देव शिल्पी वास्तु शास्त्री विश्वकर्मा ने सूर्य की धूल एकत्र की और तीन वस्तुएं बनाईं। एक था भगवान शिव का त्रिशूल, दूसरा था पुष्पक वामन और तीसरा था सुदर्शन चक्र। वास्तु की तीनो श्रेष्ठ रचनाये है। 

हमारे धार्मिक ग्रंथो में सुदर्शन चक्र के उपयोग ब्रह्मांड में कानून और व्यवस्था की रक्षा और बुरी ताकतों को खत्म करने के लिए एक महत्वपूर्ण हथियार के रूप में वर्णित किया गया है। सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कई बार भगवान विष्णु और कृष्ण ने किया था। 

समुद्र मंथन के समय मंदराचल पर्वत को काटने के लिए किया गया था। भगवान विष्णु ने सती के शरीर को टुकड़ों में अलग करने के लिए सुदर्शन चक्र उठाया था। भगवान शिव अत्यधिक दुःख में थे और सती के शरीर को दाह संस्कार के लिए छोड़ने को तैयार नहीं थे। भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग किया और देवी सती के शरीर के अंगों को काट दिया। जिन स्थानों पर सती के शरीर के ये ५१ अंग गिरे थे, उन्हें "शक्ति पीठ" के रूप में पहचाना जाने लगा। 

भगवान कृष्ण ने शिशुपाल को मारने के लिए सुदर्शन चक्र का उपयोग किया था। कुरुक्षेत्र में सूर्यास्त का भ्रम पैदा करने के लिए सुदर्शन चक्र का भी इस्तेमाल किया जिससे अर्जुन को जयद्रथ को मारने में मदद मिली। जब इंद्रा ने वर्षा की तो ब्रिज को बचाने के लिए कृष्णा ने शेष नाग और सुदर्शन चक्र को तुरंत आने की आज्ञा दी और वे दोनों तत्क्षण वहाँ आकर उपस्थित हुए। चक्र ने पर्वत के ऊपर स्थित हो जल सम्पात को पिने लगे और नीचे कुण्डलाकार होकर शेष नाग ने सारा जल प्रवाह रोक दिया। गड्ढे के भीतर एक बूँद भी जल न जा सका।

सुदर्शन मंत्र

ॐ सुदर्शन महाज्वाल कोटिसूर्य सम्प्रभ ।

अवनं तस्यमे देव विष्णोर्मार्गम् प्रदर्शय॥

अर्थात 

ॐ सुदर्शन महाजवाला कोटिसुर सम्प्रभा। हे भगवान मुझे इस वन में विष्णु का मार्ग दिखाओ। 

सुदर्शन मंत्र का जाप विष्णु मार्गियों के लिए एक सशक्त सीढ़ी है। कभी भी मंत्र जाप करे तो शंकल्प करके करे और जाप के दौरान २ से ३ बार भाव को बढ़ाये। इससे जाप की शक्ति बहुत बढ़ जाती है।