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राजकोट संघ के पदयात्री रोजाना अलग-अलग सांस्कृतिक पोशाक पहनकर पहुंचे चतुर्दशी को अम्बाजी धाम
- पैदल संघ पिछले 23 साल से राजकोट से आता है पड़ोसी राज्य गुजरात में मंदिरों की नगरी अम्बाजी
अमीरगढ़ (गुजरात-भंवर मीणा)। विश्व प्रसिद्ध तीर्थधाम शक्तिपीठ अम्बाजी मंदिर के दर्शन करने एवं भादरवी पूनम (भादो की पूर्णिमा) के मेले में शिरकत करने के लिए राजकोट का पदयात्री संघ रोजाना अलग-अलग सांस्कृतिक पोशाक पहनकर मंगलवार को अम्बाजी धाम पहुंचा। पूनम के इस वार्षिक मेले की सबसे बड़ी खासियत ही यह है कि गुजरात के विभिन्न हिस्सों से अधिकतर संघ पदयात्रा कर बोल माड़ी अम्बे, जय-जय अम्बे के जयकारे लगाते शक्तिधाम पहुंच कर मां अम्बा के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। चतुर्दशी पर मंगलवार को गुजरात के विभिन्न हिस्सों से दूर दराज से कई संघ व हजारों पदयात्री मां के निजधाम पहुंचे। राजकोट में धारेश्वर सोसायटी स्थित आईश्री अम्बा खोडियार मंदिर से पदयात्रियों का संघ भी मंगलवार को मां अम्बा के धाम पहुंचा।
राजकोट संघ के आयोजक हरेशभाई परमार का कहना है कि हम पिछले 23 साल से राजकोट से अंबाधाम तक यह पदयात्री संघ ला रहे हैं। राजकोट से यहां पहुंचने में हमें तेरह दिन लगे। हमारे संघ में करीब सवा सौ से अधिक पदयात्री शामिल हैं। संघ में सभी प्रकार की व्यवस्थाएं साथ लेकर चलते हैं। साथ ही हम सभी पदयात्री रोजाना अलग-अलग सांस्कृतिक पोशाक पहनकर चलते हैं। यही पोशाक पहनकर हम मां के दरबार में आते हैं, ताकि माताजी के धाम पहुंचकर हमें अलौकिक अनुभूति हो।
सांस्कृतिक पोशाक के महत्व के बारे में हरेशभाई कहते हैं कि इस सांस्कृतिक पोशाक को पहनने का मुख्य कारण यह है कि हम जितना संभव हो सके माताजी को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। ताकि, मां अंबा नवरात्रि के नौ दिन हमारे मंदिर में आएं और हमें आशीर्वाद दें। उन्होंने कहा कि सभी को सांस्कृतिक पोशाक पहनकर मां के दरबार में जाना चाहिए। ताकि, हम इस मातृ दिवस को खुशहाली के साथ मना सकें। हमारी संस्कृति के सम्मान को बनाए रखने के लिए हमारा संघ सांस्कृतिक पोशाक पहनता है।
इस संघ की दीनाबेन राठौड़ का कहना है कि हम 23 सालों से राजकोट से संघ लंकर आ रहे हैं। हमारे संघ में प्रत्येक पुरुष और महिला सांस्कृतिक पोशाक पहनकर मां की पूजा करने आते हैं। हम भारतीय संस्कृति की रक्षा और नारी की गरिमा, गरिमा और मर्यादाओं की रक्षा के लिए इस सांस्कृतिक पोशाक को पहनकर मां की पूजा करते हैं। उन्होंने बताया कि हम आज मां अंबा के चरणों में पहुंचे हैं। अपने संघ में खुशी से खेल रहे हैं। रास-गरबा गा रहे हैं। हमें थकान महसूस नहीं हो रही और अभी भी ऐसा महसूस हो रहा है जैसे हम कल ही निकले थे और आज यहां आ गए। मां की गोद में खेलने की अलौकिक अनुभूति कर रहे हैं।
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