भारत जब लगभग 200 वर्षों तक पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था तब ऐसे में राष्ट्रनायकों ने क्रांति की राह चुनी और न जाने कितने संघर्षी, बलिदानों के उपरांत आखिरकार 15 अगस्त 1947 को हमारे देश को आजादी मिली।देश इसी आजादी के 75वें वर्षगाँठ को अमृत महोत्सव के रूप में मनाने को तैयार है एवं इसी महोत्सव का एक उपक्रम है " हर घर तिरंगा " जिससे जुड़ कर इस स्वंत्रता दिवस हर भारतवासी अपने घरों में तिरंगा लगा कर दुनिया को भारत की एकता व अखंडता से परिचित करायेंगे। हमें मिली आजादी को पाने से कम कठिन काम नहीं है इस आजादी को बचाये रखना, ऐसे में देश के तत्कालीन नेतृत्व एवं महापुरुषों ने अनेकों विचार विमर्श के उपरांत हमारी आजादी को युग युगांतर तक सुरक्षित रखने हेतु जो प्रयत्न किये उसमें हर भारतिय में भारतीयता का भाव भरना सबसे अहम है।

कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक की वहां के नागरिक अखंडता के भाव के साथ एक राष्ट्र- एक ध्वज के नीचे आ कर अपने देश की प्रगति में योगदान नहीं देते। जिस प्रकार से देश की आजादी के लिए देश के हर क्षेत्र, वर्ग से क्रांतिकारियों ने योगदान दिया उसी एकता और दृढ़ता को प्रतीक चिन्हों में समाहित कर उनसे आज की युवा पीढ़ी को प्रेरित किया जाता है। हमारा राष्ट्रिय गौरव जिसे देख लेने भर से हर भारतीय का मन प्रफुल्लित हो उठता है वो तिरंगा कितने चरणों से होते हुए और कितने प्रयासों के उपरांत आज हमारे मुख्य प्रतीक चिन्ह के रूप में विराजमान है ये समझने के लिए ये जानना महत्वपूर्ण है की भारत का पहला राष्ट्रिय ध्वज आज के राष्ट्रिय ध्वज से अलग था।

7 अगस्त 1906 को स्वदेशी आंदोलन के दौरान कोलकता के पारसी बागान चौक पर फहराया गया राष्ट्रिय ध्वज हरे, पीले एवं नीले रंग की पट्टियों में था जिसके केंद्र में वन्देमातरम उल्लेखित था। इसके अगले वर्ष 1907 महान क्रन्तिकारी मैडम भीकाजी कामा द्वारा जर्मनी के स्टुआटगार्ट में जो ध्वज लहराया गया था उसमे केसरिया, पिली व् हरी पट्टी थी। केसरिया पट्टी पर सात तारे थे जो सप्तऋषि को दर्शाते थे जबकि मध्य की पिली पट्टी पर वन्देमातरम उल्लेखित था व हरी पट्टी पर सूर्य और चंद्र बने थे।

इसके बाद होम रूल आंदोलन के दौरान वर्ष 1917 में ध्वज को एक नए स्वरूप में पेश किया गया जिसमें 5 एवं 4 की संख्या में क्रमबद्ध रूप से लाल व् हरी पट्टियों का प्रयोग किया गया था जिसमे सप्तऋषि के प्रतीक सात तारे थे। यही नहीं इसके उपरान्त भारत का चौथा ध्वज भी अस्तित्व में आया जब वर्ष 1921 में आयोजित हुए कांग्रेस के विजयवाड़ा अधिवेशन में एक अन्य राष्ट्रिय ध्वज का प्रयोग हुआ जबकि भारत का पांचवा ध्वज वर्ष 1931 में देखने को मिला जिसके मध्य में चरखे का प्रयोग किया गया था और ये राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का प्रिय ध्वज था।

हमारा वर्तमान राष्ट्रिय ध्वज 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा द्वारा चुना गया था, इस ध्वज को पिंगाली वेंकैय्या द्वारा 30 देशों के राष्ट्रिय ध्वज का गहन अध्ययन करने के उपरांत डिज़ाइन किया गया था जिसे 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणतंत्र के राष्ट्रिय ध्वज के रूप में अपनाया गया। आज एक भारतवासी के रूप में हमारा मौलिक कर्तव्य है की हम इन सभी संघर्षों को सम्मान देने हेतु हर घर तिरंगा अभियान से जुड़ें और अपने-अपने घरों पर तिरंगे को लहरा कर ये ऐलान कर दें की भारत अपनी आजादी को बनाये रखेगा एवं वैश्विक रूप से नित्य नए आयाम स्थापित करेगा।