कुंभकोट और लक्ष्मीपुरा गांवों में अवैध खनन के कारण मकानों में दरारें आ रही हैं। दूसरी ओर, प्रशासन की अकर्मण्यता के चलते खनन से निकले मलबे का चारागाह भूमि पर पहाड़ खड़ा कर दिया गया है। मामले को लेकर स्थानीय निवासियों ने प्रशासन को कईं बार अवगत कराया लेकिन सरकार बेखबर होकर मूक दर्शक बनी हुई है। मामले को लेकर राजेन्द्र सिंह, गोपी सिंह, ईश्वर सिंह, महेंद्र सिंह, गीता बाई, देवकरण बाई ने जिला कलैक्टर के नाम एडीएम को ज्ञापन सौंपा। 

कुंभकोट निवासियों ने बताया कि एएसआईके (लि) कुदायला, रामगंजमंडी द्वारा ग्राम पंचायत कुम्भकोट के खसरा नम्बर 255/264 स्थित पठार पर अवैध खनन किया जा रहा है। जिसमें होने वाली अवैध ब्लास्टिंग से गांवों में मकानों में दरारें आ गई हैं। इस कारण से मकानों के गिरने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। साथ ही, अवैध माइनिंग से राजस्थान सरकार को करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। 

ग्रामीणों का कहना है कि कंपनी लीज का कोई भी डॉक्यूमेंट दिखाने को तैयार नहीं है। जबकि प्रशासनिक अधिकारी भी संतोषप्रद जवाब नहीं दे रहे हैं। इसी तरह, लक्ष्मीपुरा गांव में आबादी के नजदीक गैर मु. पठार की भूमि पर डीप होल ब्लास्टिंग करके वहाँ रह रहे लोगो के मकानों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है। मकानो में दरारें आने से क्षतिग्रस्त हो गए हैं। जिस कारण डर के माहौल में लोग अपने घर को छोड़ने के लिए मजबूर हैं। जिसकी कई बार सुकेत थाने में सूचना देने पर भी उल्टा ग्रामीणों को डराया धमकाया जाता है। कम्पनी द्वारा दबंग लोगों से मजदूरों को घर खाली कराने के लिए बोला जाता है। जिसका मुआवजा मात्र उनको 50,000/- दिया जा रहा है। और उन्ही दबंग लोगों से कम्पनी के मिले हुए कर्मचारी 5-10 लाख रूपए में खरीदते हैं। 

ग्रामीणों ने बताया कि खनन स्थल के पास ही स्कूल, मंदिर, सड़क आबादी मौजूद हैं। जिन्हें भी दरकिनार किया जा रहा। इससे कोई बड़ा हादसा होने की संभावना है। कम्पनी लि० कुदायला, रामगंजमंडी द्वारा अवैध खनन व ब्लास्टिंग के कारण काफी धूल उड़ती है। इस कारण आसपास की भूमि भी अनुपजाऊ हो रही है। पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचाया जा रहा है। कम्पनी द्वारा ग्रामीणों के खेत के पास में ब्लास्टिंग में उपयोग होने वाली सामग्री का स्टॉक एक खेत मे किया हुआ है। जो बड़ी दुर्घटना को न्यौता दे रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि मामले की निष्पक्ष जाँच कर दोषी कम्पनी अधिकारी के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए। समस्या का निवारण 10 दिन में नहीं होता है तो मजबूर होकर ग्रामीणों को कलेक्टर कार्यालय कोटा के समक्ष धरना प्रदर्शन करने पर मजबूर होना पड़ेगा।