श्री गोकरुणा चातुर्मास आराधना महोत्सव

भगवत प्राप्ति के पथिक को कुसंगती का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए : मलूक पीठाधीश्वर

रेवदर। श्री गोकरुणा चातुर्मास आराधना महोत्सव में चल रही श्री वेदलक्षणा गोमहिमा श्री भरत चरित्र कथा को संबोधित करते हुए मलूक पीठाधीश्वर राजेंद्रदास जी महाराज ने कहा कि

हर व्यक्ति अपने आपको साधु और सज्जन समझता है। दुष्ट व्यक्ति भी अपने को दुष्ट नहीं समझता है, वह भी अपने को सबसे अच्छा व्यक्ति ही समझता है। अपनी समझ में दुष्ट लोग भी अपने आपको साधु मानते हैं। भगवत प्राप्ति पथ के पथिक को कुसंगती का सर्वथा त्याग कर देना चाहिए। संग और कुसंग को परिभाषित करते हुए मलूक पीठाधीश्वर महाराज जी ने कहा की जिसका संग करने से श्रीहरि, गुरु और संत में निरंतर श्रद्धा, विश्वास और प्रेम बढ़ने लगे तो उसका संग ही सुसंग है और जिनके संग करने से श्रीहरि, गुरु और संत में श्रद्धा कम होने लग जाए ऐसे लोगों के संग को कुसंग कहते है। अगर आपकी किसी महापुरुष के प्रति श्रद्धा है और आपके स्नेही दूसरे व्यक्ति की श्रद्धा नहीं है, भले ही उसने आपको कुछ नहीं बोला हो और उसकी आपके श्रद्धेय में श्रद्धा नहीं है तो धीरे धीरे आपको भी दोष दर्शन होने लग जायेंगे। श्रद्धा का प्रमाण यही है। जहां पूर्ण श्रद्धा होगी वहां दोष दृष्टि नहीं होगी। दोष दृष्टि नहीं आती है जहां श्रद्धा में कमी होती है। कथा में सुरजकुंड के पूज्य संत अवधेश चैतन्य जी महाराज, पूज्य महंत चेतनानंदजी महाराज डण्डाली, पूज्य श्री सुधानंद जी महाराज, रविंद्रानंद जी महाराज, बलदेवदास जी महाराज, गोवत्स विट्ठल कृष्ण जी महाराज, गोविंद वल्लभदास महाराज, ब्रह्मचारी मुकुंद प्रकाश महाराज, राममोहनदास जी महाराज, 121 दंडी स्वामी सहित भारतवर्ष के सैकड़ों त्यागी तपस्वी ऋषि मुनी मौजूद रहे।