दिल्ली और आसपास के इलाकों में हवा की गुणवत्ता एक बार फिर खराब स्तर तक पहुंच चुकी है. ऐसे में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग यानी कमिशन फॉर एयर क्वॉलिटी मैनेजमेंट (CAQM) ने रविवार (16 अक्टूबर) को एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के स्टेज-1 के मानकों को सख्ती से लागू करें.GRAP वायु प्रदूषण रोकने के तरीकों का एक ग्रुप है. हालात की गंभीरता के हिसाब से राजधानी दिल्ली और आसपास के इलाकों में इसका पालन किया जाता है.

दिल्ली में शनिवार (15 अक्टूबर) शाम चार बजे 24 घंटे का एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (AQI) 186 था, जो रविवार (16 अक्टूबर) शाम चार बजे और खराब होकर 232 एक्यूआई पर पहुंच गया. गाजियाबाद में एक्यूआई 286, फरीदाबाद में 229, ग्रेटर नोएडा में 258, गुरुग्राम में 231 और नोएडा में 258 रिकॉर्ड किया गया. बता दें कि जीरो से 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 से 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 से 200 के बीच ‘मध्यम’, 201 से 300 के बीच ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बेहद खराब’ और 401 और 500 को ‘गंभीर’ माना जाता है.

पिछले तीन महीने के दौरान दिल्ली में हवा की खराब क्वॉलिटी सबसे पहले पांच अक्टूबर को दर्ज की गई. इसके बाद कई दिन तक हुई बारिश से न सिर्फ खेतों में लगने वाली आग काबू में आई, बल्कि हवा भी साफ हो गई. 31 अगस्त, 2020 के बाद 10 अक्टूबर को दिल्ली ने सबसे साफ हवा (AQI 41) में सांस ली.

सीओपीडी के 65 फीसदी मरीज स्मोकिंग नहीं करते

नई दिल्ली के साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड डॉ. विवेक नांगिया ने बताया, ‘भारत में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के 35 फीसदी मामले सिगरेट और तंबाकू के इस्तेमाल की वजह से होते हैं, जबकि सीओपीडी के 65 फीसदी मरीज स्मोकिंग नहीं करते हैं.’

स्मोकिंग नहीं करने के बाद भी सीओपीडी से पीड़ित मामलों में ज्यादातर वे महिलाएं मिलती हैं, जो अपनी जिंदगी के शुरुआती दिनों में चूल्हे से निकलने वाले धुएं के संपर्क में आती हैं. इसके बाद सीओपीडी से वे लोग ज्यादा पीड़ित होते हैं, जो अपने कामकाज की वजह से धुएं की चपेट में आते हैं. इनमें फाउंड्री में काम करने वाले लोग ज्यादा पाए जाते हैं. इनके अलावा वायु प्रदूषण के कारण भी सीओपीडी की दिक्कत होती है. चाहे प्रदूषण घर के अंदर हो या घर के बाहर. डॉ. नांगिया ने कहा, ‘बचपन में बार-बार होने वाले संक्रमण के कारण यह बीमारी बड़ी उम्र में अनियंत्रित अस्थमा के रूप में भी सामने आ सकती है.’