आतंरदा में निकली सर्प रुपी देह की सवारी, हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने किये देह के दर्शन 

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महावीर कुल्फी सेन्टर - बूंदी

महावीर कुल्फी सेन्टर की और से बूंदी वासियों को दीपावली की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

 राजस्थान के आंतरदा गावं में दो सो से ढाई सौ साल पूर्व निभाई जाने वाली परम्पर आज भी जीवित हे , तस्वीरें बहुत रोमांचित है और आश्चर्यचकित कर देने वाली है , जिससे लोग डरते हैं, कतराते हैं और दिखने पर डर जाते हैं , उसी सर्प को यहां पर पुजारी हाथ में लेकर पूरे गांव में घूमते हैं , और ग्रामीण उनके दर्शन के लिए यहां पर भीड़ के रूप में उमड़ते हैं ,

हजारों की तादाद में महज आंतरदा गांव के ही नहीं आसपास से जुड़े गांव के लोग यहां तक कि हाडोती से दूर दूर से लोग इस अद्भुत नजारे को देखने आते हैं , दिल थाम लीजिए और जरा गौर से देखिए यह कोई खिलौना नहीं , जहरीला और तेज गुस्से वाला सांप है जो पुजारी है उसके हाथ में है और वह भी एक पल या दो पल की नहीं पूरे करीब 5 से 7 घंटे के लिए। 

जहरीले किटो व जिव जंतु के प्रकोप से बचाने वाले तेजाजी महाराज की तेजादशमी के पर्व की रियासत कालीन कहानी बूंदी जिले के ग्रामीण परिवेश के आतरदा गावं में आज भी जीवित हैं 

 बूंदी जिले के आतंरदा गावं मे मनाया जाता हे तेजा दशमी का पर्व पुरानी संस्कृति व रीती रिवाज से आज भी इस गांव मे बड़ी धूम धाम तेजा दशमी का पर्व मनाया जाता हे जो कि रियासत कालीन पीढ़ी कासे यह परम्परा चली आ रही हे पहले तो शाही ठाठ बाट के साथ निकाली जाती थी तेजाजी महाराज सवारी पर अब समय के परिवर्तन के साथ कम होता जा रहा हे

लोक संस्कृति से जुडा तेजा दशमी पर्व तेजा दशमी कि पूर्व संध्या पर तेजा जी के स्थान पूरी रात को अलगोजा वादन कर लोक देवता तेजाजी माहराज की महिमा का भजन कीर्तन किया जाता हे जो की पूरी रात भर भजन व अलगोजा वादन कर तेजाजी माहराज की महिमा का भजन कीर्तन ढोलक ,मंजीरा व अलगोजा की मधुर धुन पर कीर्तन किया जाता हे जिसमें तेजाजी के स्थान पर वहा की ग्रामीण जनता व राज परिवार जो की हाडा वंश हे उन के राजा व राजकुमार भी उपस्थित रहते हे भजनों में विशेष कर अलगोजा की धुन होती हे जो की गाँव के बुजुर्गों द्वारा गाई जाती हे रात्रि कि मध्ये ग्रामीण व अलगोजा वादकों द्वारा पुरे गावं कि परिक्रमा कि जाती हे जिसे ग्रामीणों कि भाषा मे बिंदोरी कहा जाता हे,

वहीं रात्रि में पुजारी के शरीर तेजाजी महाराज का भाव आता हे उन के द्वारा बतया जाता हे की देहरूपी तेजाजी का सांप कहा पर मिलेगा की बात बताई जाती और सांप रुपी देह किस के हाथ में आयेगा मतलब की सवारी को कोन लायेगा की बात भी इस भजन कीर्तन की रात को बताई जाती है,

फिर दुसरे दिन दोपहर के समय ग्रामीण ओर राजपरिवार के सदस्य उस स्थान के लिए रवाना होते हैं जो की पुजारी जिसके तेजाजी महाराज का भाव आता हे उनके द्वारा बतया जाता हे की तेजाजी भगवान का देह रूपी सांप कहा पर मिलेगा उस स्थान पर वहा पहुचकर तेजाजी का स्मरण किया जाता और तेजाजी महाराज कि मान मनुहार करते हे तेजाजी महाराज का देह रुपी सांप पुजारी के हाथ में आ जाता हे उसके बाद पगड़ी या हाथों में मोजुद फुलों में विराजमान होकर मंदिर के लिए रवाना हो जाते हे इस दौरान पूरे गाँव में जगह-जगह पर ग्रामीणों द्वारा दर्शन कर तेजाजी की पुजा अर्चना की जाती है, वहीं सवारी के गढ़ चोक में पहुंचने पर राज परिवार द्वारा तोप कि सलामी देकर स्वागत किया जाता है , जिसके बाद तेजाजी कि देह को मंदिर पर विराजमान किया जाता है, दो दिन तक देह मंदिर पर ही रहती है इस दौरान जहरीले जीव जंतु के द्वारा काटे गए लोगों कि डसियां काटी जाती है