2 जून 2000 की बात है। एकनाथ शिंदे अपने 11 साल के बेटे दीपेश और 7 साल की बेटी शुभदा के साथ सतारा गए थे। बोटिंग करते हुए एक्सीडेंट हुआ और शिंदे के दोनों बच्चे उनकी आंखों के सामने डूब गए। उस वक्त शिंदे का तीसरा बच्चा श्रीकांत सिर्फ 14 साल का था।
एक इंटरव्यू में इस दर्दनाक घटना को याद करते हुए शिंदे ने कहा था, 'ये मेरी जिंदगी का सबसे काला दिन था। मैं पूरी तरह टूट चुका था। मैंने सब कुछ छोड़ने का फैसला किया। राजनीति भी।'
इस घटना को 22 साल हो चुके हैं। एकनाथ शिंदे अब महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री हैं। ऐसे में आइए जानते हैं कि एक वक्त राजनीति छोड़ने का फैसला कर चुके शिंदे का कद इतना बड़ा कैसे हो गया? कैसे उन्होंने उद्धव ठाकरे को किनारे लगा दिया?
शिंदे का जन्म 9 फरवरी 1964 को हुआ था। वे महाराष्ट्र के सतारा जिले के पहाड़ी जवाली तालुका के रहने वाले हैं, लेकिन उनकी कर्मभूमि ठाणे रही। शुरुआत में शिंदे ठाणे में ऑटो चलाते थे। एकनाथ के पीए रह चुके इम्तियाज शेख उर्फ ‘बच्चा’ के मुताबिक ऑटो चालक के साथ शिंदे आरएसएस शाखा प्रमुख यानी मुख्य शिक्षक थे। आरएसएस की पृष्ठभूमि से होने के चलते उनका बीजेपी और हिंदुत्व से गहरा जुड़ाव है।
शिवसेना के कद्दावर नेता आनंद दिघे से प्रभावित होकर शिंदे ने शिवसेना जॉइन कर ली। दिघे ही शिंदे के राजनीतिक गुरु थे। शिंदे पहले शिवसेना के शाखा प्रमुख और फिर ठाणे म्युनिसिपल के कॉर्पोरेटर चुने गए। बेटा-बेटी की मौत के बाद जब शिंदे ने राजनीति छोड़ने का फैसला किया, तो दिघे ही उन्हें वापस लाए थे।
अचानक 26 अगस्त 2001 को एक हादसे में दिघे की मौत हो गई। उनकी मौत को आज भी कई लोग हत्या मानते हैं। हाल ही में दिघे की मौत पर मराठी में धर्मवीर नाम से एक फिल्म भी आई है। दिघे धर्मवीर के नाम से भी मशहूर थे।
दिघे की मौत के बाद शिवसेना को ठाणे में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए कोई चेहरा चाहिए था। ठाकरे परिवार ठाणे को ढुलमुल रवैये के साथ नहीं छोड़ सकता था। वजह है कि ठाणे महाराष्ट्र का एक बड़ा जिला है। चूंकि शिंदे शुरुआत से ही दिघे के साथ जुड़े हुए थे लिहाजा उनकी राजनीतिक विरासत शिंदे को ही मिली। शिंदे ने भी विरासत के बीज को ठीक से रोपा और सींचा भी।
शिंदे भी अपने गुरु की तरह जनता के नेता रहे। साल 2004 में पहली दफा विधायक बने। उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देखते ही देखते ठाणे में ऐसा वर्चस्व बना लिया कि वहां की राजनीति का केंद्र बन गए। 2009, 2014 और 2019 विधानसभा चुनाव में भी जीत का सेहरा उनके माथे बंधा। साल 2014 में नेता प्रतिपक्ष भी बने।
मंत्री पद पर रहते हुए शिंदे के पास हमेशा अहम विभाग रहे। साल 2014 में फडणवीस सरकार में PWD मंत्री रहे। इसके बाद 2019 में शिंदे को सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण और नगर विकास मंत्रालय का जिम्मा मिला। महाराष्ट्र में आमतौर पर ये विभाग CM अपने पास रखते हैं