सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जोर देकर कहा कि भारत में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया को सरल करने की जरूरत है क्योंकि सेंट्रल अडाप्शन रिसोर्स अथारिटी ( CARA ) के तहत एक बच्चे को गोद लेने की प्रतीक्षा अवधि तीन-चार साल है, जबकि लाखों अनाथ बच्चे गोद लिए जाने का इंतजार कर रहे हैं।इससे पहले भी शीर्ष अदालत ने इस प्रक्रिया को बेहद थकाऊ करार दिया था।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ ने गैर सरकारी संगठन (NGO) 'द टेंपल आफ हीलिंग' की याचिका पर सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश एडिशनल सालिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से यह बात कही। इस पर नटराज ने कहा कि सरकार इस मुद्दे पर विचार कर रही है, जवाब दाखिल करने के उन्हें छह हफ्ते का समय दिया जाए।

पीठ ने मामले की सुनवाई अक्टूबर तक के लिए स्थगित कीपीठ ने नटराज से कहा कि वह बाल विकास मंत्रालय में किसी जिम्मेदार व्यक्ति से एनजीओ के साथ बैठक करने और उसके सुझावों पर गौर करने को कहें। साथ ही एक रिपोर्ट तैयार कर शीर्ष अदालत में दाखिल करें। व्यक्तिगत तौर पर मौजूद एनजीओ के सचिव पीयूष सक्सेना से पीठ ने अपनी याचिका एएसजी के साथ साझा करने और गोद लेने की प्रक्रिया सरल बनाने के अपने सुझाव मंत्रालय के अधिकारियों को देने के लिए भी कहा। इसके बाद पीठ ने मामले की सुनवाई अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी।

कोरोना से अनाथ हुए बच्चों को मोदी सरकार देगी हर माह चार हजार रुपयेवहीं, दूसरी ओर पीएम मोदी ने कुछ महीनों पहले कोरोना के कारण अनाथ हुए बच्चों के लिए पीएम केयर्स फंड के तहत मिलने वाले लाभों को जारी किया था। इसके तहत बच्चों को रोजमर्रा के खर्च के लिए चार हजार रुपये प्रति महीना दिया जाएगा। 23 साल का होने पर उन्हें 10 लाख रुपये की एकमुश्त सहायता भी मिलेगी।