ड्रग्स के काले कारोबार की खरीद-फरोख्त की जब-जब कहीं चर्चा होती है, तब-तब उसमें प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से पुलिस की कथित “मिली-भगत” ही सामने आती है. उत्तराखंड राज्य पुलिस ने तो इस काले कारोबार में शामिल अपने कई वर्दीधारियों को गिरफ्तार करके जेल में भी ठूंस रखा है.इस तमाम कसरत के बाद भी जब राज्य में ड्रग्स माफिया पर नकेल नहीं कसी गई तो, पुलिस महकमे ने अपनों को ही पहले काबू करने का अभियान छेड़ दिया है. इस अभियान के तहत अब जिस थानाक्षेत्र में भी ड्रग्स का काला कारोबार होता पाया जाया. सीधे-सीधे उस इलाका थानाध्यक्ष को इसके लिए जिम्मेदार मानकर, उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही करके निपटा दिया जाएगा.
इतना ही नहीं राज्य में ड्रग्स माफिया को बेदम करने के लिए राज्य पुलिस मुख्यालय ने और भी कई योजनाएं बनाई हैं. इन्हीं योजनाओं के तहत अपनों की नकेल कसने के साथ-साथ अब त्रिस्तरीय एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) की मासिक समीक्षा भी खुद सूबा पुलिस के सर्वे-सर्वा यानी पुलिस महानिदेशक करेंगे. मतलब अब यह तय है कि राज्य में किसी भी कीमत पर ड्रग्स का काला कारोबार नेस्तनाबूद करने पर अड़ी उत्तराखंड सरकार इस धंधे में जाने-अनजाने लिप्त मिले अपनों को भी बख्शने के मूड में कतई नहीं है. टीवी9 भारतवर्ष से बातचीत में इन तमाम तथ्यों की पुष्टि खुद राज्य पुलिस महानिदेशक आईपीएस अशोक कुमार ने की है. पुलिस महानिदेशक के मुताबिक, “अपनों पर नजर रखने के लिए स्टेट एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स को जिम्मेदारी दी गई है.”
स्टेट एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स इस काले कारोबार के अड्डों को पहचानने के साथ ही साथ इस तथ्य की सूचना भी सरकार और पुलिस को देगी कि किस थाना क्षेत्र में ड्रग्स का कारोबार हो रहा था? स्टेट एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स की रिपोर्ट के आधार पर ही संबंधित थाने का इंचार्ज/एसएचओ निपटाया जाएगा. इतना ही नहीं ऐसे दोषी पाए गए थाना इंचार्ज/इंस्पेक्टर-सब इंस्पेक्टर के रिकॉर्ड में बाकायदा यह दर्ज किया जाएगा कि उसे उसके इलाके में ड्रग्स का काला कोराबार काबू न कर पाने के चलते पद से हटाया गया है, ताकि आइंदा उसे जहां तक संभव हो सके जल्दी कहीं किसी संवेदनशील पद पर तैनाती ही न मिल सके. दरअसल इस तमाम कवायद के पीछे राज्य सरकार की सख्त योजना मानी जा रही है. जिसके मुताबिक सन् 2025 तक राज्य को नशा-मुक्त देवभूमि बनाया जाना है. इसी लक्ष्य को हासिल करने के वास्ते त्रिस्तरीय एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स (ANTF) गठित की गई है.
एण्टी नारकोटिक्स टास्क फोर्स की टीमें राज्य, जनपद और थाना स्तर पर गठित की गई हैं. इसी के तहत बीते दिनों उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में राज्य और जिला पुलिस के आला-अफसरान से लेकर थानेदारों तक की एक कॉफ्रेंस भी बुलाई गई थी. ताकि थानाध्यक्ष, निरीक्षक व उप-निरीक्षकों को ड्रग्स्स कारोबार के समाज के लिए नुकसानों से अवगत कराया जा सके. उत्तराखंड सरकार और उसकी पुलिस का मानना है कि किसी परिवार का बच्चा यदि ड्रग्स्स के जाल में फंस जाता है तो, उस परिवार की जीवन भर की कमाई, इज्जत सब एक झटके में खत्म हो जाती है. इतने सख्त कदम उठाए जाने के बारे में पूछे जाने पर राज्य पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने टीवी9 भारतवर्ष से कहा, “ड्रग्स दुनिया में टेरर फंडिंग का सबसे बड़ा स्रोत है. समाज और आने वाली पीढ़ियों को सुदृढ़ बनाने के लिए हमें ड्रग्स्स के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति अपनानी ही होगी और इस काम में पुलिस (विशेष रुप से थानाध्यक्ष-सब इंस्पेक्टर) मुख्य भूमिका निभा सकते हैं.”
डीजीपी ने आगे कहा कि यदि राज्य स्तर की टास्क फोर्स जिस भी थाना क्षेत्र में खुद ड्रग्स्स पकड़ेगी तो ड्रग्स्स बरामदगी की सीधी जिम्मेदारी इलाका थाना इंचार्ज की होगी. यहां बताना जरुरी है कि नशे के विरूद्ध प्रभावी कार्यवाही करते हुए उत्तराखंड राज्य ने सन् 2019 में 1558 अभियुक्तों के विरूद्ध कार्यवाही की थी. जिसमें करीब 11 करोड़ से अधिक का मादक पदार्थ बरामद किया गया था. उसके बाद सन् 2020 में 1490 अभियुक्तों के विरूद्ध कार्यवाही करके लगभग 13 करोड़ की ड्रग्स्स बरामद हुई थी. जबकि सन् 2021 में 2165 अभियुक्तों के विरूद्ध कार्यवाही करके 26 करोड़ का मादक पदार्थ बरामद किया गया. बात अगर चालू वर्ष की करें तो बीते छह माह में इस साल (सन् 2022 में) 794 अभियुक्तों के विरूद्ध कार्यवाही करके 12 करोड़ का मादक पदार्थ जब्त किया गया था. यह आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि राज्य में ड्रग्स माफिया किस हद तक हावी है?