शुद्धाद्वैत प्रथम पीठ श्री बड़े मथुराधीश मंदिर पाटनपोल पर भीषण गर्मी के चलते ठाकुर जी की ऋतुचर्या में भी बदलाब आया है। 

अक्षय तृतीया के साथ ही प्रभु की ग्रीष्म ऋतु के अनुसार विशेष शीतल सेवा आरम्भ हो गई है। ठाकुर जी की राग, भोग और श्रृंगार सामग्री में भी बदलाव किया गया। प्रभु की सेवा में मध्यान्ह काल और संध्या काल में निज मंदिर में जल से छिड़काव और फव्वारे चालू कर दिए गए। ग्रीष्म ऋतु में प्रभु के श्रीअंग पर चंदन और केसर का लेपन किया जाता है। प्रभु के लिए कपड़े के पंखे, मट्टी की कुंजा, दरवाजे पर खस की पट्टी एवं कूलर शुरू हो गया है। प्रभु के निज मंदिर और आंगन में फव्वारे भी शुरू कर दिए गए हैं। प्रभु को पतले सूती के वस्त्र में धोती ऊपरना, पिछोड़ा, आडबंद और सिंगार में मोती एवं सीप से निर्मित श्रृंगार ही पहनाया जा रहा है। प्रभु के भोग सामग्री में भी परिवर्तन आया है। प्रभु को शीतलता प्रदान करने वाली वस्तुएं सत्तू, लस्सी, छाछ, केरी का पना, आम का रस, खरबूजे का पना, नारियल की बर्फी, चंदन एवं गुलाब का शरबत का भोग लगाया जा रहा है। प्रभु के सुख के लिए कीर्तन की राग में परिवर्तन किया गया है। आशावरी देवगंधार और बिलावल शीत राग में ही कीर्तन गाया जाता है। सेवा का यही क्रम रथ यात्रा तक चलेगा।