एक अनाम स्वतन्त्रता सैनानी, अभय शंकर गुजराती

अंतिम समय तक अंग्रेजों की गोलियां जिसके शरीर में साथ रही

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भारत देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। पूरे देश भर में अमृत महोत्सव को लेकर उत्साह है जोर शोर से तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है, घर घर तिरंगे लगाए जा रहे हैं। देश की स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर न्यौछावर होने वाले शहीदों, स्वतन्त्रता सैनानियों को याद कर रहे हैं। उन तमाम ज्ञात अज्ञात सैनानियों के त्याग और बलिदान से आने वालीं पीढ़ी को बताया जा रहा हैं। ऐसे में उन स्वतन्त्रता सैनानियों की चर्चा आवश्यक हो जाती हैं, जिनके त्याग और बलिदान को हम आजादी की चकाचौंध में विस्मृत कर चुके हैं -

पूरे देश भर में अमृत महोत्सव में उत्साह और जोश के साथ तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है आज हम बूंदी के उस शहीद की बात करेंगे, जिसने तिरंगा यात्रा में अंग्रेजों की गोली खाना स्वीकार किया लेकिन तिरंगे को झुकने नहीं दिया। ऐसा स्वतन्त्रता सैनानी जिसने अंग्रेजो की गोलियों को अपने अंतिम समय तक अपने शरीर में साथ रखा, वे थे अभय शंकर गुजराती। 

11 अगस्त 1947, सोमवार को सुबह अंग्रेजी प्रशासन द्वारा शहर के परकोटे में धारा 144 लगा देने से मोटर व्यवसाय एसोसिएशन के आंदोलन के जुलूस शहर के परकोटे के बाहर निकाला जा रहा था, जिसके वर्तमान के सर्किट हाऊस के आगे बढ़ने पर अंग्रेज पुलिस द्वारा रोक दिया गया। जुलूस में शामिल युवाओं का जोश पुलिस के रोक भी कम नहीं हो रहा था। ऐसे में पुलिस द्वारा जुलूस रोकने के बाद जुलूस में शामिल लोगो पर हवाई फायरिंग करने से मची भगदड़ मच गई। ऐसे में बचने के लिए लोग इमली के पेड़ों पर चढ़ गए और जहां जगह मिली, लोग उधर छिपने के लिए दौड. पड़े, वहीं कुछ युवा अंगेजों की चेतावनी को दरकिनार कर वहीं डटे रहे। अंग्रेजो द्वारा उनसे जुलूस बंद करने, झंडे को छोड़कर परिवार की दुहाई देते हुए चले जाने को कहा। लेकिन इन लोगों ने भारतीय तिरंगे को नहीं छोड़ा और कई चेतावनी के बाद भी जीवन की परवाह किए बिना वहीं डटे रहे। आखिर में पुलिस द्वारा उन पर गोली चला दी गई और इन युवाओं मे से दो युवा गेलीबारी में घायल होकर धरती पर गिर पड़े। देखते ही देखते सारी भीड़ तीतर भीतर हो गई। आजादी के दिवस से महज 4 दिन पूर्व गोली लगने के बाद इन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन इनमें से एक युवा राम कल्याण को बचाया नहीं जा सका, वहीं दूसरे युवा अभयशंकर गुजराती ने आंदोलन में अपनी आंखों की रोशनी गंवा दी। इनकी इनकी आंख में लगी गोली तो डॉक्टरों ने निकाल ली लेकिन बाकी दो गोलियां उनके आखिरी समय तक उनके शरीर में मौजूद रहे। 11 अगस्त 1947 को हुई गोलीबारी में एक गोली उनकी आंख में लगी और गोली के कारतूस के गोले से अभय शंकर गुजराती की कलाई और जांघ घायल हो गई। इनकी आंख में लगी गोली तो डॉक्टरों ने निकाल ली लेकिन बाकी दो गोलियां उनके आखिरी समय तक उनके शरीर में मौजूद रहे।

12 वर्ष की उम्र से ही दौड़ा स्वतंत्रता ज्वार

अभय शंकर गुजराती का जन्म 21 नवंबर 1913 को बूंदी जिले के जमींदार घराने में मूलचंद एवं भंवरी बाई उर्फ जाना बाई के घर हुआ था। लेकिन बाल्यावस्था में ही पिता की मौत के बाद मां की शिक्षा ने आजादी की लड़ाई में कूदने के लिए प्रोत्साहित किया। 12 वर्ष की उम्र से ही इनके मन में दासता से मुक्त होने की लहरे उमड़ने लगी थी। इनके स्वतंत्रता आंदोलनों में व्यस्त रहे, जिसके कारण उनकी जमीन पर कुछ लोगों ने कब्जा कर लिया और कुछ को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया। परिणामस्वरूप, उन्हें जीवन यापन के लिए एक ब्रिटिश इलेक्ट्रिक कंपनी में बस मैकेनिक और बस ड्राइवर की नौकरी करनी पड़ी। वर्ष 1926 में एक सभा के दौरान ब्रिटिश सेना के लाठीचार्ज में अभय शंकर गुजराती गंभीर रूप से घायल हो गये। कांग्रेस की नीति और सिद्धांत से प्रभावित जानकारी हुई तो 18 वर्ष की आयु में पार्टी के सदस्य बनकर गोष्ठियां, प्रभात फेरी आयोजित करने लगे। ऋषि दत्त मेहता, केसरी लाल कोटिया से कांग्रेस के उद्देश्यों सीखने वाले अभय शंकर गुजराती को हरावल दस्ते के रूप में जाना जाता था। देश को मिली आजाद के बाद अभय शंकर गुजराती स्वतंत्र भारत में सेनानी तो बन गए, लेकिन सरकार ने उनकी कोई कदर नहीं की।

परिजनों ने जताइ उचित सम्मान की दरकार

गुजराती के पुत्र रवि दत्त शर्मा ने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए राज्य सरकार ने 2 अक्टूबर 1987 को ताम्रपत्र से सम्मानित किया और 14 नवम्बर 1987 को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन प्रदान की। स्वतंत्रता सेनानी अभय शंकर गुजराती का निधन 3 फरवरी 2004 को हुआ था। जिनका पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। हांलाकि इनके मन में सरकार की उदासीनता को लेकर खिन्नता भी हैं कि 750 बीघा जमीन के मालिक होने के बावजूद आराम की जिन्दगी जीने की जगह उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना सब कुछ लुटा दिया। इनके परिजनों को आज भी स्वतंत्रता सेनानी अभयशंकर गुजराती को अन्य स्वतंत्रता सेनानियों की तरह उचित सम्मान दिए जाने की दरकार हैं।

गुजराती के पौत्र विकास शर्मा बताते हैं कि स्वतंत्रता सेनानी अभय शंकर गुजराती स्वयं जीवन के अंतिम काल में सरकार की उपेक्षा से काफी व्यथित रहे। निधन के बाद प्रशासन ने पुण्यतिथि मना कर याद रखने की जरूरत भी नहीं समझी। इन्होंने कहा कि सरकार या प्रशासन से मांग की हैं कि शहर के किसी चौराहे या राजकीय भवन का नामकरण स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर किया जाकर उनके बलिदान को स्थायित्व प्रदान करना चाहिए। आजादी के अमृत काल में इनके बलिदान को उचित सम्मान दिया जाना चाहिए।