राज्य में मंकी पॉक्स जागरूकता को लेकर हुई विडिओ कॉन्फ्रेंसिंग के बाद सीएमएचओ डॉ. सामर ने जिला स्तर से आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर चिकत्सा संस्थानों मै विशेष सावधानी बरतने के निर्देश दिए
सीएमएचओ डॉ. सामर ने बताया कि हाल फिलहाल राज्य में इसका कोई मामला सामने नहीं आया हे ।उन्होंने बताया कि मंकीपॉक्स के सबसे ज्यादा मामले अफ्रीका में सामने आ रहे हैं। यह एक महामारी फैलाने वाला वायरस है। यह चेचक जैसा ही वायरस है और जानवरों से इंसानों में फैलता है। इंसान में पहुंचने के बाद यह तेजी से फैलने लगता है। 1958 में इस वायरस की सबसे पहले पहचान की गई थी। मध्य और पश्चिमी एशिया में इसके सबसे ज्यादा मामले पाए जाते हैं। यहां लोग जानवरों के ज्यादा करीब भी रहते हैं।इससे संक्रमित होने पर शुरुआत में बुखार आता है। आम तौर पर पूरे शरीर में चकत्ते पड़ने लगते हैं। ये चकत्ते चेहरे और अन्य भागों पर भी हो सकते हैं। ये सफेद और पीले फुंसी का भी रूप ले सकते हैं जिसमें मवाद भर जाती है। इन चकत्तों में खुजली और दर्द होता है। इसके अलावा बुखार, सिरदर्द, मांस पेशियों में दर्द हो जाता है। हालांकि इस वायरस से विरले ही मौत होती है। आम तौर पर यह खुद ही ठीक होता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रिवेंशन के मुताबिक वायरस के संक्रमण में आने के 21 दिन बाद तक लक्षण सामने आ सकते हैं। वहीं यह 14 से 21 दिन तक रहता है। इसके बाद यह खुद ही ठीक होता है। इस बीमारी की वैक्सीन होती है। डा सामर ने बताया कि मंकी पॉक्स संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। यौन संबंधों और त्वचा के कॉन्टैक्ट में आने से संक्रमण का खतरा ज्यादा रह सकता है। आंख, श्वास, नाक और मुंह के माध्यम से यह वायरस प्रवेश कर सकता है। संक्रमित व्यक्तियों द्वारा छुए गए सामान जैसे बिस्तर, तौलिया आदि से भी यह संक्रमण फैल सकता है। इसके अलावा चूहा, गिलहरी और बंदर के संपर्क में आने से भी यह वायरस फैल सकता है।