्री प्रयुक्त करने पर उनके जो परिणाम सामने आए हैं, वे बहुत ही उत्साहजनक हैं। यज्ञोपैथी में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि आयुर्वेद शास्त्रों में जिस रोग की जो औषधि बताई गई है, उसे खाने के साथ ही उन वनौषधियों को पलाश, उदुम्बर, आम, पीपल आदि की समिधाओं के साथ नियमित रूप से हवन भी किया जाता रहे, तो कम समय में अधिक लाभ मिलता है। 

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ओम धगाल - पूर्व प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य भाजपा युवा मोर्चा

ओम धगाल की और से हिंडोली विधानसभा क्षेत्र एवं बूंदी जिले वासियों को रौशनी के त्यौहार दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

यज्ञोपौथी का मूल सिद्धांत

यज्ञोपौथी का मूल सिद्धांत ही यह है कि जो वस्तु जितनी सूक्ष्म होती जाती है, वह उतनी ही अधिक शक्तिशाली एवं उपयोगी बनती जाती है। विशिष्ट मंत्रों के साथ जब औषधियुक्त हविर्द्रव्यों का हवन किया जाता है, तो यज्ञीय ऊर्जा से पूरित धूम्र ऊर्जा रोगी के शरीर में रोम छिद्रों एवं नासिका द्वारा अंदर प्रविष्ट करती है और शारीरिक एवं मानसिक रोगों की जड़ें कटने लगती हैं। इससे रोगी शीघ्र ही रोगमुक्त होने लगता है।  

अथर्ववेद के तीसरे कांड के 'दीर्घायु प्राप्ति' नामक ११ वें सूक्त में ऐसे अनेक प्रयोगों का उल्लेख है, जिनमें यज्ञाग्नि में औषधीय सामग्री का हवन करके कठिन से कठिन रोगों का निवारण एवं जीवनी शक्ति का संवर्द्धन किया जा सकता है।

टी.बी. रोग की विशेष हवन सामग्री

1. रुदंती

2. रुद्रवंती

3. शरपुंखा

4. जावित्री

5. बिल्व की छाल

6. छोटी कंटकारी

7. बड़ी कंटकारी

8. तेजपत्र

9. पाढ़ल

10. वासा

11. गंभारी

12. श्योनाक

13. पृश्निपर्णी

14. शालिपर्णी

15. शतावर

16. अश्वगंधा

17. जायफल

18. नागकेशर

19. शंखाहुली (शंखपुष्पी) 

20. नीलकमल

21. लॉंग

22. जीवंती

23. कमलगट्टा की गिरी

24. मुनक्का

25. मकोय

26. केशर

इन सभी २६ चीजों का पाउडर बनाकर हवन करने के लिए एक अलग डिब्बे में रखना है।  ये ज्यादा बारीक़ नहीं हो तो भी चलेगा  ।  बारीक़  पाउडर को सुबह-शाम खाने के लिए एक अन्य डिब्बे में अलग कर लेना चाहिए। खाने वाले बारीक पाउडर को हवन करने के पश्चात् सुबह एवं शाम को एक-एक चम्मच घी एवं शक्कर के साथ नियमित रूप से लेते रहने से शीघ्र लाभ मिलता है। 

क्या नहीं खाये 

क्षय रोगी को ठंडी एवं खट्टी चीजों का परहेज अवश्य करना या कराना चाहिए।

हवन करते समय की विशेष बातें 

अगर, तगर, देवदार, चंदन, लाल चंदन, गुग्गुल, लौंग, जायफल, गिलोय, चिरायता, अश्वगंधा और घी, जौ, तिल, शक्कर, मिले होते हैं, उसे भी क्षय रोग के लिए बनाई गई विशेष हवन सामग्री बराबर मात्रा में मिलाकर तब हवन करना चाहिए।

कोनसी लकड़ी ले -पीपल, गूलर, पाकर, पलाश, शमी, देवदार, सेमल।  इनके न मिलने पर छालयुक्त सूखी आम की लकड़ी ले सकते है। 

हवन सामग्री के निरंतर प्रयोग से हवन करने से क्षय रोग को समूल नष्ट किया और दीर्घायुष्य प्राप्त किया जा सकता है।