रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग को अब छह महीने होने जा रहे हैं. इस बीच रूसी सेना यूक्रेन के पूर्व की तरफ से आगे बढ़ते हुए उसके कई शहरों पर कब्ज़ा कर चुकी है और आगे बढ़ रही है.बीते कई दिनों से यूक्रेन की राजधानी कीएव से 550 किलोमीटर दूर देश के दक्षिण में ज़ापोरिज़िया के आसपास लगातार लड़ाई चल रही है. रूस और यूक्रेन दोनों ने ही कहा है कि पिछले सप्ताह गुरुवार, 11 अगस्त को परमाणु प्लांट के दफ्तर और फायर स्टेशन पर 10 हमले हुए हैं. दोनों ने ही देशों ने हमलों का आरोप एक-दूसरे पर लगाया है.इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता बढ़ गई है. संयुक्त राष्ट्र ने सुझाया है कि ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट के आसपास की जगह को डीमिलिटराइज़्ड ज़ोन बना दिया जाना चाहिए. संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि अगर प्लांट को नुकसान हुआ तो नतीजा विनाशकारी होगा.

वहीं अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख रफाएल ग्रोसी का कहना है कि वो स्थिति को लेकर बेहद गंभीर हैं.उन्होंने कहा, "ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट की स्थिति को लेकर मैं बेहद गंभीर हूं और फिर से कहता हूं कि परमाणु सुरक्षा को खतरे में डालने वाली किसी भी तरह की सैन्य गतिविधि को तुरंत रोका जाना चाहिए. किसी भी हादसे को टालना हमारा पहला लक्ष्य होना चाहिए. दोनों पक्ष एजेंसी के साथ सहयोग करें ताकि ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट के लिए जल्द से जल्द एक मिशन भेजा जा सके."ये परमाणु संयंत्र फिलहाल रूस के नियंत्रण में हैं. संयुक्त राष्ट्र में रूस के दूत वासिली नेबेन्ज़्या ने इस सुझाव को खारिज कर दिया है और कहा है कि रूसी सेनाएं ज़ापोरज़िया प्लांट की सुरक्षा कर रही हैं.वहीं अमेरिका और चीन ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों को प्लांट में जाने की इजाज़त दी जानी चाहिए ताकि वो इसका पूरा मुआयना कर सकें.वहीं ज़ापोरिज़िया प्लांट को लेकर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की है.उन्होंने कहा है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे को गंभीरता से ले और रूसी सैनिकों को ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट से बाहर निकलने को कहें. उनका कहना है कि इस प्लांट पर कब्ज़ा कर रूस उन्हें ब्लैकमेल कर रहा है.

ये परमाणु संयंत्र फिलहाल रूस के नियंत्रण में है और यहां भारी तादाद में रूसी सैन्यबल मौजूद हैं.

ज़ेलेंस्की ने कहा, "ज़ापोरिज़िया परमाणु प्लांट के आसपास जो हो रहा है वो एक आतंकवादी देश द्वारा किया जा रहा सबसे बड़ा अपराध है. आज प्लांट के एकदम पास धमाके हुए हैं. किसी और ने कभी किसी परमाणु प्लांट का इस्तेमाल पूरी दुनिया को धमकाने और अपनी शर्तें मनवाने के लिए नहीं किया होगा. दुनिया को यहां पर कब्ज़ा करने वालों को यहां से निकालना चाहिए. ये यूक्रेन की ज़रूरत नहीं है बल्कि पूरी दुनिया के हित में है. हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के साथ चर्चा कर रहे हैं. रूसी सेना को परमाणु प्लांट की जगह से पूरी तरह निकाल कर वहां पर यूक्रेनी नियंत्रण से ही पूरे यूरोप की सुरक्षा की गारंटी हो सकेगी."

इधर यूक्रेनी गृह मंत्री डेनिस मोनास्तिरस्की कहा है कि ज़ोपोरिज़िया प्लांट सुरक्षित हाथों में नहीं है इसलिए वो अपनी पूरी तैयारी कर रहे हैं.उन्होंने कहा, हर तरह की स्थिति यहां तक कि रेडिएशन लीक की स्थिति से निपटने के लिए हम योजना बना रहे हैं. ज़रूरत पड़ने पर हम यहां से लोगों को निकाल पर तुरंत नज़दीकी सुरक्षित जगहों पर ले जाएंगे. ये यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु प्लांट है, यहां छह परमाणु रिएक्टर हैं. अगर रूसी सेना यहां अपनी गतिविधि जारी रखती है तो कितनी बड़ी त्रासदी हो सकती है इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है."बीबीसी से बात करते हुए हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एटोम प्रोजेक्ट में परमाणु पॉलिसी पर रिसर्च कर रही मारियाना बजरिन ने कहा कि ज़ापोरिज़िया पर किसी तरह का सैन्य हमला परमाणु त्रासदी को निमंत्रण देने जैसा है.

मारियाना बजरिन कहती हैं, "अगर एक बार रेडियोएक्टिव मैटेरियल वातावरण में फैल गया तो उसके बाद जो कुछ होता है वो हवा की दिशा पर निर्भर करता है. आप चर्नोबिल की बात याद कीजिए. उस वक्त जब रीएक्टर पिघल कर फट गया था, रेडियोएऐक्टिव मटीरियल बेलारूस, केंद्रीय यूरोप, उत्तरी यूरोप से आगे ब्रिटेन औऱ आयरलैंड तक पहुंचा था. हालांकि परमाणु हमले के दौरान होने वाले रेडिएशन की तरह गंभीर नहीं होता. लेकिन लंबे वक्त में इसका असर इंसानों, ज़मीन की गुणवत्ता, पानी और खाने के सामान पर पड़ता है. असर कितना गंभीर और व्यापक होगा इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना मुश्किल है."ज़ापोरिज़िया में यूरोप का सबसे बड़ा परमाणु प्लांट है जहां से यूक्रेन अपनी ज़रूरत की आधी बिजली का उत्पादन होता है. फ़रवरी 24 को यूक्रेन पर हमला करने के बाद मार्च मे रूसी सेना ने इस प्लांट पर कब्ज़ा कर लिया था. कथित तौर पर जुलाई में रूसी सेना ने यहां रॉकेट लांचर रखे और इसे सैन्य अड्डे में बदल दिया.अब इस प्लांट को लेकर गंभीर आशंकाएं ज़ाहिर की जा रही हैं. तीन अगस्त को अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी ने कहा कि ये प्लांट पूरी तरह नियंत्रण से बाहर है. इसे नुकसान पहुंचा है और इसे मरम्मत की ज़रूरत है.इसके बाद पांच अगस्त को यूक्रेन की परमाणु एजेंसी ने कहा कि दो रूसी रॉकेट के गिरने के बाद परमाणु प्लांट को पावर ग्रिड से डिसकनेक्ट करना पड़ा था.

आठ अगस्त को यूक्रेन ने कहा कि रूसी बमबारी में प्लांट को नुकसान पहुंच रहा है. वहां स्थानीय स्तर पर रूस समर्थक अधिकारियों ने कहा कि यूक्रेन ने प्लांट पर हमला किया है.10 अगस्त को जी7 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में सभी मुल्कों ने कहा कि रूस को जल्द से जल्द प्लांट का नियंत्रण रूस को दे देना चाहिए.और 11 अगस्त प्लांट पर और अधिक हमले हुए हैं जिसके लिए दोनों ने एकदूसरे को ज़िम्मेदार बता रहे हैं.यूक्रेन में कुल पांच परमाणु प्लांट हैं. चेर्नोबिल जो अब बंद हो चुका है. इसके अलावा ज़ोपोरिज़िया, रिव्नो, च्मेलनित्स्की और एक साउथ यूक्रेन में है. असल में ऊर्जा की अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए यूक्रेन परमाणु उर्जा पर निर्भर है.चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र वही जगह है जहां साल 1986 में दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा हुआ था.

उस वक्त इस प्लांट के चार नंबर संयंत्र में धमाका हुआ था. इस कारण रेडियोएक्टिव मैटेरियल लीक हो गया था और एक बड़ा हिस्से में फैल गया था.धमाके में दो ही लोग मारे गए थे, लेकिन उसके एक सप्ताह के भीतर रेडिएशन के कारण और 28 लोगों की मौत हुई और इसका कारण करीब 35 हज़ार लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया था.दुनिया में दो बड़े परमाणु हादसे हुए हैं. पहला यूक्रेन में चेर्नोबिल और दूसरा साल 2011 में जापान में फुकुशिमा.

चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र

फुकुशिमा में परमाणु संयंत्र के कोर को ठंडा करने के लिए ज़रूरी पानी की आपूर्ति रुक गई थी. यहां भूकंप और फिर सुनामी के कारण पानी पंप करने वाली जेनरेटर को नुकसान हुआ. नतीजा ये हुआ कि कुछ ही दिनों में यहां के तीन परमाणु कोर पिघल गए और रेडिएशन लीक हो गया.आज अमेरिका, रूस, चीन भारत, पाकिस्तान, फ़्रांस और उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियर हैं. माना जाता है कि इसराइल ने भी परमाणु हथियार हासिल कर लिए हैं. अमेरिका और रूस के पास दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हथियारों का जख़ीरा है.लेकिन अभी तक सिर्फ़ दो बार ही परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ है. ये दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साल 1945 में जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए थे.

ये आज से 77 साल पहले की बात है. यानी इसी महीने 1945 अगस्त की 6 तारीख को जापान के हिरोशिमा और 9 तारीख को नागासाकी में परमाणु बम गिराए गए थे. इससे हिरोशिमा में कम से कम एक लाख 40 हज़ार और नागासाकी में 74 हज़ार लोगों की मौत हुई. लेकिन त्रासदी इतने में नहीं रुकी. हिरोशिमा में 90 फीसदी स्वास्थ्यकर्मियों की या तो मौत हो गई या फिर वो घायल हो गए थे. ऐसे में लोगों की मदद असंभव हो गई थी और फिर हज़ारों लोग सालों तक कैंसर और रेडिएशन के दुष्प्रभावों से जूझते रहे.ज़ोपोरिज़िया परमाणु प्लांट के आसपास हो रहे हमलों ने एक बार फिर विश्व समुदाय का ध्यान परमाणु रेडिएशन के ख़तरे की तरफ खींचा है. लेकिन ये कितना बड़ा ख़तरा है और क्या इससे बचा जा सकता है?विज्ञान मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार पल्लव बागला मानते हैं कि यूक्रेन के परमाणु संयंत्र एक बड़ा खतरा तो हैं लेकिन हो सकता है कि बात इतनी ना बिगड़े कि रेडिएशन की नौबत आ जाए.

लेकिन अगर किसी परमाणु प्लांट पर हमला हो तो कितना नुक़सान हो सकता है? ये समझाते हुए पल्लब बागला कहते हैं, "किसी भी न्यूक्लियर प्लांट पर अगर बमबारी हो और अगर उससे नुक़सान होता है, ख़ासकर पॉवर प्लांट को तो उससे बड़ी तबाही हो सकती है. समझने की बात ये है कि जो पॉवर प्लांट होते हैं, जहां बिजली बनाई जा रही है, वहां पानी को भाप में बदला जाता है और उच्च दबाव की भाप से चक्की चलाई जाती है. यदि ये फटता है तो बहुत नुकसान हो सकता है. लेकिन परमाणु प्लांट आमतौर पर ऐसे बनाए जाते हैं कि वो छोटे मोटे रॉकेट या बम का हमला बर्दाश्त कर सकें."

परमाणु संयंत्र को लगातार ठंडा रखने के लिए पानी की लगातार आपूर्ति ज़रूरी होती है. यदि पानी की आपूर्ति बाधित होती है तो भी बड़ा नुक़सान हो सकता है.बागला कहते हैं, "किसी भी परमाणु संयंत्र के कोर को ठंडा रखने के लिए पानी की नियमित सप्लाई जरूरी होती है. फुकुशीमा में समस्या इसी वजह से हुई थी. वहां पानी की आपूर्ति रुक गई थी क्योंकि वहां पॉवर सप्लाई रुक गई थी. जो फुकुशिमा में हुआ था वैसा यूक्रेन के परमाणु संयंत्र में भी हो सकता है. अगर ऐसा हुआ तो बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी क्योंकि ये एक बहुत बड़ा परमाणु संयंत्र है, इसके रिएक्टर भी बड़े हैं."

हालांकि बागला मानते हैं कि ऐसी आशंका कम ही कि स्थिति यहां तक पहुंचे.

वो कहते हैं, "हालांकि इसमें मज़बूत सुरक्षात्मक प्रणाली होती है. जब तक वो है, तब तक कितना नुक़सान होगा ये कहना मुश्किल है. लेकिन किसी भी परमाणु संयंत्र पर किसी भी तरह का हमला होता है तो वह ना पॉवर प्लांट के लिए अच्छा है, ना यूक्रेन के लिए अच्छा है और ना ही रूस के लिए च्छा है."परमाणु संयंत्र किसी भी देश का सबसे अहम सुरक्षा ठिकाना होते हैं और इन्हें होने वाला ख़तरा स्थानीय आबादी के लिए भी बड़ा ख़तरा होता है.भारत और पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु संयंत्र हैं. दोनों के पास परमाणु हथियार भी हैं. लेकिन दोनों देशों के बीच एक समझौता है कि हम एक दूसरे के पॉवर प्लांट पर हमला नहीं करेंगे.

बागला कहते हैं, "ऐसा कोई समझौता रूस और यूक्रेन के बीच है या नहीं, वो इसका सम्मान करेंगे या नहीं, वो दोनों देश जानें. यदि कोई भी देश परमाणु संयंत्र को निशाना बनाने की ठान ही लेता है तो बड़ी तबाही तय है."यूक्रेन पहले ही चर्नोबिल हादसा झेल चुका है. उसके पास परमाणु हादसे का अनुभव है. लेकिन सवाल ये है कि हाल की परिस्थिति में वो किसी परमाणु हादसे से निबटने के लिए कितना तैयार है?परमाणु हादसे के बाद चेर्नोबिल के पास के शहरों और क़स्बों को खाली छोड़ दिया गया थाबागला कहते हैं, "जाहिर तौर पर यूक्रेन की तैयारी होगी. लेकिन यूक्रेन में पहले से ही युद्ध चल रहा है और उसके पूरे संसाधन उसमें लगे हैं ऐसे में यूक्रेन से ये उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वो उस इलाक़े से अपनी पूरी जनसंख्या को हटा सकेगा. हालांकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दख़ल देने की ज़रूरत है, जैसे संयुक्त राष्ट्र ने दख़ल दिया है."

बागला कहते हैं, "जहां भी परमाणु संयंत्र लगता है वहां कई स्तर पर सुरक्षा होती है. चर्नोबिल में जो हादसा हुआ था वहां सेफ्टी ड्रिल ग़लत हो गई थी. लेकिन अब सुरक्षा उपाय चर्नोबिल से बहुत बेहतर हैं. ऐसे में चर्नोबिल जैसा हादसा होना मुश्किल है. हां, अगर उस पर लगातार ही बमबारी की जाए तो ज़रूर कुछ बड़ा हो सकता है."लेकिन अगर तमाम एहतियात के बावजूद प्लांट को नुकसान पहुंचा और रेडिएशन लीक हुआ तो क्या होगा?बागला कहते हैं, "रेडिएशन लीक पर निगरानी का एक सिस्टम काम कर रहा है. यूक्रेन में अगर कुछ होता है तो उसके रेडिएशन लीक की भी निगरानी होगी. ऐसे में अगर कोई रेडिएशन होता है तो उसके बारे में दुनिया को तुरंत पता चल जाएगा. अगर रूस बम गिराएगा तो इसका मतलब ये नहीं है कि रूस तक रेडिएशन नहीं जाएगा. परमाणु ख़तरे की जद में रूस भी आ जाएगा."