कोटा! कोटा के श्रीजी हॉस्पिटल की लापरवाही के चलते एक मरीज की मौत का मामला सामने आया है निलेश गुप्ता के अनुसार 17 नवंबर को कोटा के शीला चौधरी रोड स्थित राधा कृष्ण हॉस्पिटल में उनकी माँ को भर्ती कराया। उनकी हालत गंभीर थी सांस लेने में अत्यधिक कठिनाई हो रही थी, और ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल को बनाए रखने के लिए ऑक्सीजन सपोर्ट अनिवार्य था। डॉक्टर ने CT स्कैन कराने की सिफारिश की और उन्होंने अपने कमीशन के चलते विज्ञान नगर स्थित श्रीजी डायग्नोस्टिक सेंटर भेजा गया, जबकि आनंद डायग्नोस्टिक सेंटर नजदीक था। ऐसी स्थिति में उन्होंने श्रीजी हॉस्पिटल की एम्बुलेंस मंगवाई। उन्होंने ऑक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता की खुद पुष्टि की। लेकिन जब उनकी माँ को एम्बुलेंस में बैठाकर ऑक्सीजन मास्क लगाया, तो थोड़ी देर बाद उनकी माँ ने इशारा किया कि उन्हें सांस नहीं आ रही। ड्राइवर से कहा गया तो उसने सिलेंडर का वाल्व खोला, लेकिन तब भी ऑक्सीजन नहीं आई। जब निलेश गुप्ता ने सिलेंडर चेक किया तो वह खाली था। इसके बाद श्रीजी सेंटर पहुंचने पर भी अगले 15 मिनट तक ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं हो सकी। कुल 30 मिनट तक उनकी माँ को ऑक्सीजन नहीं मिली, जिससे चलते उनकी माँ की हालत और खराब हो गई। करीब दोपहर 2 बजे CT स्कैन का परिणाम आया। डॉक्टर ने बताया कि फेफड़ों में पानी भर गया है और इसे निकालना होगा। उन्हें किसी अन्य रूम में शिफ्ट किया गया। थोड़ी देर बाद उनकी माँ को ICU में स्थानांतरित कर दिया गया। परीजनो द्वारा जब डॉक्टर और स्टाफ से जानकारी मांगी गई तो कोई जवाब नहीं मिला। शाम करीब 5 बजे डॉक्टर कमलेश आए, लेकिन उन्होंने कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी। करीब 6 बजे नर्सिंग स्टाफ ने परीजनो को बताया कि डॉक्टर बुला रहे हैं। अंदर जाने पर पता चला कि उनकी माँ को वेंटिलेटर पर रखा गया है। डॉक्टर ने बताया कि उनका रेस्पिरेटरी सिस्टम काम नहीं कर रहा है, और उम्मीद बहुत कम है। मॉनिटर पर पल्स 40 से नीचे थी। डॉक्टर ने दूसरे हॉस्पिटल में शिफ्ट करने की सलाह दी। कोटा हार्ट में जान-पहचान के डॉक्टर से परीजनो द्वारा बात की गई और एक वेंटिलेटर सुविधा वाली एम्बुलेंस का इंतजार किया गया। जैसे ही उनकी माँ का स्ट्रेचर एम्बुलेंस में पहुंचा, ड्राइवर से कहा गया कि वेंटिलेटर ऑन करें। उसने जवाब दिया, "क्या जरूरत है?" जबकि वेंटिलेटर सुविधा के लिए ही एम्बुलेंस का इंतजाम किया गया था। ड्राइवर ने कहा कि अस्पताल सिर्फ 300 मीटर दूर है और 5 मिनट में पहुंच जाएंगे। एक नर्सिंग स्टाफ मैन्युअल तरीके से एयर दे रहा था। जब वह कोटा हार्ट पहुंचे, उनकी माँ को डेड घोषित कर दिया गया। डॉक्टर ने बताया कि उनकी मृत्यु 15 से 30 मिनट पहले हो चुकी थी। इसका मतलब या तो राधा कृष्ण हॉस्पिटल में या एम्बुलेंस में ही उनका निधन हो गया था। परिजनों ने कहा कि यह हादसा केवल एक हादसा नहीं, बल्कि लापरवाही की पराकाष्ठा है। ऐसे कितने मरीज हैं जो इस पीड़ा से गुजरते हैं, लेकिन कोई आवाज नहीं उठाता। निजी एंबुलेंस सेवाओं की पूरी व्यवस्था एजेंटों, दलालों और निजी अस्पतालों के भरोसे चल रही है। सरकारी अधिकारी इस बात से बिल्कुल अनजान हैं कि उनकी नाक के नीचे क्या हो रहा है। मरीजों को यह आश्वासन दिया जाता है कि ऑक्सीजन और वेंटिलेटर से सुसज्जित एंबुलेंस उपलब्ध होगी, लेकिन वास्तविकता यह है कि न तो ऑक्सीजन होता है और न ही वेंटिलेटर काम करता है। इसकी कोई जिम्मेदारी भी नहीं ली जाती। परिजनों को मरीज की देखभाल के साथ-साथ इन लोगों से झगड़ा भी करना पड़ता है। कोई निर्धारित रेट चार्ट नहीं है; शक्ल और मजबूरी देखकर पैसा वसूला जाता है। वहीं जब इस मामले में कोटा के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) डॉ. जगदीश सोनी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि उनके पास 60 सरकारी एंबुलेंस हैं, और वे केवल उन्हीं की जांच करते हैं। निजी एंबुलेंस की जांच के लिए उनके पास सरकार से कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। इसके बाद, जिला परिवहन अधिकारी (DTO) श्री सुरेंद्र सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया। जब उनसे पूछा गया कि एंबुलेंस की जांच की जिम्मेदारी किसकी है, तो उन्होंने जवाब दिया कि हमारा काम केवल फिटनेस चेक करना है। NOC के लिए हम मामले को CMHO के पास भेजते हैं। अगर कोई शिकायत करता है तो हम कार्रवाई करते हैं। आपकी शिकायत पर कार्रवाई की जाएगी और इसकी अपडेट आपको दी जाएगी।
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