आज का बच्चा किताबों से ज़्यादा मोबाइल स्क्रीन के करीब है। पढ़ाई के बाद खेलने के लिए जहां पहले बच्चे मैदान में दौड़ते थे, अब वो उंगलियों से मोबाइल पर गेम खेलते हैं। यह बदलाव धीरे-धीरे लत (addiction) में तब्दील हो रहा है — और यही बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए खतरे की घंटी है।
⚠️ क्यों बन रही है ये लत?
-  गेम्स में आने वाले रिवार्ड पॉइंट्स और लेवल्स बच्चों को बार-बार खेलने के लिए प्रेरित करते हैं। 
-  ऑनलाइन मल्टीप्लेयर गेम्स में सामाजिक जुड़ाव और प्रतिस्पर्धा की भावना। 
-  माता-पिता की व्यस्तता की वजह से बच्चे खाली समय में मोबाइल को साथी बना लेते हैं। 
-  फ्री टू प्ले गेम्स आसानी से डाउनलोड हो जाते हैं, और इन-ऐप खरीदारी से फंसा लेते हैं। 
🚨 इसके दुष्परिणाम:
-  नेत्र और मस्तिष्क पर असर – अधिक स्क्रीन टाइम आंखों और दिमाग को नुकसान पहुंचाता है। 
-  नींद की कमी – देर रात तक गेम खेलने से नींद पूरी नहीं होती। 
-  चिड़चिड़ापन और गुस्सा – गेमिंग में हारने या रोकने पर गुस्सा और चिढ़ बढ़ जाती है। 
-  पढ़ाई में ध्यान न लगना – बच्चों का मन पढ़ाई से हटकर मोबाइल पर केंद्रित हो जाता है। 
-  शारीरिक गतिविधि में कमी – खेलकूद, व्यायाम और सामाजिक मेलजोल में भारी गिरावट। 
✅ माता-पिता क्या करें?
-  📵 मोबाइल पर समय सीमा तय करें – एक दिन में 1 घंटे से ज्यादा गेमिंग न होने दें। 
-  🎯 ऑफलाइन एक्टिविटीज बढ़ाएं – आउटडोर गेम्स, क्रिएटिव क्लासेस, पज़ल्स या बोर्ड गेम्स की आदत डालें। 
-  🧠 बच्चे से संवाद रखें – उन्हें समझाएं कि क्यों ज़रूरी है मोबाइल से दूर रहना। 
-  👨👩👧 खुद रोल मॉडल बनें – बच्चे वही सीखते हैं जो वे घर में देखते हैं। 
-  🔒 पैरेंटल कंट्रोल का इस्तेमाल करें – कुछ ऐप्स और फीचर्स मोबाइल को कंट्रोल करने में मदद करते हैं। 
📢 समाज की जिम्मेदारी
-  स्कूलों में डिजिटल हेल्थ अवेयरनेस सेमिनार होने चाहिए। 
-  बच्चों को साइबर वर्ल्ड से जोड़ने के साथ-साथ सुरक्षित और सीमित उपयोग की भी शिक्षा दी जानी चाहिए। 
-  मीडिया को भी ऐसे कंटेंट को बढ़ावा नहीं देना चाहिए जो हिंसात्मक गेम्स को प्रोत्साहित करें। 
🙏 अंत में एक अपील
मोबाइल एक जरूरत है, लेकिन जब यह आदत बन जाए — तब खतरा है।
आइए, हम सभी मिलकर बच्चों को मोबाइल गेमिंग की लत से बाहर निकालें, और उन्हें एक संतुलित, खुशहाल और स्वस्थ जीवन की ओर ले जाएं।
 
  
  
  
  