माहेश्वरी भवन में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा की सोमवार को हवन पूजन व महाप्रसादी के साथ पूर्णाहूति हुई। आचार्य परम पूज्य श्रीकांत शर्मा महाराज ने कथा में कई प्रसंगों का श्रवण कराया।

कथा के अंतिम दिन सुदामा चरित्र के माध्यम से भक्तों के सामने दोस्ती की मिसाल पेश की और समाज में समानता का संदेश दिया। कथा वाचक ने सोमवार को कृष्ण-उद्धव के संवाद व सुदामा चरित्र का वृतांत सुनाते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने दुनिया में मित्रता की मिसाल कायम की। सुदामा के पैरों को अपने आंसुओं से धोना, उनके लिये नंगे पैर दौडक़र उन्हें ह्रदय से लगाना और चावल को ग्रहण करना जैसे व्यक्तित्व भगवान श्रीकृष्ण के लिए ही संभव है। उन्होंने कहा कि गोपियों की कृष्ण के प्रति जो अनुरक्ति व भक्ति थी, वह निष्काम थी। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण के मन में भी गोपियों के प्रति उतना ही अनुराग का भाव था। सुदामा गरीब कदापि नहीं थे। जिस प्रकार की दीन दशा का वर्णन मिलता है, वह मात्र उनका संतोष था। कथा आयोजन के अंतिम दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे। इस अवसर पर कृष्ण-सुदामा की आकर्षक झांकी सजाई गई। कथा के मुख्य यजमान सीए पुरुषोत्तम खंडेलवाल-प्रभा खंडेलवाल थे। कथा के बाद महाप्रसादी का आयोजन किया गया। आचार्य श्रीकांत शर्मा महाराज ने कहा कि आज भी सुदामा चरित्र का प्रेरक प्रसंग नि:स्वार्थ प्रेम मित्रता की मिसाल है। इस प्रसंग से सभी को जीवन में रिश्तों की महत्ता का निर्वहन करने की अनूठी सीख मिलती है। उन्होंने श्रोताओं से अपने जीवनकाल में परोपकारी भावना के साथ निर्बल को संबल प्रदान करने का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवताओं का वास रहता है, इसलिए नारी सम्मान, बालिका शिक्षा तथा बुजुर्गों की सेवा अवश्य करनी चाहिए। बता दें कि कथा की पूर्णाहुति पर हवन पूजन का भी आयोजन किया गया।