जीतेन्द्र रजक गुनौर आज से लगभग डेढ़ वर्ष पहले मैंने जातीय हिंसा से आसन्न खतरों पर कुछ लिखने का प्रयास किया था. जिसमें ग्वालियर चंबल-संभाग ही नहीं बल्कि संपूर्ण मध्य प्रदेश में पूर्व की कुछ घटनाओं के कारण उत्पन्न आक्रोश को जिस प्रकार से लोगों ने जातिगत या सामुदायिक टकराव कर उन समुदायों को आमने-सामने कर अपने व्यक्तिगत राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कुछ घटिया प्रयोग किए थे.पिछले 5-6 महीने से प्रदेश का लगभग हर क्षेत्र किसी न किसी प्रकार की आपसी सामुदायिक टकराव का गवाह बना है व इसी के परिणाम स्वरूप विभिन्न समुदायों में आपसी खाई चौड़ी भी हुई है .राजनीतिक गिद्धों ने एक समुदाय को दूसरे समुदाय के सामने ले जाकर जिस प्रकार से खड़ा किया है वह बेहद ही चिंता का विषय है, इससे समूह का नेतृत्व करने वाले कुछ चंद लोगों का राजनीतिक, आर्थिक,सामाजिक लाभ तो हो सकता है, पर समूह विशेष व संपूर्ण समाज का लाभ कभी नहीं हो सकता. क्योंकि अभी जिस तरीके की परिस्थितियों का बार-बार निर्माण चंद लोगों द्वारा अपनी राजनीतिक दुकान को स्थापित करने के लिए किया जा रहा है यह बेहद ही गंदा खेल है, इसमें नुकसान तो हर प्रकार से समाज के प्रत्येक वर्ग का होना तय है.

    सबसे बड़ा नुकसान तो प्रदेश में निवेश के लिए तैयार हो रहे अनुकूल माहौल पर पड़ेगा क्योंकि कोई भी निवेशक सबसे पहले यह देखता है कि जहां हम निवेश करने जा रहे हैं वहां का लॉयन ऑर्डर या कानून-व्यवस्था कैसी है. जब भी उसे ऐसा लगता है कि यहां स्थितियां सामान्य नहीं है तो वह निवेशक हमेशा ही अपने पैर वापस खींच लेता है, फिर चाहे सरकार कितना ही प्रयास क्यों ना करें. इसी से एक कदम जब आगे चलेंगे तो फिर रोजगार के जिन साधनों का सृजन होना था वह भी नहीं होता जिसके परिणाम स्वरूप बेरोजगारी बढ़ती है.

    साथ ही साथ जो निवासी इस आपसी टकराव को दूर दृष्टि के आधार पर पहचानने में सक्षम होते हैं वह लोग सुरक्षित स्थानो की ओर पलायन करने पर विचार करते हैं और अगर संभव हुआ तो वह पलायन करते भी है. जब भी कोई अपराध घटित होता है तो उससे निपटना सरकार की प्राथमिकता में शामिल होता है जिसके लिए स्थानीय पुलिस-प्रशासन उस अपराध से निपटने के लिए पूर्णता सक्षम होता है पर पिछले कुछ समय से किसी अपराध के घटित होने के बाद लोग अत्यधिक आक्रोश में आकर जिस तरीके से पुलिस या प्रशासन पर दबाव बनाने का काम करते हैं, उससे निश्चित रूप से पुलिस की अपराध में पतारसी करने की क्षमता व कुशलता दोनों प्रभावित होती हैं और उनकी प्राथमिकता अपराध की पतरासी के साथ-साथ वहां के लॉयन ऑर्डर को मेंटेन करना भी होती है. पुलिस को लगातार एक साथ पूरी ताकत के साथ दो मोर्चा पर काम करना पड़ता है जो उसके लिए बेहद ही मुश्किल और दुष्कर कार्य होता है.अंत में समाज के समझदार और पढ़े लिखे नौजवान युवाओं से करबद्ध आग्रह है कि किसी भी व्यक्ति के साथ खड़े होने से पहले 100 बार सोचें की क्या हम जिस व्यक्ति के साथ खड़े हैं वह वास्तव में ही समाज का हित चिंतक हैं या फिर झूठा दिखावा कर समुदाय विशेष की आड़ में अपनी व्यक्तिगत राजनीतिक या अन्य कोई महत्वाकांक्षा की पूर्ति तो नही करना चाहता ? समाज में कुछ भी घटित होने पर अगर लॉयन-ऑर्डर बिगड़ा तो इसका सीधा-सीधा नुकसान वहां के निवासियों को ही भुगतना पड़ेगा पूर्व में भी इस प्रकार की स्थितियां निर्मित होती रही है. मेरा एक और आग्रह है कि अभी तक तो पुलिस व प्रशासन ने हर प्रकार के ऐसे एजेंडा को नाकाम कर दिया है लेकिन अगर लोगों ने इसको चिन्हित कर इसकी रोकथाम का प्रयास नहीं किया तो निश्चित रूप से उन लोगों के मंसूबे कामयाब हो सकते हैं. सरकार से एक और आग्रह है की बार-बार ऐसा कुत्र्शित प्रयास करने वाले लोगों को न सिर्फ चिन्हित किया जाए बल्कि उन पर कड़ी कार्यवाही भी की जाए क्योंकि फॉरी तोर तौर पर कार्रवाई करने से इस समस्या का हाल होने वाला नहीं है बल्कि ऐसा करने पर यह समस्या और अधिक विकराल होती जाएगी !

                                                                         दीपक सिंह भदौरिया उप निरीक्षक (मध्य प्रदेश पुलिस)