राजस्थान में सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव में भाजपा-कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है। उपचुनाव में हार-जीत का प्रदेश सरकार पर तो कोई असर नहीं पड़ने वाला, लेकिन नेताओं के कद पर जरूर इसका असर देखने को मिलेगा। इन सात सीटों के परिणाम दो बार से एक जैसे ही आ रहे हैं और यदि इस बार यह परिणाम अलग हुए तो पार्टी के बड़े नेताओं में प्रदेश का नेतृत्व करने वालों की छवि कम ज्यादा होना तय है। अपने कदको बढ़ाने के फेर में भाजपा-कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के नेता अपने-अपने पार्टी प्रत्याशियों को जीत दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा में उपचुनाव का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा, प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़, प्रवेश प्रभारी राधा मोहन दास अग्रवाल पर हैं। तीनों नेता हर सीट को लेकर लगातार रणनीति पर काम कर रहे हैं। पैनल बनाने से लेकर टिकट चयन तक का सारा काम इन तीन के हाथों ही हुआ है। लोकसभा चुनाव में आशा अनुरूप परिणाम नहीं मिलने के बाद अब सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण है।उपचुनाव में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट की साख दांव पर है। प्रदेश में कांग्रेस इन नेताओं के भरोसे ही चुनाव लड़ रही है। डोटासरा ने उपचुनाव के दौरान क्षेत्रीय दलों से गठबंधन पर भी हां नहीं भरी थी और कांग्रेस ने किसी से गठबंधन नहीं किया है। ऐसे में यह उपचुनाव डोटासरा के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

भाजपा में इन नेताओं की साख दांव पर

दौसा: कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीना के भाई जगमोहन मीना को यहां से टिकट दिया गया है। लोकसभा चुनाव में भी दौसा सीट पर मीना ही चुनाव लड़वा रहे थे, लेकिन भाजपा यह सीट हार गई। अब उनके भाई को टिकट देने से उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है।

रामगढ़: अलवर से लोकसभा सांसद और केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव की लोकसभा सीट में ही यह विधानसभा सीट आती है। यादव को चुनावी मैनेजमेंट में खिलाड़ी माना जाता है अब यहां उनकी परीक्षा है।

कांग्रेस में इन नेताओं की प्रतिष्ठा का सवाल

झुंझुनूं: यहां कांग्रेस का गढ़ रहा है। बृजेंद्र ओला यहां से लगातार चार बार विधायक चुने गए है।

झुंझुनूं से सांसद चुने जाने के बाद उनके पुत्र अमित ओला को यहाँ उतारा गया है। बृजेन्द्र के पिता

शीशराम ओला भी लम्बे समय तक यहां से सांसद-विधायक रहे हैं।

देवली-उनियारा: सांसद हरीश मीना के लिए देवली- उनियारा सीट पर कांग्रेस को चुनाव जिताने की बड़ी जिम्मेदारी है। पैनल तैयार करने से लेकर टिकट फाइनल करने में उनकी भूमिका रही है।

क्षेत्रीय दलों के लिए बड़ी चुनौती

खींवसर: यहां से सांसद हनुमान बेनीवाल की प्रतिष्ठा दांव पर है। बेनीवाल सांसद चुने गए। इस वजह ये यह सीट खाली हो गई। उन्होंने पत्नी कनिका बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया है। यदि यह सीट आरएलपी नहीं जीती तो विधानसभा में आरएलपी का कोई विधायक नहीं रहेगा। साथ ही, लम्बे समय से अपने दम पर राजनीति करते आ रहे बेनीवाल पर इसका सीधा असर पड़ेगा।

चौरासी, सलूम्बर: यह दोनों ही सीटें सांसद राजकुमार रोत के लिए महत्वपूर्ण है। चौरासी सीट से बीएपी के सिंबल पर रोत विधायक बने और फिर सांसद बन गए। दोनों सीट पर बीएपी ने प्रत्याशी उतारे हैं।