हर मास का अपना महत्वा है परन्तु पूजा, व्रत और तप के लिए कार्तिक का विशेष महत्व है। स्कंध पुराण में बताया गया है - न कार्तिकसमो मासो न कृतेन समं युगम्। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् । अर्थात कार्तिकके समान दूसरा कोई मास नहीं, सत्ययुगके समान कोई युग नहीं, वेदके समान कोई शास्त्र नहीं और गङ्गाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है।
कार्तिक में रखे इन बाटू का धयान -
१। कार्तिक का महीना धर्म, अर्थ , कमा और मोक्ष चारो दिलाने वाला है इस लिए इस माह में प्रातकाल उठ कर नहाने का विशेष महत्व है।
२। अन्ना का दान अवस्य करे। कुछ गुप्त दान भी करे।
३। कुंवारे, कुवारी और ब्राह्मण को अवले के पेड़ के नीचे भोजन कराये।
४। ये माह रोग विनाशक होता है , इस माह में तुलसी की पूजा आराधना का विशेष फल मिलता है।
५। जिन बच्चू में भय बना रहता है उनको इस माह में भूमि पर सायं करने से विशेष लाभ मिलता है।
सृष्टि का मूल आधार ही सूर्य है और सूर्य की स्थितियों के आधार पर दक्षिणायन और उत्तरायणका विधान है। उत्तरायणको देवकाल और दक्षिणायन को आसुरीकाल माना गया है। दक्षिणायनमें देवकाल न होनेसे सतगुणों के क्षरण से बचने और बचाने के लिये पुराणादि शास्त्रोंमें कार्तिकमासका विशेष महत्त्व निर्दिष्ट है। कर्क राशि पर सूर्य के आगमन के साथ ही दक्षिणायन काल का प्रारम्भ हो जाता है और कार्तिक मास इसी दक्षिणायन और चातुर्मास्यकी अवधिमें में होता है। इस लिए भी कार्तिक के महत्व को समझना चाहिए और कार्तिक पूजन करनी ही चाहिए।