कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मालवा-निमाड़ की 26 सीटों से गुजरेगी। इन सीटों पर पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। लेकिन राहुल के सामने वर्तमान में कांग्रेस की स्थिति को लेकर बड़ी चुनौती है।

मध्यप्रदेश के मालवा-निमाड़ अंचल में कांग्रेस के पास 14 विधानसभा सीटें थीं। जबकि बीजेपी 11 सीटों को ही हासिल कर सकी थी। दो जिले तो ऐसे थे, जहां बीजेपी का खाता ही नहीं खुला था। बाद में कांग्रेस के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो गए। 

आश्चर्य की बात यह है कि इन 25 सीटों में से दो सीटों पर निर्दलीय विधायक हैं और वे कांग्रेस को समर्थन देकर अब तक अपनी वफादारी निभा रहे हैं। मालवा-निमाड़ में कांग्रेस गुटों में बंटी है और नेताओं की आपस में पटरी नहीं बैठती। कांग्रेस को नुकसान की एक वजह यह भी है। अब देखना यह है कि भारत जोड़ने निकले राहुल गांधी मालवा-निमाड़ में अलग-अलग गुटों में बंटे सेनापतियों को कैसे जोड़ सकेंगे?

इंदौर जिले में नौ विधानसभा सीटें हैं। तीन पर कांग्रेस, जबकि छह सीटों पर बीजेपी के विधायक हैं। कांग्रेस विधायकों की बात करें तो जीतू पटवारी और विशाल पटेल को दिग्विजय सिंह खेमे का माना जाता है। संजय शुक्ला पहले सुरेश पचौरी से जुड़े थे, लेकिन पिछले कुछ समय से उनका कमलनाथ से जुड़ाव मजबूत हुआ है। साल 2018 में तुलसी सिलावट जीते थे, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में शामिल हुए और आज ताकतवर मंत्रियों में से एक हैं। 

खरगोन: साल 2018 में बीजेपी को एक भी सीट नहीं थी

खरगोन की छह विधानसभा सीटों में से पांच कांग्रेस के और एक निर्दलीय विधायक हैं। हालांकि, बाद में बड़वाह विधायक सचिन बिरला ने बीजेपी का दामन थाम लिया। यह बात अलग है कि अब तक कांग्रेस उनकी सदस्यता खत्म नहीं करा सकी है। बिरला को खंडवा के पूर्व सांसद अरुण यादव का कट्टर समर्थक माना जाता था। उनके जाने को यादव की कांग्रेस लीडर्स की नाराजगी से जोड़ा जाता है। खरगोन विधायक रवि जोशी की पटरी यादव परिवार से नहीं बैठती। विजयलक्ष्मी साधौ सबको साधकर चलने की कोशिश करती है।