नैनवा कस्बे में धूमधाम के साथ निकले जल झूलनी एकादशी के अवसर पर देव विमान यात्रा मार्ग में पुष्प वर्षा के साथ भक्तों ने भगवान का स्वागत किया। देव विमान के नीचे से निकल कर आशीर्वाद लिया। जल झूलनी ग्यारस को डोल ग्यारस व परिवर्तनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस अवसर पर देशभर में देव विमान की शोभायात्रा बड़ी धूमधाम के साथ निकाली जाती है। जिसमें भक्तजन भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हजारों की संख्या में पहुंचते हैं।यह त्यौहार देश का अति प्राचीन व सर्वमान्य त्यौहार है। जिसमें लोग उच्च नीच, जात-पात,अमीर गरीब के बंधनों से परे होकर सामूहिक रूप से देव शोभा यात्रा का आयोजन करते हैं। इस देव विमान यात्रा में सामाजिक समरसता आपसी प्रेम और समरसता का अनूठा संगम देखने को मिलता है। कस्बे में भी इस अवसर पर 16 देव मंदिरों से 16 देव विमान नैनवा मुख्य बाजार से होकर नवल सागर तालाब की पाल पर वन विहार को पहुंचे। जहां पर महा आरती का आयोजन किया गया। इसके पश्चात प्रसाद वितरण कर उसी मार्ग से मुख्य बाजार होकर अपने-अपने देवघरों को पहुंचे। यात्रा मार्ग के दौरान डीएसपी शंकर लाल मीणा थाना अधिकारी महेंद्र कुमार यादव मय पुलिस जाप्ता मौजूद रहे।

 जलझूलनी एकादशी का महत्व

नैनवा। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इसे दोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री विष्णु शयन शैय्या पर सोते हुए करवट लेते हैं।इसलिए इसे परिवर्तिनी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री विष्णु के वामन स्वरूप की पूजा की जाती है। ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री विष्णु के वस्त्र धोएं थे। इसलिए इस एकादशी को "जलझूलनी एकादशी" भी कहा जाता है। कई जगहों पर इस दिन श्री विष्णु भगवान को पालकी में बिठाकर शोभा यात्रा निकाली जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने का और विधि-पूर्वक उनकी पूजा करने का विधान है। साथ ही इस दिन अन्न दान व अन्य दान का विशेष माना जाता है। इसके अलावा आज के दिन उन सात अनाजों- गेहूँ, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर को न खाने की भी बात कही गई है।  इस दिन ऐसा करने से दूसरे लोगों के बीच आपका वर्चस्व कायम होगा और आपके सुख सौभाग्य में बढ़ोतरी होगी। साथ ही आपको अपने कार्यों में सफलता मिलेगी।