शहीद राम कल्याण, जिन्होंने तिरंगे के सम्मान में गोली खाई

भारत देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। पूरे देश भर में अमृत महोत्सव को लेकर उत्साह है जोर शोर से तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है, घर घर तिरंगे लगाए जा रहे हैं। देश की स्वतन्त्रता की बलिवेदी पर न्यौछावर होने वाले शहीदों, स्वतन्त्रता सैनानियों को याद कर रहे हैं। उन तमाम ज्ञात अज्ञात सैनानियों के त्याग और बलिदान से आने वालीं पीढ़ी को बताया जा रहा हैं। ऐसे में उन स्वतन्त्रता सैनानियों की चर्चा आवश्यक हो जाती हैं, जिनके त्याग और बलिदान को हम आजादी की चकाचौंध में विस्मृत कर चुके हैं -

पूरे देश भर में अमृत महोत्सव में उत्साह और जोश के साथ तिरंगा यात्रा निकाली जा रही है आज हम बूंदी के उस शहीद की बात करेंगे, जिसने तिरंगा यात्रा में अंग्रेजों की गोली खाना स्वीकार किया लेकीन तिरंगे को छोड़ा नहीं, वह स्वतन्त्रता सैनानी थे, शहीद रामकल्याण। 

11 अगस्त 1947, सोमवार को सुबह अंग्रेजी प्रशासन द्वारा शहर के परकोटे में धारा 144 लगा देने से मोटर व्यवसाय एसोसिएशन के आंदोलन के जुलूस शहर के परकोटे के बाहर निकाला जा रहा था, जिसके वर्तमान के सर्किट हाऊस के आगे बढ़ने पर अंग्रेज पुलिस द्वारा रोक दिया गया। जुलूस में शामिल युवाओं का जोश पुलिस के रोक भी कम नहीं हो रहा था। ऐसे में पुलिस द्वारा जुलूस रोकने के बाद जुलूस में शामिल लोगो पर हवाई फायरिंग करने से मची भगदड़ मच गई। ऐसे में बचने के लिए लोग इमली के पेड़ों पर चढ़ गए और जहां जगह मिली, लोग उधर छिपने के लिए दौड. पड़े। सभी अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर दौड़ पड़े सिवाए एक व्यक्ति के, जो सबसे आगे तिरंगा थामे जुलूस का नेतृत्व कर रहा था। व्ययवसाय से एडवोकेट शहिद रामकल्याण शर्मा तिरंगे झंडे को लिए कुछ लोगों के साथ वही डटे रहे। अंग्रेजो द्वारा उनसे जुलूस बंद करने, झंडे को छोड़कर परिवार की दुहाई देते हुए चले जाने को कहा। लेकिन राम कल्याण ने भारतीय तिरंगे को नहीं छोड़ा और कई चेतावनी के बाद भी शहीद रामकल्याण शर्मा जीवन की परवाह किए बिना वहीं डटे रहे। आखिर में पुलिस द्वारा उन पर गोली चला दी गई और वह तिरंगे को सीने से लगाए धरती पर गिर पड़े। देखते ही देखते सारी भीड़ तीतर भीतर हो गई। गोली लगने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका और आजादी के दिवस से महज 4 दिन पूर्व उन्होंने तिरंगे की शान में अपना बलिदान दे दिया।

सीने में गोली खाकर दिया बलिदान

11 अगस्त 1947 को अंग्रेजों के सामने निकाली गई तिरंगा यात्रा पर अंग्रेजों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी, जिससे तिरंगा यात्रा में भगदड़ मच गई। फायरिंग के बावजूद नेतृत्व कर रहे शहीद राम कल्याण तिरंगा हाथों में लेकर भारत माता की जय के नारे लगाते रहे। अंग्रेजों की चेतावनी के बावजूद स्वतन्त्रता सैनानी राम कल्याण ने तिरंगा नहीं छोड़ा और सीने में गोली खाकर अपना बलिदान दे दिया। जहां पर यह शहीद हुए वहां इनका स्मारक बना हुआ है और मूर्ति स्थापित हैं और सर्किट हाउस से खोजा गेट वाले रोड़ का नामकरण भी शहीद राम कल्याण के नाम पर किया गया हैं।

बूंदी प्रजामंडल के अध्यक्ष थे रामकल्याण 

शहीद राम कल्याण के दौहिते सौभाग्य शर्मा बताते हैं कि 1912 में जन्में शहीद राम कल्याण के पिता बून्दी के राजपरिवार के लिए खाना पकाने का काम करते थे। स्वयं मेहनत मजदूरी करते हुए पढ़ाई की और वकीलों के पास मुंशी का काम करते हुए ही वकील बने। शहीद राम कल्याण बूंदी प्रजा मंडल के अध्यक्ष और बूंदी नगर पालिका में उपाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुए थे। इनके विवाह भंवरी बाई से हुआ था, जिनसे दो संताने हुई। 

सौभाग्य शर्मा बताया कि 11 अगस्त 1947 को अपनी तांगे से सुबह करीब नौ बजे घर से हिंडोली कोर्ट के लिए निकले राम कल्याण अपनी दोनों पुत्रियों को विद्यालय छोड़कर बूंदी के नाहर चोहट्टा स्थान तक पहुंचे। जहां जानकारी मिली थी आज मोटर व्यवसाय एसोसिएशन के आंदोलन के जुलूस का नेतृत्व करने वाला कोई नहीं है। ऐसे में राम कल्याण त्वरित निर्णय लिया और अपने तांगे वाले को वापस लौटा दिया और खुद पैदल जुलूस का नेतृत्व करने के लिए निकल गए। आजादी के दिवस से महज 4 दिन पूर्व उन्होंने तिरंगे की शान में अपना बलिदान दे दिया।

नहीं मिला शहीद का दर्जा

उनके दोहिते सौभाग्य शर्मा ने कहा कि शहीद राम कल्याण शर्मा ने तत्कालीन नेताओं के भूमिगत हो जाने के बाद जुलूस का किया। परंतु विडंबना है कि शहीद राम कल्याण शर्मा को स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी शहीद स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा नहीं मिल सका. कई बार इस बात को राज्य सरकार केंद्र सरकार विधानसभा में उठाया गया। अपने प्राण न्योछावर करने के बाद भी उनके परिवार को कभी भी शहीद स्वतंत्रता सेनानी के आश्रितों की पेंशन नहीं तक मिली। उन्हें केवल जीवन यापन करने के लिए नाम मात्र की पेंशन ही मिल सकी। सौभाग्य शर्मा बताते हैं कि खोजागेट स्थित रामकल्याण स्मारक का निर्माण भी हरिमोहन शर्मा के हिण्ड़ोली विधायक बनने पर विधायक कोश से करवाया गया। सर्किट हाउस से खेजोगट वाले रोड़ का नामकरण शहिद रामकल्याण के नाम पर तो कर दिया लेकिन कोई सूचना या नाम पट्टिका नहीं हाने से वो भी विस्मृत हो रहा हैं। आज दिन तक मांग उठाने पर भी उनके नाम पर बूंदी शहर में कोई राजकीय भवन का नामकरण नहीं किया गया।

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