दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि शांति और सद्भाव सुनिश्चित करना न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों (Law Enforcement Agencies) और अदालतों का परम कर्तव्य है, बल्कि नागरिकों का भी कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके कृत्य सांप्रदायिक घृणा (Communal Hatred) या द्वेष को बढ़ावा न दें.

न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने इस साल की शुरुआत में जहांगीरपुरी में सांप्रदायिक झड़पों से संबंधित एक मामले में एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि सभी नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है, लेकिन यह नागरिकों के कर्तव्यों के अधीन है.

दो समुदाय के बीच कौन पैदा कर रहा है दरार?

अदालत ने कहा कि मौजूदा आरोपी ने दो समुदायों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश करके क्षेत्र के सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने का कथित तौर पर प्रयास किया. अदालत ने कहा कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया और इस प्रकार वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटी युक्त अपने मौलिक अधिकार के उल्लंघन का दावा करने या अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है.

गौरतलब है कि दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में 16 अप्रैल को 'हनुमान जयंती' के मौके पर निकाली गई शोभायात्रा के दौरान आठ पुलिसकर्मी और एक नागरिक घायल हो गया था. अदालत ने कहा कि आरोपियों के खिलाफ गंभीर आरोप थे जो समाज के सांप्रदायिक ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाते है.

घृणा को नहीं दें बढ़ावा

अदालत ने 17 अगस्त की तिथि में दिये गये अपने आदेश में कहा कि शांति और सद्भाव सुनिश्चित करना न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अदालतों का परम कर्तव्य है, बल्कि नागरिकों का भी कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके कृत्य सांप्रदायिक घृणा या द्वेष को बढ़ावा न दें.

अदालत ने कहा कि इसमें कोई संशय नहीं है कि इस देश के प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है. हालांकि, यह उन कर्तव्यों के अधीन है जो बदले में प्रत्येक नागरिक को निभाने होते है.

जमानत देने का नहीं बनता है कोई आधार?

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, मेरा यह मानना है कि आरोपी/आवेदक को अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता है. इसलिए अभियुक्त/आवेदक की ओर से दायर किया गया आवेदन खारिज किया जाता है.