पिछले करीब ढाई साल से यूक्रेन और रूस के बीच जंग छिड़ी है। रूस पर अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। इस बीच चीन और नॉर्थ कोरिया गुपचुप तरीके से रूस की मदद करता रहा है। इस बात की भी आशंका गहराती रही है कि चीन और नॉर्थ कोरिया रूस को न्यूक्लियर हथियारों की सप्लाई कर रहा है और खुद अपने यहां न्यूक्लियर हथियारों का उत्पादन तेजी से बढ़ा रहा है। इन परिस्थितियों से हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में परमाणु हमले और संघर्ष का खतरा बढ़ गया है। अमेरिका समेत तमाम यूरोपीय देश पहले से ही ऐसे खतरे के प्रति आशंकित हैं।

हालांकि, इस बीच अमेरिकी थिंक टैंक सेंटर फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड नॉन प्रोलिफरेशन के एक रिसर्च एनालिस्ट शॉन रोस्टकर ने अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों को चेताया है कि परमाणु हथियारों से अमेरिका को रूस और चीन से नहीं बल्कि चीन-पाकिस्तान और भारत के त्रिकोण से खतरा है। 'द डिप्लोमेट' में 9 अगस्त को लिए लिखे अपने आलेख में रोस्टकर ने लिखा है कि चीन-रूस और अमेरिका के बीच उलझी गुत्थियों के बीच दक्षिण एशिया अपेक्षाकृत ज्यादा परमाणु टकराव का केंद्र बन सकता है। रोस्टकर ने लिखा है कि भारत-पाकिस्तान और चीन के त्रिकोण के अंदर परमाणु गतिशीलता और जोखिम दोनों बढ़ रहा है, जो परमाणु प्रतिद्वंद्विता से ज्यादा खतरनाक है।

उन्होंने चेताया है कि दक्षिण एशियाई उपमहाद्वीप परमाणु शस्त्रीकरण की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है क्योंकि यहां सैन्य तकनीकि में प्रगति होने के साथ-साथ सामरिक प्रतिसपर्धा भी बढ़ी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन, पाकिस्तान और भारत एक-दूसरे से संभावित खतरों के मद्देनजर न्यूक्लियर हथियारों का आधिुनिकीकरण कर रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि चीन के साथ पाकिस्तान की परमाणु साझेदारी ने भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजिंग का परमाणु श्सत्रीकरण कार्यक्रम पहले मुख्य रूप से वॉशिंगटन को लक्षित करता रहा है लेकिन अब भारत पर भी उसकी तेज नजर है। इस वजह से भारत और चीन का सामरिक संतुलन और अधिक जटिल होता जा रहा है। हालांकि, कई विश्लेषकों ने रोस्टर के इस विश्लेषण की निंदा की है।