कांग्रेस और भाजपा के लिए 7 सीटों पर उपचुनाव जीत के साथ ही गढ़ ढहाने और बचाने की नजर से भी महत्वपूर्ण है। उपचुनाव की 7 में से 2 सीटें तो ऐसी हैं, जिन पर भाजपा और कांग्रेस दोनों लंबे समय से जीत के इंतजार में बैठे हैं। साथ ही 3 सीटें ऐसी हैं, जहां कांग्रेस लगातार 2 बार से जीत दर्ज कर रही है। एक मात्र सीट सलूंबर पर भाजपा लगातार 3 बार से कब्जा बनाए हुए है। साथ ही झुंझुनूं सीट पर कांग्रेस लंबे समय से काबिज है। ऐसे में भाजपा के सामने 4 सीटों पर कांग्रेस और 2 सीटों पर क्षेत्रीय दलों का किला ढहाने की चुनौती है। ठीक इसी तरह कांग्रेस के समक्ष भाजपा से एक और क्षेत्रीय दलों से 2 सीट छीनने का मौका है। खींवसर विस सीट पर भाजपा-कांग्रेस को लंबे समय से जीत नहीं मिली है। 16 साल से हनुमान बेनीवाल और अब उनकी पार्टी आरएलपी काबिज है। 2019 के उपचुनाव में भी आरएलपी जीती थी। ऐसे ही डूंगरपुर जिले की चौरासी विस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों को जीत का इंतजार है। यहां से 2018 में बीटीपी के टिकट पर राजकुमार रोत विधायक बने। पिछले चुनाव में वह बीएपी के टिकट पर जीत गए। रोत के सांसद बनने के बाद यह सीट खाली हुई है। भाजपा ने 2013 और कांग्रेस ने 2008 में जीत दर्ज की थी। दौसा, देवली-उनियारा और रामगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस का हैट्रिक बनाने का लक्ष्य है, जबकि भाजपा के समक्ष इन सीटों पर पुन: काबिज होने की चुनौती। इन तीनों सीटों पर भाजपा प्रत्याशी की 2013 में जीत दर्ज हुई थी। इसके बाद से कांग्रेस प्रत्याशी जीतते आ रहे हैं। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती झुंझुनूं सीट पर है। यह सीट भाजपा ने आखिरी बार 2003 में जीती थी। इसके बाद से लगातार कांग्रेस जीत रही है। बृजेन्द्र ओला के सांसद बनने से सीट खाली हुई है। भाजपा ने यहां से पिछले चुनाव में बागी हुए नेता को टिकट दिया है। अब यहां फिर से बगावत के सुर उठ गए हैं।

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